'विद्या' वही है जो...........................
एक समय चार विद्वान एक नाव पर सवार हुए दूसरी ओर जाने के लिए। उनमें एक भूगोलशास्त्री था, दूसरा ज्योतिष, तीसरा गणितज्ञ और चौथा भाषाविद। नाव बीच धारा में पहुंची तभी भूगोलशास्त्री ने पूछा, भैया मल्लाह! क्या आपने भूगोल पढ़ा है? नाविक ने सहजता से उत्तर दिया, नहीं साहब। भूगोलशास्त्री ने कहा, तब तो तुमने अपना पच्चीस प्रतिशत जीवन व्यर्थ में ही गंवा दिया क्योंकि भूगोल पढ़े बिना तुम्हें दिशाओं आदि का ज्ञान कैसे होगा?
एक समय चार विद्वान एक नाव पर सवार हुए दूसरी ओर जाने के लिए। उनमें एक भूगोलशास्त्री था, दूसरा ज्योतिष, तीसरा गणितज्ञ और चौथा भाषाविद। नाव बीच धारा में पहुंची तभी भूगोलशास्त्री ने पूछा, भैया मल्लाह! क्या आपने भूगोल पढ़ा है? नाविक ने सहजता से उत्तर दिया, नहीं साहब। भूगोलशास्त्री ने कहा, तब तो तुमने अपना पच्चीस प्रतिशत जीवन व्यर्थ में ही गंवा दिया क्योंकि भूगोल पढ़े बिना तुम्हें दिशाओं आदि का ज्ञान कैसे होगा?
उस के कुछ समय बाद ज्योतिष ने पूछा, 'भैया नाविक! क्या तुमने ज्योतिष की
कुछ पढ़ाई की है?' नाविक ने उत्तर दिया, 'हम ठहरे गंवार, भला
ज्योतिषशास्त्र कैसे पढ़ते?' तब ज्योतिष ने कहा, तब तो आपने आधा जीवन बेकार
में खो दिया, कब क्या होगा, यह हम अच्छी तरह बता सकते हैं क्योंकि हमने
ज्योतिष विद्या का अध्ययन किया है। अब गणितज्ञ भी बोल उठा, भैया, क्या आप
गणित के बारे में कुछ जानते हैं? नाविक ने कहा, साहब, मैं तो बिल्कुल अनपढ़
आदमी हूं, कभी किसी पाठशाला में नहीं गया। तो गणित क्या होता है मुझे कैसे
मालूम होगा? गणितज्ञ बोला, तब तो मल्लाह! आपने अपना तीन चौथाई जीवन यूं ही
बर्बाद कर दिया क्योंकि न तो भूगोल जानते हो, न ही ज्योतिष का ज्ञान है और
न ही गणित का ज्ञान। बिना गणित की पढ़ाई किए हिसाब-किताब कैसे समझेंगे?
अब भाषाविद की बारी थी, उसने भी पूछ लिया, तुम्हें कुछ भाषाओं का ज्ञान तो होगा ही! नाविक बोला, 'नहीं साहब! मुझे यही टूटी-फूटी बोलने की भाषा आती है। दूसरी कोई भाषा नहीं जानता। तब तो तुम्हारा पूरा का पूरा जीवन ही व्यर्थ गया, कुछ हासिल नहीं किया।'
यह चर्चा चल ही रही थी कि इतने में तेज आंधी व तूफानी हवा चलने लगी। चारों विद्वान अपनी विद्वता पर अभिमान से भरे हुए थे। तूफान के आसार बनते देख नाविक ने कहा, क्या आप सभी लोगों को तैरना आता है? उन विद्वानों ने कहा, भाई! हमें फुर्सत ही नहीं मिली यह तैरने की विद्या जानने की। सारी उम्र पढ़ाई-लिखाई में ही बीत गई। समय ही नहीं मिला। तब नाविक बोला, तैरना नहीं सीखा, तो अब आपका पूरा जीवन ही समाप्त हो जाएगा। यह नाव डूबने वाली है और यह आपको भी ले डूबेगी। इतने में एक तेज लहर आई और वे चारों विद्वान डूब गए। मल्लाह तैर कर किनारे आ गया।
यह कहानी हम सभी मनुष्यों पर भी घटित हो रही है। कैसे ? हमने बहुत सारे ज्ञान अर्जित किए लेकिन 'खुद' का ज्ञान नहीं प्राप्त किया। इससे सारा ज्ञान होते हुए भी यह जीवन अधूरा है। निरर्थक है। भवसागर पार करने का ज्ञान भी जरूरी है जीवन में। क्या है भवसागर? भावनाओं का, विचारों का सागर जिसमें सभी आकंठ डूबे हुए हैं। और यह सागर हमारा अपना ही बनाया हुआ है। प्रश्नों के तूफान इसमें उभरते रहते हैं, झंझावातों और समस्याओं का तेज ज्वार -भाटा आता रहता है। कैसे पार लगेंगे? हमेशा डूबने का भय रहता है! तैरने का ज्ञान होना जरूरी है, तभी तो डूबने के भय से मुक्त हो पाएंगे!
