Thursday, August 9, 2012

श्रीकृष्ण जन्म

नंद के आनंद भये,जय कन्हैया लाल की
जवाननकूंहाथी-घोडा, बूढनकूंपालकी।
ब्रज के लोग कन्हैया के जन्म की खुशी में नाचते हुए यह गा उठते हैं। यहां जन्माष्टमी अनोखे रूप में मनाई जाती है। संपूर्ण वातावरण वात्सल्य से भर उठता है। हर घर में खुशी की लहर दौड जाती है। मानो घर के सबसे छोटे व लाडले शिशु का जन्मोत्सव मनाया जा रहा हो।
[बधाई गायन]
नंद गांव में श्रीकृष्ण जन्म बधाई उत्सव रक्षाबंधन से ही शुरू हो जाता है। सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार, भादो माह के कृष्ण द्वितीया के दिन से यहां के नंद भवन में मदलिराऔर चाव आदि वाद्य यंत्रों पर बधाई गायन होने लगता है। ब्रज बालाएं ब्रज भयौहै महिरके पूत .. और रानी चिर जीवैतेरौश्याम .. जैसे बधाई गीत गाकर खूब नृत्य करती हैं। अगले दिन सुबह से ही अनेक कार्यक्रम होने लगते हैं। मथुरा के अधिकांश मंदिरों में जन्माष्टमी से एक दिन पहले कृष्ण सप्तमी की शाम को यशोदा महारानी को शीरा-पूडी और रसीले पदार्थो से भोग लगाया जाता है। कन्हैया के जन्म की खुशी में घर-आंगन और गली-मोहल्लों को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। घर-घर में तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनते हैं। [ठाकुर जी का श्रृंगार] इस दिन सुबह से ही अधिकांश घरों में व्रत रखा जाता है। कुछ लोग जल भी ग्रहण नहीं करते। घर-घर में धनिया की पंजीरीऔर पंचामृत बनाया जाता है। पूरे दिन भजन-कीर्तन के कार्यक्रम चलते रहते हैं। रात्रि को जैसे ही 12बजते हैं, ब्रज के अधिकांश मंदिरों और घरों से शंख, घंटा, घडियाल आदि की आवाज गूंज उठती है। सभी अपने-अपने ठाकुर विग्रहों[कृष्ण-मूर्ति] का पंचामृत से अभिषेक करते हैं।
अधिकांश मंदिरों में ठाकुर जी का सुंदर श्रृंगार किया जाता है। वृंदावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर में वर्ष भर में केवल इसी दिन सुबह मंगला आरती होती है। समूचे ब्रज में दीपावली जैसी धूम रहती है। मंदिरों और घरों में मंगल सूचक बधाई गायन होता है। जगह-जगह श्रीमद्भागवत के उन अध्यायों का कथा पाठ किया जाता है, जिनमें श्रीकृष्ण के जन्म का वर्णन है। रास-मंडलियां भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की लीला का मंचन धूमधाम से करती हैं। गोवर्धनमें श्रद्धालु उत्साह के साथ गिरिराज पर्वत की परिक्रमा करते हैं। [दिन में ही जन्माष्टमी] वृंदावन स्थित सप्त देवालयों में तीन देवालय-राधादामोदर मंदिर, राधारमणमंदिर और राधा गोकुलानंदमंदिर में जन्माष्टमी दिन में ही मना ली जाती है। माना जाता है कि राधारमणमंदिर में भगवान शालिग्रामके स्वरूप में विराजमान हैं। राधा गोकुलानंदमंदिर में प्रभु चैतन्य महाप्रभु के रूप में और राधादामोदरमंदिर में साक्षात भगवान कृष्ण गिरिराज शिला के रूप में विराजमान हैं। भक्त मानते हैं कि इन मंदिरों में ठाकुरजीप्रत्यक्ष रूप में विराजमान हैं, इसलिए वे दिन में ही जन्मोत्सव मना लेते हैं।
मंदिरों के गोस्वामी भी कहते हैं कि उनके ठाकुर जी बहुत कोमल हैं। इसलिए उन्हें रात्रि में जगाना उचित नहीं है। श्रृंगार और पूजन के बाद भक्तों के बीच प्रसाद, फल, मेवा और मिष्ठान्न बांटे जाते हैं। अपने प्रभु का दर्शन कर भक्त आनंद विभोर होकर ब्रज के लोकगीत और रसिया गाते हैं। शाम को ठाकुर जी का छप्पन प्रकार के व्यंजनों से भोग लगाया जाता है। [दधिकांदा का आयोजन] राधारमणमंदिर में जन्माष्टमी पर ठाकुर जी का अभिषेक रात्रि 12बजे के स्थान पर दोपहर 12बजे होता है। इस दिन मंदिर के श्रीविग्रहको नया पीला वस्त्र धारण कराया जाता है। साथ ही, उन्हें सोने के सिंहासन पर विराजितकिया जाता है। इस दिन मंदिर में तिल-पंजीरी का विशेष भोग लगाया जाता है। साथ ही, विशेष उत्सव आरती भी होती है। जन्माष्टमी के अगले दिन समूचे ब्रज में नंदोत्सवकी धूम रहती है। हर घर और मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण को पालने में झुलाया जाता है और बधाइयां गाई जाती हैं। हर घर, आश्रम और मंदिर में पूडी-पकवान बनते हैं। जगह-जगह दधिकांदा होता है, जिसमें दही में हल्दी मिलाकर एक-दूसरे पर उलीचाजाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कंस के मथुरा स्थित कारागार में माता देवकी के आठवें पुत्र के रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। पिता वसुदेव ने कंस के भय से उन्हें गोकुल में नंद बाबा के यहां पहुंचा दिया। अगले दिन जब गोकुल वासियों को नंद-यशोदा के घर पुत्र-रत्न की प्राप्ति का समाचार मिला, तो वे लोग उन्हें बधाई देने के लिए नंद भवन जा पहुंचे। इस परंपरा को आज भी गोकुल नाथ मंदिर में नंदोत्सवके रूप में मनाया जाता है। सुबह मंदिर से कन्हैया की झांकी शोभा-यात्रा के रूप में निकाली जाती है। भक्तगण खिलौने भी लुटाते हैं। [मटकी-फोड प्रतियोगिता] बरसाने के लोग बधाई देने के लिए नंदगावआते हैं। साथ ही, यहां स्थित नंद कुंड सरोवर पर मल्ल- दंगल का आयोजन होता है, जिसमें देश के कई नामी-गिरामी पहलवान भाग लेते हैं। यह आयोजन कृष्ण के बडे भाई बलराम की याद में किया जाता है, क्योंकि वे मल्ल युद्ध के प्रेमी थे। मंदिर प्रांगण में मटकी फोड लीला का भी आयोजन होता है, जिसमें भक्त गण कई प्रकार की अठखेलियां करते हैं। साथ ही, मंदिर-प्रांगण में दूध-दही भी बिखेर दिया जाता है। भक्त मानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण बाल-क्रीडा के दौरान दूध-दही को जमीन पर गिरा दिया करते थे। इसलिए इसे परंपरा का रूप दे दिया गया है। भक्तगण कीर्तन करते हैं, नाचते हैं और खुशियां मनाते हैं। यह कार्यक्रम दोपहर तक चलता है। लड्डू गोपाल स्वरूप ठाकुर जी झूले पर झूलते हैं और माताएं-बहनें अपने आराध्य ठाकुर के बाल रूप को निहारते हुए बलइयालेती हैं।
--- श्री गोपाल चतुर्वेदी

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