>> नवरात्र का रहष्य <<.....
चान्द्रमास के अनुसारचार नवरात्र होते है -आषाढ शुक्लपक्ष मेआषाढी नवरात्र ,आश्विन शुक्लपक्ष मेँशारदीय नवरात्र ,माघशुक्ल पक्ष मेँ शिशिरनवरात्र एवं चैत्र शुक्लपक्ष मे बासिन्तकनवरात्र ।तथापि परंपरा सेदो नवरात्र - चैत्र एवंआश्विन मास मे सर्वमान्यहै ।..... चैत्रमास मधुमास एवंआश्विनमास ऊर्ज मासनाम से प्रसिद्ध हैजो शक्ति के पर्याय है ...,...अतः शक्ति आराधना हेतुइस काल खण्डको नवरात्र शब्द सेसम्बोधितकिया गया है ...,...नवानां रात्रीणां समाहारः अर्थात्नौ रात्रियो का समूह .......... रात्रि का तात्पर्य हैविश्रामदात्री ,सुखदात्री के साथ एकअर्थ जगदम्बा भी है,।..,रात्रिरुपयतोदेवी दिवरुपो महेश्वरः .....तंत्रग्रन्थोँ मेँ तीनरात्रि कालरात्रि (महाशिवरात्रि )फाल्गुन कृष्णपक्षचतुर्दशी महाकाली की रात्रि ,मोहरात्रि आश्विनशुक्लपक्षअष्टमी महासरस्वती की रात्रि ,महारात्रि कार्तिककृष्णपक्षअमावश्या महालक्ष्मी की रात्रि ......... एक अंक सेसृष्टि का आरम्भ है ।सम्पूर्ण मायिकसृष्टि का विस्तार आठअंक तक ही है .,,...,इससे परे ब्रह्म हैजो नौ अंकका प्रतिनिधित्वकरता है .अस्तुनवमी तिथि के आगमन परशिव शक्ति का मिलनहोता है ।शक्ति सहित शक्तिमानको प्राप्त करने हेतु भक्तको नवधा भक्ति का आश्रयलेना पडता है ,जीवात्मा नौ द्वार वालेपुर(शरीर) का स्वामी है -नवछिद्रमयो देहः . इनछिद्रो को पारकरता हुआ जीव ब्रह्मत्वको प्राप्त करता है .-...,अतः नवरात्र की प्रत्येकतिथि के लिए कुछ साधनज्ञानियो द्वारा नियतकिये गये है .....प्रतिपदा - इसेशुभेच्छा कहते है । जो प्रेमजगाती है प्रेम बिना सबसाधन व्यर्थ है , अस्तुप्रेम को अबिचल अडिगबनाने हेतुशैलपुत्री का आवाहन पूजनकिया जाता है । अचलपदार्थो मे पर्वतसर्वाधिक अटल होता है ।द्वितीया - धैर्यपूर्वकद्वैतबुद्धि का त्याग करकेब्रह्मचर्य का पालन करतेहुएमाँ ब्रह्मचारिणी का पूजनकरना चाहिए ।तृतीया - त्रिगुणातीत(सत , रज ,तम से परे)होकरमाँ चन्द्रघण्टा का पूजनकरते हुए मनकी चंचलता को बश मेँकरना चाहिए ।चतुर्थी - अन्तःकरणचतुष्टय मन ,बुद्धि ,चित्त एवं अहंकारका त्याग करते हुए मन,बुद्धि को कूष्माण्डा देवी केचरणोँ मेँ अर्पित करेँ ।पंचमी - इन्द्रियो के पाँचविषयो अर्थात् शब्द रुपरस गन्ध स्पर्श का त्यागकरते हुएस्कन्दमाता का ध्यान करेँ।षष्ठी - काम क्रोध मदमोह लोभ एवं मात्सर्यका परित्याग करकेकात्यायनी देवी का ध्यानकरे ।सप्तमी - रक्त , रस माँसमेदा अस्थि मज्जा एवंशुक्र इन सप्त धातुओ सेनिर्मित क्षण भंगुर दुर्लभमानव देह को सार्थककरने के लिएकालरात्रि देवी की आराधना करेँ।