Monday, August 13, 2012

शांति मंत्र

ॐ द्यौ:शांतिरन्तरिक्षऽशांति:पृथिवी शांतिराप:शांतिरोषधय:शांति:। 
वनस्पयत:शांतिर्विश्वेदेवा:शांतिर्ब्रह्मशांति: सर्व ऽशांति:शांतिरेवशांति: सा मा शांतिरेधि।
ॐशांति:! शांति:!! शांति!!! 
 भारतीय संस्कृति में आदिकाल से चला आने वाला वेद का यह शांति-मंत्र वर्तमान काल की ग्लोबल वार्मिग के शमन को पूर्णरूपेण शांत और सुरक्षित रख सकने की सीख देता रहा है। परंतु आज का मानव भौतिकता को प्राथमिकता देता हुआ केवल पैसे के लिए भाग रहा है और प्रकृति से विपरीत होता चला जा रहा है। यही कारण है कि वर्तमान काल के वैज्ञानिक मानव को संकट पूर्ण स्थिति में उसके अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं और इस पृथ्वी पर से मात्र एक सौ वर्ष के अंदर ही मानव का विनाश हो जाएगा ऐसी घोषणा कर रहे हैं। उन्हें यह बोध नहीं कि प्राचीनकाल से यह समाज मानव के अस्तित्वविहीनस्थिति की कल्पना ही नहीं कर सकता है। उसके पास वेद की ऋचाओंका वह अवलंबन ह
ै जिसके आधार पर हम आज हैं, कल थे और निश्चित रूप से कल भी रहेंगे। इसके लिए हमें ईश्वरीय सत्ता पर पूर्ण श्रद्धावान होना पडेगा।
बढता हुआ प्रदूषण मानव का काल बनता जा रहा है। वेदों के शांति मंत्र में द्यौलोक को शांत रहने की प्रार्थना की गई है। अंतरिक्ष को तथा पृथ्वी एवं आपा (जल) को शांत रहने की प्रार्थना की गई है। समस्त औषधीय वनस्पतियों को शांत रहने की प्रार्थना की गई है। सभी दिशाओं को शांत रहने की प्रार्थना के साथ दैहिक, दैविक एवं भौतिक शांत रहने की कामना है। पंच-तत्व से निर्मित और पंच-तत्व में विलीन होने वाले इन पांच तत्वों के शांत रहने से मानव का कल्याण संभव है। यदि हम प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाकर पृथ्वी को शांत करने की कामना कर सके, उसके बताए रास्ते पर चलकर प्रकृति के निकटस्थ होकर जैव विविधता का संबर्धनकर सके तो वैश्विक ऊष्मा के परिणामस्वरूप होने वाले समस्त प्रकार के विनाश से मुक्त होकर भूमंडल को शांत और सुरक्षित रख सकेंगे। वेदों द्वारा उद्घोषित शांति-मंत्र हमें ऊर्जस्वित करेगा। विश्वकल्याण के लिए जरूरी है कि प्रकृति से आत्मिक-संबंध बनाते हुए पंच-तत्वों को शांत रखने का उपक्रम करें।
--- श्री कमल अग्रवाल

No comments:

Post a Comment