Monday, July 2, 2012

हिन्दू संस्कृति

वैदिक काल और यज्ञ

प्राचीन काल में आर्य लोग वैदिक मंत्रों और अग्नि-यज्ञ से कई देवताओं की पूजा करते थे। आर्य देवताओं की कोई मूर्ति या मन्दिर नहीं बनाते थे। प्रमुख आर्य देवता थे : देवराज इन्द्र, अग्नि, सोम और वरुण। उनके लिये वैदिक मन्त्र पढ़े जाते थे और अग्नि में घी, दूध, दही, जौ, इत्यागि की आहुति दी जाती थी। प्रजापति ब्रह्मा, विष्णु और शिव का उस समय कम ही उल्लेख मिलता है।

तीर्थ एवं तीर्थ यात्रा

भारत एक विशाल देश है, लेकिन उसकी विशालता और महानता को हम तब तक नहीं जान सकते, जब तक कि उसे देखें नहीं। इस ओर वैसे अनेक महापुरूषों का ध्यान गया, लेकिन आज से बारह सौ वर्ष पहले आदिगुरू शंकराचार्य ने इसके लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होनें चारों दिशाओं में भारत के छोरों पर, चार पीठ (मठ) स्थापित उत्तर में बदरीनाथ के निकट ज्योतिपीठ, दक्षिण में रामेश्वरम् के निकट श्रृंगेरी पीठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ और पश्चिम में द्वारिकापीठ।तीर्थों के प्रति हमारे देशवासियों में बड़ी भक्ति भावना है। इसलिए शंकराचार्य ने इन पीठो की स्थापना करके देशवासियों को पूरे भारत के दर्शन करने का सहज अवसर दे दिया। ये चारों तीर्थ चार धाम कहलाते है। लोगों की मान्यता है कि जो इन चारों धाम की यात्रा कर लेता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है।

मूर्तिपूजा

ज्यादातर हिन्दू भगवान की मूर्तियों द्वारा पूजा करते हैं। उनके लिये मूर्ति एक आसान सा साधन है, जिसमें कि एक ही निराकार ईश्वर को किसी भी मनचाहे सुन्दर रूप में देखा जा सकता है। हिन्दू लोग वास्तव में पत्थर और लोहे की पूजा नहीं करते, जैसा कि कुछ लोग समझते हैं। मूर्तियाँ हिन्दुओं के लिये ईश्वर की भक्ति करने के लिये एक साधन मात्र हैं। इतिहासकारो का मानना है कि हिन्दु धर्म मे मूर्ति पूजा गौतम बुद्ध् के समय प्रारम्भ् हई,हिन्दु धर्म मे किसी भी वस्तु की पुजा की जा सकती है।

मंदिर

हिन्दुओं के उपासना स्थलों को मन्दिर कहते हैं। प्राचीन वैदिक काल में मन्दिर नहीं होते थे। तब उपासना अग्नि के स्थान पर होती थी जिसमें एक सोने की मूर्ति ईश्वर के प्रतीक के रूप में स्थापित की जाती थी। एक नज़रिये के मुताबिक बौद्ध और जैन धर्मों द्वारा बुद्ध और महावीर की मूर्तियों और मन्दिरों द्वारा पूजा करने की वजह से हिन्दू भी उनसे प्रभावित होकर मन्दिर बनाने लगे। हर मन्दिर में एक या अधिक देवताओं की उपासना होती है। गर्भगृह में इष्टदेव की मूर्ति प्रतिष्ठित होती है। मन्दिर प्राचीन और मध्ययुगीन भारतीय कला के श्रेष्ठतम प्रतीक हैं। कई मन्दिरों में हर साल लाखों तीर्थयात्री आते हैं।

अधिकाँश हिन्दू चार शंकराचार्यों को (जो ज्योतिर्मठ, द्वारिका, शृंगेरी और पुरी के मठों के मठाधीश होते हैं) हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु मानते हैं।

