Saturday, August 4, 2012

चॉकलेट मे काफ रेनेट (बछड़े के मांस का रस मिला होता है)

क्या आप जानते है ?
चॉकलेट मे काफ रेनेट (बछड़े के मांस का रस मिला होता है)

चाकलेट का नाम सुनते ही बच्चों में गुदगुदी न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। बच्चों को खुश करने का एक प्रचलित साधन है चाकलेट। बच्चों में ही नहीं, वरन् किशोरों तथा युवा वर्ग में भी चाकलेट ने अपना विशेष स्थान बना रखा है।

पिछले कुछ समय से टॉफियों तथा चाकलेटों का निर्माण करने वाली अनेक कंपनियों द्वारा अपने उत्पादों में आपत्तिजनक अखाद्य पदार्थ मिलाये जाने की खबरें सामने आ रही हैं। कई कंपनियों के उत्पादों में तो हानिकर रसायनों के साथ-साथ गायों की चर्बी मिलाने तक की बात का रहस्योदघाटन हुआ है।
गुजरात के समाचार पत्र 'गुजरात समाचार' में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार, 'नेस्ले यू.के. लिमिटेड' द्वारा निर्मित 'किटकेट' नामक चाकलेट में कोमल बछड़ों के 'रेनेट' (मांस) का उपयोग किया जाता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि 'किटकेट' बच्चों में खूब लोकप्रिय है। अधिकतर शाकाहारी परिवारों में भी इसे खाया जाता है। नेस्ले यू.के.लिमिटेड की न्यूट्रिशन आफिसर श्रीमति वाल एन्डर्सन ने अपने एक पत्र में बताया किः 'किटकेट के निर्माण में कोमल बछड़ों के रेनेट का उपयोग किया जाता है। फलतः किटकेट शाकाहारियों के खाने योग्य नहीं है।" इस पत्र को अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका 'यंग जैन्स' में प्रकाशित किया गया था। सावधान रहो ऐसी कंपनियों के कुचक्रों से ! टेलिविजन पर अपने उत्पादों को शुद्ध दूध पीने वाले अनेक कोमल बछड़ों के मांस की प्रचुर मात्रा अवश्य होती है। हमारे धन को अपने देशों में ले जाने वाली ऐसी अनेक विदेशी कंपनियाँ हमारे सिद्धान्तों तथा परम्पराओं को तोड़ने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं।

ऐसे हानिकारक उत्पादों के उपभोग को बंद करके ही हम अपनी शाकाहारी संस्कृति की रक्षा कर सकते हैं। इसलिए हमारी संस्कृति को तोड़ने वाली ऐसी कम्पनियों के उत्पादों के बहिष्कार का संकल्प लेकर आज और अभी से भारतीय संस्कृति की रक्षा में हम सबको कंधे से कंधा मिलाकर आगे आना चाहिए। इस ओर सरकार का भी ध्यान खिंचवाना चाहिए।

देखिये पढ़िये खुद चॉकलेट की विशेषज्ञ वैबसाइट क्या कहती है ?
http://goo.gl/RlT8E
 


और कुछ संदर्भ:
http://goo.gl/eM4q7

http://goo.gl/YXf2M

http://goo.gl/EO8mb

केडबरी के कुछ उत्पाद पर प्रतिबंध
http://goo.gl/F0EXp

क्या केट्बरी शाकाहारीयो के लिए भी उत्पाद बनाती है : हीना मोदी ब्लॉग
http://goo.gl/vhiGe

यह बात घर करती जा रही है की ये खाद्य कंपनियाँ खाद्य व विपणन मामलों के मंत्रालयों मे अपनी मर्जी से नियुक्ति करती है वहाँ कोई शाकाहारी अफसर नहीं होना चाहिए ऐसा है शायद ?

मित्रो एक और बात आप ध्यान दे दीवाली से एक महीना पहले ही इस देश का बिकाउ मीडिया गला फ़ाड़ फ़ाड़ कर चिलाने लगता है ।

इतने लीटर नकली दूध मिला
इतने लीटर नकली मावा मिला
इतने लीटर नकली घी मिला

मिठाईयो मे मिलाया जाता ये वो । और पता नही क्या क्या ।

और बोल बोल के, बोल बोल के, बोल बोले के, आपका इतना दिमाग खराब कर दिया जाता है ।
कि आपको लगता है जो मिठाई मैं खरीदुगां उसे में मिलावट होगी ।

और हारकर आप इस बढ़ी कंपनियो का माल खरीदने का लग जाते है ।

लेकिन देश का बिकाउ मीडिया इन बड़ी - बड़ी कंपनियो के खिलाफ़ कुछ नही बोलेगा ।

और एक बात मित्रो आप कहेगें अगर ऐसा हैं । तो इस पर green निशान क्यों होता है ।
ये green और red का कानुन भी बड़ा पचीदा है ।

इस कानुन के अनुसार अंडे का छिलका , जानवरो के नाखुन और पंख , और जानवारो की चर्बी ऐसी एक दो चीजे और को मासाहार मे नही गिना जायेगा ।

इसके लिये green निशान का ही प्रयोग होगा ।
इसी का फ़ायदा उठा कर कंपनिया ये सब करती है
 --- श्री अनिलकुमार

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