Thursday, August 9, 2012

खाद्य अखाद्य विचार

आहारशुद्धौ सत्वशुद्धि: सत्वशुद्धौ ध्रुवास्मृति: (( छान्दोग्योपनिषद , ७-२६ ))
आहारशुद्धि से मन शुद्धि और मन शुद्धि से परमात्मा का सतत और निरंतर स्मरण होता है
           हमारे शरीर और मन की शक्तियों का निर्माण करने वाली समग्र संजीवनी शक्तियां हमारे भोजन के भीतर ही रहती हैं . अभी जो भी हम हैं वह हमने इसके पूर्व जो कुछ भी भोजन सामग्री ग्रहण किया है ..उस भोजन सामग्री मे ही था . वह सब खाद्य पदार्थों द्वारा ही हमारे शरीर मे आया ..उसमे संचित रहा और फिर उसने एक नया रूप धारण किया .वस्तुतः मेरे शरीर और मन मे मेरे खाए हुए अन्न से भिन्न कोई वस्तु है ही नहीं ..जैसे भौतिक श्रृष्टि मे हम शक्ति और जड़ पदार्थ पाते हैं और यह शक्ति तथा जड़ पदार्थ हममे मन और शरीर बन जाते हैं ...यथार्थ रूप मे देह और मन मे और हमारे खाए हुए अन्न मे केवल आकार या रूप का अंतर है           
श्री रामानुजाचार्य जी हमें आहार के तीन दोषों से बचने के लिए कहते हैं ..
१. जाति दोष
२.आश्रय दोष
३. निमित्त दोष
१.जाति दोष:
>>आहार के स्वाभाविक गुण या किस्म पर ध्यान देना चाहिए ..यथा सभी उत्तेजक वस्तुएं उदाहरणार्थ..प्याज , लहसुन माँस तथा अन्य दुर्गन्ध युक्त पदार्थों का परित्याग करना चाहिए .क्योकि ये स्वभावतः ही अपवित्र वस्तुएं हैं ..
>>दूसरों का प्राण लेकर ही हमें माँस की प्राप्ति होती है . हम कुछ क्षण मात्र के लिए स्वाद सुख पाते हैं पर उधर दूसरे जीव धारी तो हमें क्षणिक स्वाद सुख देने के लिए सदा के लिए प्राणों से हाथ धो बैठते हैं ..
>>इतना ही नहीं वरण हम दूसरे मनुष्यों का नैतिक अधः पतन भी करते हैं .
>> इंग्लैंड मे कोई भी कसाई जूरी के सदस्य बन कर न्याय प्रदान करने का काम नहीं कर सकता ..इसके पीछे भाव यह है कि कसाई स्वभाव से निर्दयी होता है पर भला उसको निर्दयी बनाया किसने ?? उसी समाज ने .यदि हम गोमांस , बकरी का माँस ना खाएं तो यह कसाई हो ही क्यों ?
>> मांस भक्षण का अधिकार उन्ही मनुष्यों को है जो बहुत कठिन परिश्रम करते हैं और भक्त होना नहीं चाहते ..आध्यात्म मे रूचि नहीं रखते ..(( अगर कोई रूचि रखता है तो उसे माँस भक्षण का त्याग करना होगा ))
>> कई दिनों का बना भोजन जो लगभग सड सा गया हो ..जिसमे दुर्गन्ध आ गयी हो ऐसे सभी खाद्य वस्तुओंका परित्याग करना चाहिए
२. आश्रय दोष:
आश्रय का अर्थ है वह व्यक्ति जिसके पास से भोजन मिले .
इसके पीछे यह तर्क है कि प्रत्येक मनुष्य का अपना एक वातावरण होता है. जिस किसी वस्तु को वह छूता है उस वस्तु के साथ मानो उस मनुष्य की प्रकृति या आचरण का कुछ अंश, कुछ प्रभाव रह जाता है ..प्रत्येक मनुष्य के शरीर से सूक्ष्म परमाणु निकला करते हैं उसी तरह उसके आचरण या भाव भी बाहर निकलते रहते हैं ..जब कभी वह व्यक्ति किसी वस्तु को छूता है तो वो उस वस्तु मे लग जाते हैं अतः हमें इस बात की सावधानी रखनी चाहिए कि पकाते समय हमारे भोजन को किसने स्पर्श किया .
किसी दुष्ट प्रकृति या दुराचारी मनुष्य ने उस भोजन को स्पर्श तो नहीं किया ...जो भक्त होना चाहते हैं
वह दुष्ट प्रकृति के मनुष्यों के साथ भोजन ना करें क्योकि उनकी दुष्टता का प्रभाव उनकी भोजन द्वारा फैलता है ..
३.निमित्त दोष:
यह समझने मे बहुत सरल है ..मैल व धुल इत्यादि भोजन मे ना हों ..ऐसा ना हो कि बाजार से खाद्य पदार्थों को ले आयें ..उन्हें बिना धोए ही थाली मे खाने के लिए पडोश दें ..उसमे संसार भर का कूड़ा कड़कट व धुल भरी हुई है ..मुख की लार , थूक इत्यादि वस्तुओं से हमें परहेज करना चाहिए ..
जब परमात्मा ने चीजों को धोने के लिए यथेष्ट जल दे रखा है ..तो हमारे होठों को छूने की और थूक द्वारा हर चीज को स्पर्श करने की आदत कैसी गन्दी और भयानक है . Mucous Membrane अर्थात द्रवोत्पादक या श्लेष्मिक झिल्ली हमारे शरीर का बड़ा ही नाजुक भाग है ..और इससे उत्पन्न लार इत्यादि के द्वरा अनिष्ट प्रभावों का संक्रमण हो जाना बहुत ही सरल है अतः इसका श्पर्ष दूषित ही नहीं भयानक भी है ..इसके अतिरिक्त किसी वस्तु का एक अंश एक ने खा कर किसी दूसरे के लिए छोड़ दिया हो तो उसे भी नहीं खाना चाहिए
---  श्री अनिलकुमार त्रिवेदी

