1 .. शुभेच्छा -- आत्मकल्याण हेतु
श्रोत्रिय एवं
ब्रह्मनिष्ठ गुरु
के शरणागत
होकर उनके
उपदेशानुसार शास्त्रो
का अध्ययन
करके आत्म
विचार और
आत्मा साक्षात्कार
की उत्कृष्ट
इच्छा ।
2... सुविचारणा - सद्गुरु के
उपदेशो तथा
मोक्षशास्त्रो का
चिन्तन एवं
मनन ।
3... तनुमानसा - श्रवण , मनन
, और निदिध्यासन
से शब्दादि
विषयो के
प्रति जो
अनासक्ति होती
है एवं
सविकल्प समाधि
मे अभ्यास
से बुद्धि
की जो
तनुता - सूक्ष्मता
प्राप्त होती
है ,वही
तनुमानसा है।
4... सत्वापत्ति - उपर्युक्त तीन से साक्षात्कार पर्यन्त स्थिति अर्थात् निर्विकल्प समाधिरुप स्थिति ही सत्वापत्ति है । ज्ञान की चौथी भूमिका वाला पुरुष ब्रह्मविद कहलाता है ।
5 ... असंसक्ति -चित्त-विषयक परमानन्द और नित्य अपरोक्ष ऐसी ब्रह्मात्म भावना का साक्षात्कार रुप चमत्कार असंसक्ति है । इसमेँ अविद्या तथा उसकेकार्यो का सम्बन्ध नहीँ होता ।
6 .. पदार्थभाविनी - पदार्थो की दृढ अप्रतीति होती है वह पदार्थभाविनी है ।
7 .. तुर्यगा - तीनो अवस्था से मुक्त होना तुर्यगा है । ब्रह्म को जिस अवस्था मेँ आत्मरुप और अखण्ड जाने वही अवस्था तुर्यगा है ।
...... प्रथम तीन भूमिकाएँ साधनकोटि की है , और अन्य चार ज्ञानकोटि की है ..
.... तीन भूमिकाओ तक सगुण ब्रह्म का चिन्तन करो ..
..... ज्ञान की पाँचवी भूमिका तक पहुँचने पर जड चेतन की ग्रन्थि छूट जाती है और आत्मा का अनुभव होने
लगता है .
.... आत्मा शरीर से भिन्न है ..
....इन भूमिकाओ मेँ उत्तरोत्तर देहभान भूलता हुआ उन्मत्त दशा प्राप्त होती है ..।
4... सत्वापत्ति - उपर्युक्त तीन से साक्षात्कार पर्यन्त स्थिति अर्थात् निर्विकल्प समाधिरुप स्थिति ही सत्वापत्ति है । ज्ञान की चौथी भूमिका वाला पुरुष ब्रह्मविद कहलाता है ।
5 ... असंसक्ति -चित्त-विषयक परमानन्द और नित्य अपरोक्ष ऐसी ब्रह्मात्म भावना का साक्षात्कार रुप चमत्कार असंसक्ति है । इसमेँ अविद्या तथा उसकेकार्यो का सम्बन्ध नहीँ होता ।
6 .. पदार्थभाविनी - पदार्थो की दृढ अप्रतीति होती है वह पदार्थभाविनी है ।
7 .. तुर्यगा - तीनो अवस्था से मुक्त होना तुर्यगा है । ब्रह्म को जिस अवस्था मेँ आत्मरुप और अखण्ड जाने वही अवस्था तुर्यगा है ।
...... प्रथम तीन भूमिकाएँ साधनकोटि की है , और अन्य चार ज्ञानकोटि की है ..
.... तीन भूमिकाओ तक सगुण ब्रह्म का चिन्तन करो ..
..... ज्ञान की पाँचवी भूमिका तक पहुँचने पर जड चेतन की ग्रन्थि छूट जाती है और आत्मा का अनुभव होने
लगता है .
.... आत्मा शरीर से भिन्न है ..
....इन भूमिकाओ मेँ उत्तरोत्तर देहभान भूलता हुआ उन्मत्त दशा प्राप्त होती है ..।
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