संत-महात्माओं ने जोर देकर ज्ञान की चर्चाएं की है। पोथी-पुराण का ज्ञान नहीं बल्कि 'खुद' का ज्ञान! जिसे 'आत्मज्ञान' भी कहा। भवसागर पार करने की विद्या हमेशा से संत-महापुरुषों ने जिज्ञासुओं को सिखाई और उनका जीवन धन्य हुआ। अर्जुन जैसा महायोद्धा को भी युद्ध के मैदान में, जो कि एक तरह का गहरा भवसागर था, भगवान कृष्ण मल्लाह बनकर 'ज्ञान' की नौका द्वारा पार लगाते हैं ।
रामकृष्ण परमहंस कहते हैं, 'सारी विद्याएं अधूरी हैं। जो परमात्मा को जान गया उसी का जीवन सफल है। जिसने प्रभु का आश्रय लिया है, वही इस भवसागर से पार हो सकता है। शेष लोगों का तो पूरा जीवन ही व्यर्थ में चला जाता है। 'विद्या' वही है जो प्रभु से मिला दे, जो भवसागर पार करा दे -वह ज्ञान सर्व श्रेष्ठ है। और खुद का ज्ञान ही परमात्मा का ज्ञान कहलाता है। ऐसा ज्ञान जो जीवन को आनंद से सरोबार कर दे।'
अब भाषाविद की बारी थी, उसने भी पूछ लिया, तुम्हें कुछ भाषाओं का ज्ञान तो होगा ही! नाविक बोला, 'नहीं साहब! मुझे यही टूटी-फूटी बोलने की भाषा आती है। दूसरी कोई भाषा नहीं जानता। तब तो तुम्हारा पूरा का पूरा जीवन ही व्यर्थ गया, कुछ हासिल नहीं किया।'
यह चर्चा चल ही रही थी कि इतने में तेज आंधी व तूफानी हवा चलने लगी। चारों विद्वान अपनी विद्वता पर अभिमान से भरे हुए थे। तूफान के आसार बनते देख नाविक ने कहा, क्या आप सभी लोगों को तैरना आता है? उन विद्वानों ने कहा, भाई! हमें फुर्सत ही नहीं मिली यह तैरने की विद्या जानने की। सारी उम्र पढ़ाई-लिखाई में ही बीत गई। समय ही नहीं मिला। तब नाविक बोला, तैरना नहीं सीखा, तो अब आपका पूरा जीवन ही समाप्त हो जाएगा। यह नाव डूबने वाली है और यह आपको भी ले डूबेगी। इतने में एक तेज लहर आई और वे चारों विद्वान डूब गए। मल्लाह तैर कर किनारे आ गया।
यह कहानी हम सभी मनुष्यों पर भी घटित हो रही है। कैसे ? हमने बहुत सारे ज्ञान अर्जित किए लेकिन 'खुद' का ज्ञान नहीं प्राप्त किया। इससे सारा ज्ञान होते हुए भी यह जीवन अधूरा है। निरर्थक है। भवसागर पार करने का ज्ञान भी जरूरी है जीवन में। क्या है भवसागर? भावनाओं का, विचारों का सागर जिसमें सभी आकंठ डूबे हुए हैं। और यह सागर हमारा अपना ही बनाया हुआ है। प्रश्नों के तूफान इसमें उभरते रहते हैं, झंझावातों और समस्याओं का तेज ज्वार -भाटा आता रहता है। कैसे पार लगेंगे? हमेशा डूबने का भय रहता है! तैरने का ज्ञान होना जरूरी है, तभी तो डूबने के भय से मुक्त हो पाएंगे!
संत-महात्माओं ने जोर देकर ज्ञान की चर्चाएं की है। पोथी-पुराण का ज्ञान नहीं बल्कि 'खुद' का ज्ञान! जिसे 'आत्मज्ञान' भी कहा। भवसागर पार करने की विद्या हमेशा से संत-महापुरुषों ने जिज्ञासुओं को सिखाई और उनका जीवन धन्य हुआ। अर्जुन जैसा महायोद्धा को भी युद्ध के मैदान में, जो कि एक तरह का गहरा भवसागर था, भगवान कृष्ण मल्लाह बनकर 'ज्ञान' की नौका द्वारा पार लगाते हैं ।
रामकृष्ण परमहंस कहते हैं, 'सारी विद्याएं अधूरी हैं। जो परमात्मा को जान गया उसी का जीवन सफल है। जिसने प्रभु का आश्रय लिया है, वही इस भवसागर से पार हो सकता है। शेष लोगों का तो पूरा जीवन ही व्यर्थ में चला जाता है। 'विद्या' वही है जो प्रभु से मिला दे, जो भवसागर पार करा दे -वह ज्ञान सर्व श्रेष्ठ है। और खुद का ज्ञान ही परमात्मा का ज्ञान कहलाता है। ऐसा ज्ञान जो जीवन को आनंद से सरोबार कर दे।'
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