Sunday, September 30, 2012

वैदिकसंस्कृति

मित्रों कभी सम्पूर्ण विश्व में फैली वैदिकसंस्कृति के महान ऋषि महर्षियों ने अपने तप और ज्ञान द्वारा जीवन के रहस्यों को जान लिया था!उन्होंने जीवन और इसके बाद की अवस्था को ध्यान में रखकर कुछ कर्म निर्धारित किये थे,उनमें से ऐक कर्म है श्राद्ध!
श्राद्ध कर्म का मूल तत्व है श्रद्धा!इससे हम अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान अर्पित करते है!हमारी संस्कृति में इहलोक के साथ परलोक का भी चिंतन किया गया है।
ब्रह्म पुराण का कथन देखिए,''यो वा विधानत: श्राद्ध कुर्यात स्वविभवोचितम/आब्रह्मस्तम्बपर् यन्तं जगत प्रीणती मानव://अर्थात 'जो व्यक्ति विधानपूर्वक श्राद्ध करता है वह मात्र अपने पितरों को हीनहीं,वरन संपूर्ण ब्रह्मांड को तृप्त कर देता है!!
श्राद्ध क्या है?इस बारे में पुलस्त्य-स्मृतिका कथन देखें,''श्रद्धया क्रियते यस्माच्छा्रद्ध तेन प्रकीति्र्तं / यानि अत्यंत श्रद्धा से किये जाने के कारण इसे श्राद्ध कहते है!
हमारी संस्कृति और भारतीय दर्शन के अनुसार मृत्यु से मात्र स्थूल शरीर नष्ट होता है सूक्ष्म शरीर यानि आत्मा नष्ट नहीं होती!इसबारे में श्रीमद्भगवद्गीता कहती है कि ''अजोनित्य: शाश्वतोयं पुराणों न हन्यते हन्यमाने शरीरे//यानि आत्मा नित्य अजन्मा अजर अमर है!तथा अन्य श्लोकों में कहा गया हैकि जैसे हम पुराने वस्त्र बदलकर नये वस्त्र पहिनते है उसी प्रकार ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करता है!
इसीलिए उस सूक्ष्म शरीर यानि आत्मा की तृप्ति हेतु ये श्राद्ध कर्म होते है!
इसके लिए ऋषि मुनियों ने ऐक पक्ष पितरों को समर्पित किया है जिसे 'पितृपक्ष' कहा जाता है यह अश्विन मास के कृष्णपक्ष को पितरों केश्राद्ध और तर्पण हेतु नियत किया है!हमारे शास्त्रों के अनुसार इस मास में हमारे पितर अपने अपने लोकों से आकर इस भूमडंल पर विचरण करते है और अपने सूक्ष्म शरीर से पुत्रों आदि के घर द्वार पर अपने लिए सम्मान,स्मरण,पूजन आदि की अपेक्षा लिए आते है इस मास में जो गृहस्वामी उनके लिए श्राद्धआदि कर्म करते है उन्हें वे प्रसन्नहोकर आशीष देते हुए अपने लोक चले जाते है लेकिन जिन घरों में ये सब कर्म नहीं होते उनके पितृ निराश हो श्वास छोड़ते हुए जाते हैजिससे ऐसे घरों में सुख शान्ति नष्ट हो जातीहै!
इस वर्ष पित्रपक्ष का प्रथम दिन 30 सितंबर से आरम्भ होकर सोमवार,1 अक्टूबर को दोपहर तकपड़ रहा है!(कृपया पुष्टि कर लें)
पितृपक्ष के कृष्ण पक्ष में होने के कारण इसमें पूर्णिमा तिथि अनुपलब्ध होती है तो धर्मसिधुं का कहना है कि पूर्णिमा का श्राद्ध द्वादशी या अमावस्या को करना उचित रहता है कुछ विद्वान भाद्रपद की पूर्णिमा को भी करने को कहते है!जिन व्यक्ति को अपने पूर्वजों की निधन तिथि याद न हो वे उन सबका श्राद्ध पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन कर सकते है/
गरूड पुराण और अग्नि पुराण में लिखा है कि पितृपक्ष में श्राद्ध करने वाले को दीर्घायु,धन,संपत्ति,संतान,समृद्धि और स्वर्ग की प्राप्ति होती है!ये कर्म और श्लोक संपूर्ण विश्व के हित चिंतन के लिए है!
कूर्मपुराण में श्राद्ध कर्म यज्ञ के समान फल देने वाला बताया है!तथा विष्णुपुराण मेंलिखा है कि यदि किसी की वित्तीय स्थिति श्राद्ध कर्म को करने लायक न हो तो वो व्यक्ति केवल ये करे,किसी गौ के पास जाये और कुछ घास या आटे की लोई लेकर गौ माता के पास ये शब्द कहकर अर्पित कर दे,''हे माता मैं अपने पितरों की तृप्ति हेतु आपमें समस्त देवी देवताओं को प्रणाम करते हुए आपको ये पदार्थ अर्पित करता हूँ,आप मेरे पितरों को तृप्ति प्रदान करें''!यदि ये भी सम्भव ना हो क्योंकि शहरों में अक्सर गौमाँता के दर्शन नहीं होते तो 'ऐक पात्र में जल लेकर काले तिलके सहित उसे 'तुलसी' देवी के पौधे को सूर्य की ओर मुख करके अर्पण कर दें और वही शब्द कहें परंतु ''हे गौ माँ'' के स्थान पर ''हे सूर्यदेव'' का उच्चारण करें!इस प्रकार भी श्राद्ध करने से आपके पितृ संतुष्ट होंगे इसमें संदेह नहीं,क्योंकि ये स्वम भगवान विष्णु का कथन है!

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