भगवान के नाम मे पाप नाश कीजितनी सामर्थ्य है । प्राणी उतने पाप कर ही नही सकता --
नाम्नोऽस्ति यावती शक्तिः पापनिर्हरणे हरेः ।
न तावत् पातकं कर्तुं शक्नोति पातकी जनः । ।
पापक्षय के लिए नामोच्चारण को प्रभुमहिमा नामप्रभाव का ज्ञान श्रद्धा
विश्वास शुद्ध देश शुभकाल आदि के सहयोग की कोई अपेक्षा नही है;क्योकि
समस्तपापों के ध्वंस की उसमे स्वाभाविक शक्ति है। वस्तु की सहज शक्ति अपना
कार्य करने के लिए हमारे ज्ञान श्रद्धा एवं विश्वासादि की अपेक्ष नही रखती ।
जैसे अग्नि के महत्व का ज्ञान या उसपर श्रद्धा विश्वासहो या नही उसका
स्पर्श होने पर वह जलायेगी उसी प्रकार भगवान का नाम भी जपने पर हमारे
सम्पूर्ण पापो को जला देगा जैसे आग लकडी को -
अज्ञानादथवा ज्ञानादुत्तमश्लोक नाम यत् । संकीर्तितमघं पुंसां दहत्येधो यथानलः । । --भा0पु06
अजामिल ने भगवान का नही अपितु अपने पुत्रनारायण का नाम मरते समय लिया था
वह भी भगवान् के धाम चला गया फिर जो श्रद्धा से साक्षात् भगवान के ही नाम
का उच्चारण। करते है वे यदि भगवद्धाम चले जाँय तो क्या आश्चर्य!!!--
म्रियमाणो हरेर्नाम गृणन् पुत्रोपचारितम् । अजामिलोऽप्यगाद्धाम किं पुनः
श्रद्धया गृणन् । ।-भा0पु06/2/49.हंसी मजाक अनादरपूर्वक या किसीप्राणी का
नाम भगवान केनाम के समान है तो उसका उच्चारण भी निखिल पापों का नाशक
है-साड़्केत्यं पारिहास्यं स्तोभं हेलनमेव वा। वैकुण्ठनामग्रहणमशेषाघहरं
विदुः । 6/2/14. एक बार ही नाम का जिह्वा से उच्चारण हुआ कि प्रारब्ध से
भिन्न अनन्तानन्त जन्मो के पातकपुञ्ज भस्मसात् हो जाते हैं । यह बात भगवान
के पार्षद यमदूतो से कहते है -इस अजामिल ने करोड़ो जन्मो के पापो का
प्रायश्चित्त कर लिया; क्योकि इसने विवशता मे भगवान श्रीहरि का नाम लिया
-अयं हि कृतनिर्वेशो जन्मकोट्यंहसामपि । यद् व्याजहार विवशो नाम
स्वस्त्ययनं हरेः । । 6/2/7. तात्पर्य यह कि किसी भी तरह एक बार भगवान के
नाम का उच्चारण हो जाय तो निश्चित ही सम्पूर्ण पाप जल जायेंगे । पर हमे 10
नामापराधो से बचना होगा इसके अनुभव के लिए। दूसरी बात यह कि किसी महापुरुष
का अपमान भी न हो ;क्योकि अपमान से जन्य पाप नाम। से भी नही कटते । अतएव जय
विजय को सनकादि के अपमान का फल 3 बार जन्म लेकर भोगना पड़ा और महर्षि
शिवावतार दुर्वासा जी एक वर्ष सर्वत्र भटककर महाराज अम्बरीष से क्षमा मागे
तब सुदर्शन चक्र से बचे । जब एकबार के नामकीर्तन से समस्त पाप नष्ट हो
गये तो हमारे कार्यो मे रुकावटे क्यो ? और हमे दुःख क्यो मिलता है ? यह
प्रश्न खड़ा होता है । इसका सीधा उत्तर दिया जा चुका है कि एक बार नाम
लेने से प्रब्ध से भिन्न पापो का नाश होता है । प्रारब्ध का नही । प्रारब्ध
उन पुण्य और पापो को कहते है जिन्हे भोगने के लिए यह शरीर मिला है ।
नामजप के लिए दीक्षा आदि की भी आवश्यकता नही है फिर भी किसी महापुरुष का
सान्निध्य प्राप्त हो जाय तो सोने मे सुगन्ध है । जब एक बार के नामोच्चारण
से सभी पाप नष्ट हो गये तो बार बार नाम जपने की क्या आवश्यकता ? उत्तर -
अनन्त पापो का विधवंस तो हो गया किन्तु उनके संस्कार अवशिष्ट है जो पुनः
पुनः उन-2 पापो मे प्रवृत्त कराते है। उनक विनाशार्थ बार बार नाम जप आवश्यक
है । इससे नाम के संस्कार जैसे -2 बढ़ेगे वैसे-2 पापो के संस्कार नष्ट
होगे और अन्त काल मे भगवान का स्मरण होगा ; क्योकि जिसका अभ्यास होता है
अन्त समय मे उसी का स्मरण होता है । - अन्त्यस्मृतिः अभ्यस्त विषयैव भवति ।
संस्कार वैसे होते है जैसे दही के पात्र से दधि निकालकर भलीभाति साफ कर
लेने पर भी कुछ समय बाद उसे सूंघने पर उसकी गन्ध का पुनः अनुभव होता है ।
समझ लीजिए यह दही का संस्कार है । ऐसे ही पापो का संस्कार है जिन्हे विनष्ट करने के लिए बार बार नामस्मरण की आवश्यकता है ।
>>>>> कोन नाम जपें <<<<<
भगवान के किसी भी नाम का जप करे जो आपको अच्छा लगता हो उसी से मोक्ष
पर्यन्त सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि हो जायेगी। पाप नाश से भिन्न कामनाओ की
पूर्ति हेतु भक्ति नामकीर्तन के लिए आवश्यक है। ये रहस्य विष्णुधर्मोत्तर
पुराण से ज्ञात होगे --नामानि सर्वाणि हि तस्य राजन् भवन्ति
कामाखिलदायकानि ।
यदेव सड़्कीर्तयते स भक्त्या तस्मादवाप्नोति हि
कामसिद्धिम् । । -122/14. कोई एक नाम चुन ले - इसका तात्पर्य यह मत
लीजियेगा कि अनेक नाम या सहस्रनाम का निषेध हो रहा है अपने मनमुताबिक नाम
से पूर्वोक्त सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं ;क्योंकि भगवान के सभी नाम समस्त
पदार्थो को देने वाले हैं ---
सर्वाणि नामानि हि तस्य राजन्
सर्वार्थसिद्धानि भवन्ति पुंसः । तस्माद्यथेष्टं खलु देवनाम सर्वेषु
कार्येषु जपेत्तु भक्त्या । । --123/16.
इससे यह भी सिद्ध हुआ कि
हमारे ऋषियो मुनियो महात्माओं इन सभी ने भगवान के किसी ऐक नाम का आश्रय
लेकर भगवत्कृपा प्राप्त की। प्रह्लाद मीरा रामनाम (नरसिंहपुराण)कबीरजी र्म
नाम --जीभड़िया छाला पड़ी राम पुकारिपुकारि--कबीरसाहब का बीजक ग्रन्थ। इसी
प्रकार कृष्ण नारायण विट्ठल आदि नाम समझे ।
--- आचार्य सियरामदास नैयायिक
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