Saturday, August 4, 2012

आधुनिक वेष भूषा

मैं इस पोस्ट से किसी नारी का सम्मान हनन नहीं करना चाह रहा. अगर यह पोस्ट गरिमा के अनुरूप नहीं तो मुझे छोटा समझकर माफ़ कीजियेगा .
विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले भी हम ही थे औेर आज इन वस्त्रों को सफलता का प्रतीक मानने वाले भी हम ही हैं. चलो एक हद तक, आज के समय में हम अंग्रेजी वस्त्रों के बिना काम नहीं चला सकते , सबके साथ भारतीय वस्त्र पहनना संभव नहीं होता. लेकिन एक अधिकतम संभावित सीमा तक हम विदेशी वस्त्रों का त्याग कर सकते हैं , तो क्या हमें उस अधिकतम सीमा तक उनका त्याग नहीं करना चाहिये ?
आज मैं साईना नेहवाल का एक मैंच देख रहा था. आज से कुछ दिन पहले मैंने पी कश्यप का मैच भी देखा था. आप मुझे बतायें कि एक ही खेल खेलने वाले इन दोनों खिलाड़ियों की भूषा में अंतर क्यों होना चाहिये ?
क्यों नारी को इस प्रकार की डिजायन किये गये वस्त्र पहनने को मजबूर किया जाता है जो लिंग भेद को दिखाते हैं. क्या सच में बेडमिंटन खेल में महिला और पुरुष खिलाड़ी एक जैसे वस्त्र नहीं पहन सकते ?
कृपया मेरी बात को अच्छी - बूरी मानसिकता से ऊपर उठकर व्यवहारिक द्रष्टिकोण के साथ लें. ऐसा समझना भूल हो सकती है कि सभी लोग भीष्म पितामह जैसे संयमी हो सकते हैं. थोड़ा व्यवहारिक द्रष्टिकोण से देख कर मुझे बतायें.

आप सोचेंगे कि मैं वस्त्रों को धर्म के साथ जोड़ रहा हूँ, लेकिन नहीं(मैं कौन होता हूँ वस्त्रों को धर्म के साथ जोड़ना वाला), मैं वस्त्रों को परंपरा और विज्ञान के साथ जोड़ रहा हूँ. भूषा के साथ विज्ञान और मनोविज्ञान दोनों जुड़े रहते हैं.
आज यदि किसी से कह दो कि भइ्या जींस पहनना गलत है तो वो सर पे चढ़कर मारने को आता है, लेकिन एक सच यह भी है कि , भारत की जलवायु के हिसाब से अगर कोई सबसे खराब वस्त्र हो सकता है तो ये जींस ही है. हम गर्म देश में रहते हैं तो हमें शरीर पूरा ढकने वाले हवादार वस्त्र चाहिये जैसे सलवार- कुर्ता या धोती कुर्ता. यह तो थी विज्ञान की बात.

शरीर पूरा ढकना केवल इसलिये नहीं कि नग्नता बुरी बात है, बल्कि इसलिये कि हमारे देश में सूर्य की ऊर्जा सबसे ज्यादा पड़ती है, और केवल प्रातःकाल की सूर्य रश्मियाँ ही सेवन के योग्य होती हैं. दूसरी बात नग्नता की भी उतनी ही महत्वपूर्ण है(कृपया नागा बाबा, जैन मुनियों का संदर्भ ना दें, क्योंकी नागा बाबा और जैन मुनि , नग्न बाद में है , पहले वे क्रमशः बाबा और मुनि है. समाज को लेकर चलें. नागा बाबा और जैन मुनि बेशक हमारे समाज के ही हैं लेकिन उनके लिये parameters दूसरे हैं). नग्न , पुरुष हो या स्त्री , दोनों ही श्लील नहीं हैं.
अब भूषा के मनोविज्ञान की बात करते हैं. मान लीजिये , आपके सामने मैले कुचेलै कपड़े पहनकर सचिन तेंदुलकर आये तो क्या आप सहसा यकीन कर लेंगें ? और बाबा रामदेव के द्वारा महिलाओं के वस्त्र पहन लेने पर सहसा कितने लोगों को यकीन हुआ था ? पहले भी हमारे कई पुरुष क्रांतिकारी महिला के वेश में रहकर कई बार षडयंत्रों से बच निकले थे, क्यों ?? क्या इससे यह साबित नहीं होता कि भूषा के पीछे एक गहन मनोविज्ञान है ? याद कीजिये पांडवों के अज्ञातवास का समय ? याद किजिये भगवान का मोहिनी अवतार ? याद किजिये रावण का छद्मवेष जब सीता हरण हुआ ??

शायद भूषा का मनोविज्ञान बहुत गहरा है, इसकी महत्ता भूषा के विज्ञान से भी ज्यादा है. इसीलिये कहा जाता है कि सलीके से कपड़े पहनो. वास्तव में वस्त्र, प्रत्यक्ष रूप से नैतिकता का मामला नहीं है लेकिन परोक्ष रूप से यह नैतिकता का मामला भी है. कैसे ??
द्रौपदी का चीर हरण क्या शिक्षा देता है ? भागवत की शुकदेव व व्यास जी वाली कथा- क्यों सरोवर में नहा रही स्त्रियों ने बूढ़े व्यास जी को देखते ही बदन छुपाया लेकिन नग्न युवक शुकदेव को देखकर नहीं छुपाया ??
काफी कम कपड़े पहनने वाली तारिकायें भी, अचानक , वार्डरोब मालफंक्शन होने पर व्याकुल सी हो जाती हैं, क्यों ??

जब बच्चा बहुत छोटा होता है उसे घरों में नग्न ही नहलाया जाता है.कई बार पड़ोस की तायी, चाचा, बुआ भी बच्चे को नहलाती हैं. लेकिन जब बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाता है और खुद से नहाने लगता है ,तब तो वह नग्न नहीं नहाता ? क्यों ? लज्जा के कारण . इस लज्जा का जन्म इसी नैतिकता से हुआ है. इसीलिये कृष्ण चीर हरण की लीला करते हैं, यही समझाने के लिये कि वस्त्र नैतिकता से भी जुड़े हैं.
---  स्टीफन डेवलीन

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