त्यौहार

नववर्ष – द्वादशमासै: संवत्सर:।’ ऐसा वेद वचन है, इसलिए यह जगत्मान्य हुआ। सर्व वर्षारंभों में अधिक योग्य प्रारंभदिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है। इसे पूरे भारत में अलग-अलग नाम से सभी हिन्दू धूम-धाम से मनाते हैं।

हिन्दू धर्म में सूर्योपासनाके लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होनेके कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्षमें दो बार मनाया जाता है, किन्तु काल क्रम मे अब यह बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश वासियों तक ही सीमित रह गया है।

आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रोत्सव आरंभ होता है। नवरात्रोत्सव में घटस्थापना करते हैं। अखंड दीप के माध्यम से नौ दिन श्री दुर्गादेवी की पूजा अर्थात् नवरात्रोत्सव मनाया जाता है।

श्रावण कृष्ण अष्टमी पर जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है। इस तिथि में दिन भर उपवास कर रात्रि बारह बजे पालने में बालक श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है, उसके उपरांत प्रसाद लेकर उपवास खोलते हैं, अथवा अगले दिन प्रात: दही-कलाकन्द का प्रसाद लेकर उपवास खोलते हैं।

आश्विन शुक्ल दशमी को विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है। दशहरे के पहले नौ दिनों (नवरात्रि) में दसों दिशाएं देवी की शक्ति से प्रभासित होती हैं, व उन पर नियंत्रण प्राप्त होता है, दसों दिशाओंपर विजय प्राप्त हुई होती है। इसी दिन राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी।

शाकाहार

किसी भी हिन्दू का शाकाहारी होना आवश्यक है, क्योंकि शाकाहार का गुणगान किया जाता है। शाकाहार को सात्विक आहार माना जाता है। आवश्यकता से अधिक तला भुना शाकाहार ग्रहण करना भी राजसिक माना गया है। मांसाहार को इसलिये अच्छा नही माना जाता,क्योंकि मांस पशुओं की हत्या से मिलता है, अत: तामसिक पदार्थ है। वैदिक काल में पशुओं का मांस खाने की अनुमति नहीं थी, एक सर्वेक्षण के अनुसार आजकल लगभग 70% हिन्दू, अधिकतर ब्राह्मण व गुजराती और मारवाड़ी हिन्दू पारम्परिक रूप से शाकाहारी हैं। वे भी गोमांस कभी नहीं खाते, क्योंकि गाय को हिन्दू धर्म में माता समान माना गया है। कुछ हिन्दू मन्दिरों में पशुबलि चढ़ती है, पर आजकल यह प्रथा हिन्दुओं द्वारा ही निन्दित किये जाने से समाप्तप्राय: है।

वर्ण व्यवस्था

प्राचीन हिंदू व्यवस्था में वर्ण व्यवस्था और जाति का विशेष महत्व था। चार प्रमुख वर्ण थे – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। पहले यह व्यवस्था कर्म प्रधान थी। अगर कोइ सेना में काम करता था तो वह क्षत्रिय हो जाता था चाहे उसका जन्म किसी भी जाति में हुआ हो।

अवतार

वैष्णव धर्मावलंबी और अधिकतर हिंदू भगवान विष्णु के १० अवतार मानते हैं:- मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन, नरसिंह, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि

हिन्दू धर्म का इतिहास अति प्राचीन है। इस धर्म को वेदकाल से भी पूर्व का माना जाता है, क्योंकि वैदिक काल और वेदों की रचना का काल अलग-अलग माना जाता है। यहां शताब्दियों से मौखिक परंपरा चलती रही, जिसके द्वारा इसका इतिहास व ग्रन्थ आगे बढ़ते रहे। उसके बाद इसे लिपिबद्ध करने का काल भी बहुत लंबा रहा है। हिन्दू धर्म के सर्वपूज्य ग्रन्थ हैं वेद। वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल का आरंभ ४५०० ई.पू. से माना है। यानि यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया- ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद जि‍से वेदत्रयी कहा जाता था। मान्यता अनुसार वेद का वि‍भाजन राम के जन्‍म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ था। बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि‍ अथर्वा द्वारा कि‍या गया। वहीं एक अन्य मान्यता अनुसार कृष्ण के समय में वेद व्यास ने वेदों का विभाग कर उन्हें लिपिबद्ध किया था। इस मान से लिखित रूप में आज से ६५०८ वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद। श्रीकृष्ण के आज से ५३०० वर्ष पूर्व होने के तथ्‍य ढूँढ लिए गए हैं।

