Thursday, August 16, 2012

मोह

मोह व्यक्ति को अँधा कर देता है! मोह से अँधा व्यक्ति अपने तर्क और आचरण से ज्ञानी व् शुद्ध होने का आभास करत है! वह अपने मोह बिंदु के समर्थन में जो भी करता है उससे दूसरे के हित और अधिकार का हनन होता है! उससे आपस में कलह उत्पन्न होती है और आपसी लोकाचार समाप्त हो जाता है! दोनों आमने- सामने खड़े हो जाते है जिससे स्तिथि विध्वंस को जन्म दे देती है! महाभारत क़ी संक्षेप क़ी गाथा यही है! इसीलिए मोह से प्रतिएक प्राणी को बचना चाहिए! मोह के कारण ही परिवार टूट रहे है! जब हमारे मन में किसी व्यक्ति या वस्तु के प्रति मोह उत्पन्न होता है तो हम अपने चिंतन में विवेकहीन हो उठते है! यही है मोह ग्रस्त व्यक्ति का अंधापन?
मोह अन्धता का निवारण तो व्यक्ति को स्वयं ही करना होता है! स्वाध्याय, सत्संग या गुरु इसमें सहायक तो हो सकते है, परंतु मोह को मिटा नहीं सकते! कृषण और विदुर ने धर्तरास्ट्र को उनके मोह के प्रति
इंगित ही नहीं किया था अपितु उससे मुक्त हो सकने के उपाय भी बताये थे, लेकिन वे सभी असफल ही रहे! मोह मन के अन्दर क़ी अन्धता का नाम है! मोह को तभी अपने से दूर किया जा सकता है, जब व्यक्ति स्वयं आत्मनिरीक्षण कर विवेक क़ी पुतली पर जमे मोह रूपी मॉल के आस्तित्व को पहचानने और उससे उत्पन्न होने वाली द्रस्ति दोष से होने वाली हानि को समझे!
राम कृषण परम हंस कहते है क़ी मोह तब जायेगा तब व्यक्ति के अन्दर बैठा 'मै" का विसर्जन हो जायेगा! इस "मै' से ही 'मेरा" जन्मता है ! धृतरास्ट्र यही सोचते थे क़ि मै राजा हू, इसीलिए मेरा पुत्र ही मेरे बाद राजा बनना चाहिए! युधिस्तर के साथ जो भी अन्याय हुआ, वह धृतरास्ट्र के अंध पुत्र- मोह के कारण ही हुआ! मोह व्यक्ति को अपने कर्तव्य से विलग कर देता है! राजा होने के नाते धृतरास्ट्र पुत्र- मोह में अंधे थे और योद्धा होने के नाते अर्जुन सामने युद्ध के लिए तैयार आत्मीयो के मोह से! मोह जब करता को पथभ्रष्ट करता है तब युद्ध क़ि स्तिथि उत्पन्न होती है! क्रोध बुद्धि को भ्रष्ट करता है जिससे व्यक्ति असंतुलित होकर विनाश को प्राप्त होता है! मोह अन्धता से बचने और उससे उभरने क़ी औषधि है सतगुरु? 
---स्वामी स सरस्वती

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