अष्टमी - ब्रह्मकी अष्टधा प्रकृति पृथ्वी जलअग्नि वायु आकाश मनबुद्धि एवं अहंकार से परेमहागौरी के स्वरुपका ध्यान करता हुआब्रह्म से एकाकार होनेकी प्रार्थना करे ।नवमी -माँ सिद्धिदात्री की आराधना सेनवद्वार वाले शरीरकी प्राप्ति को धन्यबनाता हुआ आत्मस्थहो जाय ।....... पौराणिक दृष्टि सेआठ लोकमाताएँ हैंतथा तन्त्रग्रन्थोँ मेँ आठशक्तियाँ है...,1 ब्राह्मी -सृष्टिक्रिया प्रकाशितकरती है ।2 माहेश्वरी - यह प्रलयशक्ति है ।3 कौमारी -आसुरी वृत्तियोँ का दमनकरके दैवीयगुणोँ की रक्षा करती है ।4 वैष्णवी -सृष्टि का पालन करती है।5 वाराही - आधारशक्ति है इसे कालशक्ति कहते है ।6 नारसिंही - ये ब्रह्मविद्या के रुप मेँ ज्ञानको प्रकाशित करती है7 ऐन्द्री - ये विद्युतशक्ति के रुप मेँ जीव केकर्मो को प्रकाशितकरती है ।8 चामुण्डा -पृवृत्ति (चण्ड)निवृत्ति (मुण्ड)का विनाश करने वाली है।...आठ आसुरी शक्तियाँ -1 मोह - महिषासुर2 काम - रक्तबीज3 क्रोध - धूम्रलोचन4 लोभ - सुग्रीव5 मद मात्सर्य - चण्डमुण्ड6 राग द्वेष - मधु कैटभ7 ममता - निशुम्भ8 अहंकार - शुम्भ,... अष्टमी तिथि तक इनदुगुर्णो रुपी दैत्यो का संहारकरकेनवमी तिथि को प्रकृति पुरुषका एकाकारहोना ही नवरात्रका आध्यात्मिक रहस्य है ।
चान्द्रमास के अनुसारचार नवरात्र होते है -आषाढ शुक्लपक्ष मेआषाढी नवरात्र ,आश्विन शुक्लपक्ष मेँशारदीय नवरात्र ,माघशुक्ल पक्ष मेँ शिशिरनवरात्र एवं चैत्र शुक्लपक्ष मे बासिन्तकनवरात्र ।तथापि परंपरा सेदो नवरात्र - चैत्र एवंआश्विन मास मे सर्वमान्यहै ।..... चैत्रमास मधुमास एवंआश्विनमास ऊर्ज मासनाम से प्रसिद्ध हैजो शक्ति के पर्याय है ...,...अतः शक्ति आराधना हेतुइस काल खण्डको नवरात्र शब्द सेसम्बोधितकिया गया है ...,...नवानां रात्रीणां समाहारः अर्थात्नौ रात्रियो का समूह .......... रात्रि का तात्पर्य हैविश्रामदात्री ,सुखदात्री के साथ एकअर्थ जगदम्बा भी है,।..,रात्रिरुपयतोदेवी दिवरुपो महेश्वरः .....तंत्रग्रन्थोँ मेँ तीनरात्रि कालरात्रि (महाशिवरात्रि )फाल्गुन कृष्णपक्षचतुर्दशी महाकाली की रात्रि ,मोहरात्रि आश्विनशुक्लपक्षअष्टमी महासरस्वती की रात्रि ,महारात्रि कार्तिककृष्णपक्षअमावश्या महालक्ष्मी की रात्रि ......... एक अंक सेसृष्टि का आरम्भ है ।सम्पूर्ण मायिकसृष्टि का विस्तार आठअंक तक ही है .,,...,इससे परे ब्रह्म हैजो नौ अंकका प्रतिनिधित्वकरता है .अस्तुनवमी तिथि के आगमन परशिव शक्ति का मिलनहोता है ।