Monday, August 20, 2012

जीवन की स्थितिया

जीवन में जो कुछ भी स्थितियां हैं, उन्हें खेल-खेल में निभाएं तो आप देखेंगे कि आपका दु:ख भी सुख में बदलेगा। यह जीने के अंदाज हैं, जो मनुष्य को सीखने को मिलते हैं-शास्त्रों से, सत्संगों से तथा साधकों के नजदीक बैठने से। जैसे-जैसे आप अपने दोषों को छोडेंगे,आपका बल बढता जाएगा। आप छोटी-मोटी बाधाओं से पार हो जाएंगे। इससे आपकी सहनशक्ति बढ जाएगी साथ ही आत्मिक बल भी प्राप्त होगा। भगवान सच्चिदानंद सद्गुरु के रूप में मानव की शक्ति के स्त्रोत होते हैं। जीवन में मनुष्य को सत्य, दान, कर्मठता, क्षमा जैसे सद्गुणों को अपनाते हुए अनसूया(अर्थात किसी की निंदा नहीं करना), असूया (अर्थात निंदा करना) में से गुण, गुण ग्राहकताका होता है। अर्थात् किसी के गुणों की प्रशंसा करें, निंदा करने की प्रवृत्ति से बचें। इस सद्गुण के ग्राहक बनें, इसे कभी छोडें नहीं, ये सारे सद्गुण मानव की महान शक्तियों के स्त्रोत हैं। क्षमा करना म
ानव को बहुत ऊंचा उठा देता है। मनुष्य के अंदर यह गुण आ जाए तो उसके व्यक्तित्व में चमक पैदा हो जाएगी। इंसान को सद्गुणों को जीवन में अपनाना चाहिए। सदा ही बनावटी जीवन से बचना, आपकी जिंदगी जितनी बनावटी, दिखावटी, कृत्रिम होगी उतने ही आप अशांत रहेंगे। आप जितने सीधे, सरल, सच्चे बनकर चलेंगे उतनी ही शांति मिलेगी। आवश्यकताओं का जो विस्तार है, उसको छोटा करो, जीत जाओगे। जीवन में छोटी-छोटी कमजोरियों को घटाना चाहिए, वे एक-एक करके घटती जाएंगी। कामनाओं के आवेग को रोक लो, तो आगे बढ जाओगे। अभिमान को विनम्रता से जीत लो, तो उन्नति हो जायेगी। जगत में ईष्र्या-द्वेष को सम्यक् दृष्टि से देखो तो सब अपने नजर आएंगे। कौन पराया है, किससे बैर करना? यही प्रसन्नता का मार्ग है। भक्ति का मार्ग है। परिस्थितियां जो भी हों उनके साथ तालमेल बैठाओ, आवश्यकताओं को कम करते जाओ। सुखी होने का, भक्ति को प्राप्त करने का इससे उत्तम मार्ग कोई नहीं है। छोटा सा सूत्र है-अगर आप सुखी होना चाहते हैं तो आवश्यकताओं को सीमित करें, क्योंकि मानव जीवन में सद्गुणों का बडा महत्व है। गुणों को प्राप्त करें, क्रोध को जीतें, बैर का परित्याग, कामनाओं का त्याग भक्ति का यही मार्ग है। 
---श्री शशिशेखर शुक्ल

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