Sunday, August 5, 2012

कृतज्ञता

कृतज्ञता मनुष्य जाति का ऐसा गुण है कि यदि लोग दूसरे लोगों के उपकार , उनकी सेवाओं के प्रति थोडा सा भी श्रद्धा व सम्मान का भाव रखें तो संसार से कलह और झगडों की ९० % जड़ तुरंत ही नष्ट हो जाए ..कृतज्ञता आत्मा की प्यास और उसकी चिरंतन आवश्यकता है . लगता है यह आदर्श भी मनुष्य को अन्य जंतुओं से ही सीखना पड़ेगा ...मासिक ‘कल्याण’ के अंत मे कृतज्ञता की एक बहुत ही मार्मिक घटना छपी थी ..

एक डाकिया प्रति दिन डाक लेकर जंगल से गुजरता था और दूसरे गावं डाक बांटने जाया करता था . एक दिन उसने देखा पेड की एक डाल मे छोटे से छेद से निकलने के प्रयास मे एक बन्दर फंस गया है . दूसरे बन्दर कें कें कें तो कर रहे थे , आपत्ति ग्रस्त बन्दर भी बुरी तरह चिल्ला रहा था किन्तु संकट से छूटना उसके लिए संभव नहीं हो पा रहा था . डाकिया को बन्दर की यह दशा देखकर दया आ गयी ..उसके पास कुल्हाड़ी थी पहले तो वह भयभीत हुआ पर पीछे उसने अनुभव
किया ..जब मै भलाई करना चाहता हूँ तो बन्दर बुराई क्यों करेंगे ..वह वृक्ष पर चढ गया और सावधानी से छेड़ को बड़ा करके बन्दर को बाहर निकाल लिया ..बन्दर बड़ी खुसी खुसी वहाँ से चले गए ...उन्होंने डाकिया को ना डराया ना ही काटा...डाकिया भी अपनी रह चला गया .....
एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि एक दिन उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उसके सामने बीसियों बन्दर रस्ते के इधर उधर बैठे हैं ..पहले तो वह डरा पर चूंकि कुल्हारी हाथ मे थी इसलिए वह निःशंक चला ही गया .जैसे जैसे वह आगे बढ़ा बन्दर इकट्ठे होते चले गए डाकिया डरता गया ..किन्तु ...पास पहुँच कर उसे आश्चर्य हुआ ..ये सभी बन्दर अपने अपने एक एक हाथ मे जंगली प्रदेश मे पाया जाने वाला एक लाल रंग का दुर्लभ फल लिए हुए है ..डाकिया के पास आते ही उन सबने उसे घेर लिया . अपने अपने फल उसे हाथ मे दे देकर पल भर मे इधर उधर तितर बितर हो गए ,,,,,डाकिया के हांथों मे आँशु आ गए ..उसने अनुभव किया आखिर यह जीव भी तो आत्मा है मनुष्य अगर जीव मात्र के प्रति दया का व्यवहार करे तो संसार स्वर्ग बन जायेगा ..और नहीं तो कृतज्ञ तो एक दूसरे के प्रति होना ही चाहिए .
---  श्री अनिल कुमार त्रिवेदी

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