Friday, June 1, 2012

गायत्री मंत्र में अनेकानेक तथ्य


 
गायत्री मंत्र में अनेकानेक तथ्यों को ढूँढ़ निकाला है और यह समझने-समझाने का प्रयतन किया है कि गायत्री मंत्र के २४ अक्षर में किन रहस्यों का समावेश है । उनके शोध निष्कर्षों में से कुछ इस प्रकार हैं-

(१) ब्रह्म-विज्ञान के २४ महाग्रंथ हैं । ४ वेद, ४ उपवेद, ४ ब्राह्मण, ६ दर्शन, ६ वेदाङ्ग । यह सब मिलाकर २४ होते हैं । तत्त्वज्ञों का ऐसा मत है कि गायत्री के २४ अक्षरों की व्याख्या के लिए उनका विस्तृत रहस्य समझाने के लिए इन शास्रों का निर्माण हुआ है ।

(२) हृदय को जीव का और ब्रह्मरंध्र को ईश्वर का स्थान माना गया है । हृदय से ब्रह्मरंध्र की दूरी २४ अंगुल है । इस दूरी को पार करने के लिए २४ कदम उठाने पड़ते हैं । २४ सद्गुण अपनाने पड़ते हैं- इन्हीं को २४ योग कहा गया है ।

(३) विराट् ब्रह्म का शरीर २४ अवयवों वाला है । मनुष्य शरीर के भी प्रधान अंग २४ ही हैं ।

(४) सूक्ष्म शरीर की शक्ति प्रवाहिकी नाड़ियों में २४ प्रधान हैं । ग्रीवा में ७, पीठ में १२, कमर में ५ इन सबको मेरुदण्ड के सुषुम्ना परिवार का अंग माना गया है ।

(५) गायत्री को अष्टसिद्धि और नवनिद्धियों की अधिष्ठात्री माना गया है । इन दोनों के समन्वय से शुभ गतियाँ प्राप्त होती हैं । यह २४ महान् लाभ गायत्री परिवार के अन्तर्गत आते हैं ।

(६) सांख्य दर्शन के अनुसार यह सारा सृष्टिक्रम २४ तत्त्वों के सहारे चलता है । उनका प्रतिनिधित्व गायत्री के २४ अक्षर करते हैं ।

'योगी याज्ञवल्क्य' नामक ग्रंथ में गायत्री की अक्षरों का विवरण दूसरी तरह लिखा है-

र्कम्मेन्दि्रयाणि पंचैव पंच बुद्धीन्दि्रयाणि च ।
पंच पंचेन्दि्रयार्थश्च भूतानाम् चैव पंचकम्॥
मनोबुद्धिस्तथात्याच अव्यक्तं च यदुत्तमम् ।
चतुर्विंशत्यथैतानि गायत्र्या अक्षराणितु॥
प्रणवं पुरुषं बिद्धि र्सव्वगं पंचविशकम्॥

अर्थात्-(१) पाँच ज्ञानेन्दि्रयाँ (२)पाँच कर्मेन्दि्रयाँ (३) पाँच तत्त्व (४) पाँच तन्मात्राएँ । शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श । यह बीस हुए । इनके अतिरिक्त अन्तःकरण चतुष्टय (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) यह चौबीस हो गये । परमात्म पुरुष इन सबसे ऊपर पच्चीसवाँ हैं ।

ऐसे-ऐसे अनेक कारण और आधार है, जिनसे गायत्री में २४ ही अक्षर क्यों हैं, इसका समाधान भी मिलता है । विश्व की महान् विशिष्टताओं के मिलते ही परिकर ऐसे हैं, जिनका जोड़ २४ बैठ जाता है । गायत्री मंत्र में उन परिकरों का प्रतिनिधित्व रहने की बात, इस महामंत्र में २४ की ही संख्या होने से, समाधान करने वाली प्रतीत हो सकती है ।

'महाभारत' का विशुद्ध स्वरूप प्राचीन काल में 'भारत-संहिता' के नाम से प्रख्यात था । उसमें २४००० श्लोक थे-''चतुर्विंशाति साहस्रीं चक्रे भारतम्'' में उसी का उल्लेख है । इस प्रकार महत्त्वपूर्ण ग्रंथ रचियताओं ने किसी न किसी रूप में गायत्री के महत्त्व को स्वीकार करते हुए उसके प्रति किसी न किसी रूप में अपनी श्रद्धा व्यक्त की है ।

वाल्मीकि रामायण में हर एक हजार श्लोकों के बाद गायत्री के एक अक्षर का सम्पुट है । श्रीमद् भागवत के बारे में भी यही बात है
 

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