Sunday, September 30, 2012

यज्ञ मात्र श्रद्धा का विषय नहीं है ,,,यह एक प्रयोग जन्य विज्ञान है इसे अन्य भौतिक प्रयोगों के समान ही विज्ञान 
की प्रयोगशाला मे सिद्ध किया जा सकता है
विज्ञान अब इस निष्कर्ष पर पहुचता जा रहा है कि हानिकारक या लाभदायक पदार्थ उदर मे पहुच कर उतनी हानि नहीं पहुचाते जितना उसके द्वारा उत्पन्न वायु विक्षोभ प्रभावित करता है ,,,किसी वस्तु को उदरस्थ करने पर होने वाली लाभ हानि उतनी अधिक प्रभावशाली नहीं होती जितनी की उसके विद्युत आवेग संवेग
कोई भी पदार्थ सामान्य स्थिति मे जहाँ रहता है वहाँ के विद्युत कम्पनों से कुछ ना कुछ प्रभाव छोड़ता है पर यदि अग्नि संस्कार के साथ उसे जद दिया जाए तो उसकी प्रभाव शक्ति अनंत गुनी बढ़ जाती है
शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि तम्बाकू मे रहने वाले रसायन उतने हानिकारक नहीं हैं जितने कि उसके धुएं के कारण सांस लेने पर उत्पन्न प्रभाव ,,,मतलब पास मे बैठने वाले को भी हानि उठानी पड़त
ी है ,,,तथा इससे बचा भी नहीं जा सकता ,,(( यह नैतिकता का पाठ पढाये बिना कैसे नियंत्रित किया जा सकता है ??))
आक्सीजन की समुचित मात्रा होने पर ही वायु हमारे लिए स्वस्थ्य रक्षण कर सकती है ,,अगर उसमे कार्बन आक्साइड तथा अन्य विषैली गैसें अधिक मात्रा मे शामिल हो जाएँ तो वह ही हमारे लिए अत्यधिक नुक्सान दायक हो जायेगी इसमें शंका नहीं है ....वायु प्रदुषण से निपटने के लिए सरकार क्या कदम उठा सकती है ?? यह भी बहुत बड़ा प्रश्न है ,,,विश्व की घटनाओं को भी अगर देखा जाए तो वह इस ओर प्रबल संकेत करती हैं कि अगर वायु प्रदूसन इसी तरह बढ़ता रहा तो मनुष्य का अस्तित्व ही खतरे मे पड़ जाएगा
नैसर्गिक तत्वों के प्रति श्रद्धा और सानिध्यता स्थापित किये बिना मनुष्य कभी भी सुखी नहीं रह सकता ,,,और सनातन धर्म की यज्ञ आदि प्राचीन परम्पराओं मे इसके प्रति अपार प्रेम और श्रद्धा शामिल थी ,, जो कि उसकी प्रत्येक कृति मे शामिल थी जिसे हम आज नकारते जा रहे हैं
जीवन रक्षक दवा सामने है फिर भी बीमार बने बैठे हैं और अपने को काल के गाल मे जाते हुए देख रहे हैं ,,आईये लौट चलें

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