शक्ति सहित शक्तिमानको प्राप्त करने हेतु भक्तको नवधा भक्ति का आश्रयलेना पडता है ,जीवात्मा नौ द्वार वालेपुर(शरीर) का स्वामी है -नवछिद्रमयो देहः . इनछिद्रो को पारकरता हुआ जीव ब्रह्मत्वको प्राप्त करता है .-...,अतः नवरात्र की प्रत्येकतिथि के लिए कुछ साधनज्ञानियो द्वारा नियतकिये गये है .....प्रतिपदा - इसेशुभेच्छा कहते है । जो प्रेमजगाती है प्रेम बिना सबसाधन व्यर्थ है , अस्तुप्रेम को अबिचल अडिगबनाने हेतुशैलपुत्री का आवाहन पूजनकिया जाता है । अचलपदार्थो मे पर्वतसर्वाधिक अटल होता है ।द्वितीया - धैर्यपूर्वकद्वैतबुद्धि का त्याग करकेब्रह्मचर्य का पालन करतेहुएमाँ ब्रह्मचारिणी का पूजनकरना चाहिए ।तृतीया - त्रिगुणातीत(सत , रज ,तम से परे)होकरमाँ चन्द्रघण्टा का पूजनकरते हुए मनकी चंचलता को बश मेँकरना चाहिए ।चतुर्थी - अन्तःकरणचतुष्टय मन ,बुद्धि ,चित्त एवं अहंकारका त्याग करते हुए मन,बुद्धि को कूष्माण्डा देवी केचरणोँ मेँ अर्पित करेँ ।पंचमी - इन्द्रियो के पाँचविषयो अर्थात् शब्द रुपरस गन्ध स्पर्श का त्यागकरते हुएस्कन्दमाता का ध्यान करेँ।षष्ठी - काम क्रोध मदमोह लोभ एवं मात्सर्यका परित्याग करकेकात्यायनी देवी का ध्यानकरे ।सप्तमी - रक्त , रस माँसमेदा अस्थि मज्जा एवंशुक्र इन सप्त धातुओ सेनिर्मित क्षण भंगुर दुर्लभमानव देह को सार्थककरने के लिएकालरात्रि देवी की आराधना करेँ।अष्टमी - ब्रह्मकी अष्टधा प्रकृति पृथ्वी जलअग्नि वायु आकाश मनबुद्धि एवं अहंकार से परेमहागौरी के स्वरुपका ध्यान करता हुआब्रह्म से एकाकार होनेकी प्रार्थना करे ।नवमी -माँ सिद्धिदात्री की आराधना सेनवद्वार वाले शरीरकी प्राप्ति को धन्यबनाता हुआ आत्मस्थहो जाय ।....... पौराणिक दृष्टि सेआठ लोकमाताएँ हैंतथा तन्त्रग्रन्थोँ मेँ आठशक्तियाँ है...,1 ब्राह्मी -सृष्टिक्रिया प्रकाशितकरती है ।2 माहेश्वरी - यह प्रलयशक्ति है ।3 कौमारी -आसुरी वृत्तियोँ का दमनकरके दैवीयगुणोँ की रक्षा करती है ।4 वैष्णवी -सृष्टि का पालन करती है।5 वाराही - आधारशक्ति है इसे कालशक्ति कहते है ।6 नारसिंही - ये ब्रह्मविद्या के रुप मेँ ज्ञानको प्रकाशित करती है7 ऐन्द्री - ये विद्युतशक्ति के रुप मेँ जीव केकर्मो को प्रकाशितकरती है ।8 चामुण्डा -पृवृत्ति (चण्ड)निवृत्ति (मुण्ड)का विनाश करने वाली है।...आठ आसुरी शक्तियाँ -1 मोह - महिषासुर2 काम - रक्तबीज3 क्रोध - धूम्रलोचन4 लोभ - सुग्रीव5 मद मात्सर्य - चण्डमुण्ड6 राग द्वेष - मधु कैटभ7 ममता - निशुम्भ8 अहंकार - शुम्भ,... अष्टमी तिथि तक इनदुगुर्णो रुपी दैत्यो का संहारकरकेनवमी तिथि को प्रकृति पुरुषका एकाकारहोना ही नवरात्रका आध्यात्मिक रहस्य है ।
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