हिंदू और जैन धर्म की उत्पत्ति पूर्व आर्यों की अवधारणा में है जो ४५०० ई.पू. मध्य एशिया से हिमालय ऋग्वेद का भूगोलीय क्षितिज (जिसमें नदियों के नाम एवं सीमेटरी एच दिये हैं। ये हिन्दूकुश और पंजाब क्षेत्र से ऊपरी गांगेय क्षेत्र तक फैला हुआ था।। आर्यों की ही एक शाखा ने पारसी धर्म की स्थापना भी की। इसके बाद क्रमश: यहूदी धर्म दो हजार ई.पू., बौद्ध धर्म पाँच सौ ई.पू., ईसाई धर्म सिर्फ दो हजार वर्ष पूर्व, इस्लाम धर्म आज से १४०० वर्ष पूर्व हुआ।

धार्मिक साहित्य अनुसार हिंदू धर्म की कुछ और भी धारणाएँ हैं। मान्यता यह भी है कि ९० हजार वर्ष पूर्व इसका आरंभ हुआ था। रामायण, महाभारत और पुराणों में सूर्य और चंद्रवंशी राजाओं की वंश परम्परा का उल्लेख उपलब्ध है। इसके अलावा भी अनेक वंशों की उत्पति और परम्परा का वर्णन आता है। उक्त सभी को इतिहास सम्मत क्रमबद्ध लिखना बहुत ही कठिन कार्य है, क्योंकि पुराणों में उक्त इतिहास को अलग-अलग तरह से व्यक्त किया गया है जिसके कारण इसके सूत्रों में बिखराव और भ्रम निर्मित जान पड़ता है, फिर भी धर्म के ज्ञाताओं के लिए यह भ्रम नहीं है।

असल में हिंदुओं ने अपने इतिहास को गाकर, रटकर और सूत्रों के आधार पर मुखाग्र जिंदा बनाए रखा। यही कारण रहा कि वह इतिहास धीरे-धीरे काव्यमय और श्रृंगारिक होता गया जिसे आधुनिक लोग इतिहास मानने को तैयार नहीं हैं। वह समय ऐसा था जबकि कागज और कलम नहीं होते थे। इतिहास लिखा जाता था शिलाओं पर, पत्थरों पर और मन पर।

हिंदू धर्म के इतिहास ग्रंथ पढ़ें तो ऋषि-मुनियों की परम्परा के पूर्व मनुओं की परम्परा का उल्लेख मिलता है जिन्हें जैन धर्म में कुलकर कहा गया है। ऐसे क्रमश: १४ मनु माने गए हैं जिन्होंने समाज को सभ्य और तकनीकी सम्पन्न बनाने के लिए अथक प्रयास किए। धरती के प्रथम मानव का नाम स्वायंभव मनु था और प्रथम ‍स्त्री थी शतरूपा। महाभारत में आठ मनुओं का उल्लेख है। इस वक्त धरती पर आठवें मनु वैवस्वत की ही संतानें हैं। आठवें मनु वैवस्वत के काल में ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था।

पुराणों में हिंदू इतिहास का आरंभ सृष्टि उत्पत्ति से ही माना जाता है। ऐसा कहना कि यहाँ से शुरुआत हुई यह ‍शायद उचित न होगा फिर भी हिंदू इतिहास ग्रंथ महाभारत और पुराणों में मनु (प्रथम मानव) से भगवान कृष्ण की पीढ़ी तक का उल्लेख मिलता है।

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