1 comment:

  1. हर हर महादेव 🙏🙏छान्दोग्योपनिषद् में ऋषि कहते हैं— ‘आहारशुद्धौ सत्वशुद्धि:।’ अत: हम जो आहार सेवन करें, वह शुद्ध होना चाहिए, इससे अन्त:करण की शुद्धि होती है। जब अन्त:करण —मन शुद्ध होता है तब सद्विवेक का निर्माण होता है। इससे मनुष्य सदाचारी होता है और उसका शरीर एवं मन स्वस्थ रहता है तथा उसे जीवन में सुख और शान्ति का लाभ होता है। अस्तु, स्वस्थ समाज के लिए शुद्ध अन्न का सेवन करना आवश्यक है। क्या आप जानते है ?

    ▪️सिर्फ संजीवनी नहीं, चार जड़ी- बूटियां लाने गए थे हनुमान।

    मेघनाथ के आघात से मूर्च्छित हुए लक्ष्मण को चेतना में लाने के लिए रावण के राजवैद्य सुषेण ने ही हनुमान को औषधि पर्वत पर जड़ी-बूटी लाने को कहा था।
    आम जन भावना है कि हनुमान संजीवनी बूटी लाने गए थे, जबकि ऐसा नहीं है । वैध सुषेण ने हनुमान को …
    ▪️बाण निकालने वाली विशल्यकरणी,
    ▪️घाव भरने वाली सवर्णकरणी
    ▪️ घाव को ठीक करने वाली सन्धानकरणी जड़ी-बूटी भी लाने को कहा था।
    इन जड़ी- बूटियों को पहचानने में असमंजस के कारण ही हनुमान जी पूरा पर्वत ही ले आए थे।

    (वाल्मीकि रामायण का युद्धकांड, 102वां सर्ग)

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