ज्येष्ठ
मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी के नाम से जानी जाती है. इस
एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. ऋषि वेदव्यास जी के
अनुसार इस एकादशी को भीमसेन ने धारण किया था. इसी वजह से इस एकादशी का नाम
भीमसेनी एकादशी पडा. शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से व्यक्ति को
दीर्घायु तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस एकादशी व्रत को निर्जल रखा
जाता है. अर्थात इस व्रत में जल का सेवन नहीं करना चाहिए. वर्ष 2012 में 1
जून को निर्जला एकादशी रहेगी.
इस एकादशी को करने से वर्ष की 24
एकादशियों के व्रत के समान फल मिलता है. यह व्रत करने के पश्चात द्वादशी
तिथि में ब्रह्मा बेला में उठकर स्नान,दान तथा ब्राह्माण को भोजन कराना
चाहिए. इस दिन "ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करके गौदान,
वस्त्रदान, छत्र, फल आदि दान करना चाहिए.
निर्जला एकादशी व्रत फल | Fruits of Nirjala Ekadashi Vrat
निर्जला एकादशी व्रत के दिन अन्न का सेवन नहीं किया जाता है. मिथुन
संक्रान्ति के मध्य ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को निर्जल व्रत
किया जाता है. इस एकादशी व्रत में स्नान और आचमन में जल व्यर्थ नहीं करना
चाहिए. आचमन करने के लिये कम से कम जल का प्रयोग करना चाहिए. शास्त्रों के
अनुसार आचमन में अधिक जल का प्रयोग व्यक्ति के पापों में वृ्द्धि करता है.
इसके अतिरिक्त इस एकादशी के दिन भोजन भी नहीं करना चाहिए. भोजन करने से
व्रत के फल नष्ट हो जाते है.
सूर्योदय से लेकर सूर्योस्त तक
मनुष्य़ जलपान न करें, तो उससे 24 एकादशियों के व्रत करने के समान फल
प्राप्त होते है. इसके अतिरिक्त द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठना
चाहिए. इसके पश्चात भूखे ब्राह्माण को भोजन कराना चाहीए. इसके बाद ही भोजन
करना चाहिए.
इस एकादशी का व्रत करना सभी तीर्थों में स्नान करने
के समान है. निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सभी पापोम से मुक्ति
पाता है. जो मनुष्य़ निर्जला एकादशी का व्रत करता है. उनको मृ्त्यु के समय
मानसिक और शारीरिक कष्ट नही होता है. यह एकादशी पांडव एकादशी के नाम से भी
जानी जाती है. इस व्रत को करने के बाद जो व्यक्ति स्नान, तप और दान करता
है, उसे करोडों गायों को दान करने के समान फल प्राप्त होता है.
निर्जला एकादशी व्रत विधि | Nirjala Ekadashi Vrat (Fast) Vidhi
निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिये दशमी तिथि से ही व्रत के नियमों का
पालन करना चाहिए. इस एकादशी में निर्जल व्रत करना चाहिए. और दिन में "ऊँ
नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. इस दिन गौ दान करने का
भी विशेष विधि-विधान है. इस दिन व्रत करने के अतिरिक्त स्नान, तप आदि कार्य
करना भी शुभ रहता है.
जो मनुष्य़ इस व्रत को करता है. इस व्रत
में सबसे पहले श्री विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए. इस दिन ब्राह्माणों को
दक्षिणा, मिष्ठान आदि देना चाहिए. व्रत के दिन इसकी कथा अवश्य सुननी चाहिए.
तथा व्रत की रात्रि में जागरण करना चाहिए.
निर्जला एकादशी व्रत कथा | Nirjala Ekadasi Vrat Katha
एक समय की बात है, भीमसेन ने व्यास जी से कहा की हे भगवान, युधिष्ठर,
अर्जुन, नकुल, सहदेव, कुन्ती तथा द्रौपदी सभी एकादशी के दिन व्रत करते थे.
मगर मैं, कहता हूँ कि मैं भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता. मैं दान देकर वासुदेव
भगवान की अर्चना करके प्रसन्न कर सकता हूं. मैं बिना काया कलेश की ही फल
चाहता हूं
इस पर वेद व्याद जी बोले, हे भीमसेन, अगर तुम स्वर्गलोक
जाना चाहते हो, तो दोनों एकादशियों का व्रत बिना भोजन ग्रहण किये करों.
ज्येष्ठ मास की एकादशी का निर्जल व्रत करना विशेष शुभ कहा गया है. इस व्रत
में आचमन में जल ग्रहण कर सकते है. अन्नाहार करने से व्रत खंडित हो जाता
है. व्यास जी की आज्ञा अनुसार भीमसेन ने यह व्रत किया और वे पाप मुक्त हो
गये.
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