अष्टमी के दिन कन्यापूजन..क्यों ?
नवरात्र के आठवें दिन अष्टमी को आठवीं दुर्गा महागौरी की पूजा अर्चना और स्थापना की जाती है। चूंकि अष्टम दुर्गा को पार्वत
नवरात्र के आठवें दिन अष्टमी को आठवीं दुर्गा महागौरी की पूजा अर्चना और स्थापना की जाती है। चूंकि अष्टम दुर्गा को पार्वत
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के रूप में देखते हुए अन्नपूर्णा भी कहा जाता है जो कि भारत भूमि की शस्य
यानी खेती बाड़ी जैसी सम्पदा की रक्षक हैं। महागौरी ने अपनी तपस्या के
द्वारा गौर वर्ण प्राप्त किया था और उसे अन्नपूर्णा की सिद्वि भी प्राप्त
है। अतः इन्हें उज्जवल स्वरूप की महागौरी को धन , धान्य , ऐश्वर्य
प्रदायिनी चैतन्यमयी त्रैलोक्य पूज्य मंगला शारीरिक , मानसिक और सांसारिक
ताप तथा पेट की भूख का हरण करने वाली माता अन्नपूर्णा का भी नाम दिया गया
है। उत्पत्ति के समय यह आठ वर्ष की आयु की होने के कारण नवरात्र के आठवें
दिन पूजने से सदा सुख और शान्ति देती हैं। संसार के सभी जीवों सहित अपने
भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप है। इसीलिए इसके भक्त अष्टमी के दिन
कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं।
वर्ष के दौरान दोनों नवरा़त्र में अष्टमी के दिन ही यह कन्या पूजन इस लिए
भी होता है कि इस दौरान धरती पर अन्न आदि फसलों के पकने का महीना होता है
और अन्नपूर्णा पार्वती ही धन , धान्य , वैभव और सुख शान्ति की अधिष्ठात्री
देवी है। सांसारिक रूप में इसका स्वरूप बहुत ही उज्जवल कोमल श्वेतवर्णा तथा
श्वेत वस्त्रधारी चतुर्भुज युक्त एक हाथ में त्रिशूल दूसरे हाथ में डमरू
लिये हुए गायन संगीत की प्रिय देवी है जो सफेद वृषभ यानि बैल पर सवार है।
एक और सत्य भी इसके पीछे है। माता अन्नपूर्णा जो कि सारे संसार की रस , धन-धान्य , अन्न , फल फूल तथा साग-सब्जी आदि की अधिष्ठात्री देवी है , वह आदिकाल से ही कृषि कर्म से भी जुड़ी हुई है। दुर्गा के इस अष्टम रूप को महागौरी के रूप में स्थापना मिलने से परिवार के भरण पोषण तथा खान पान के सभी व्यवस्था पर स्त्री शक्ति का अधिकार होने से अष्टमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराने के अलावा दीन दुखियों और गरीबों को भी अन्न वितरित किया जाता है। भारत के पश्चिमी प्रांतों और मध्यवर्ती प्रांतों में अष्टमी के दिन कंजक यानी अन्नपूर्णा पूजा के दिन नौ कन्याओं और एक कुमार को विधिवत घर में बुलाकर और उनके पांव धोकर पूजा की जाती है। इसके उपरांत उन्हें वस्त्र आभूषण , फल पकवान और अन्न आदि दिया जाता है। इन सबसे यही तात्पर्य निकलता है कि चाहे वह चैत्र के नवरात्र हों या आश्विन मास के , कृषि की नई उपज प्राप्त होने पर नवरात्र के व्रत रख लेने के उपरांत समापन से पहले कन्याओं का पूजन विशेष ऋद्धि सिद्धि देने वाला और दुर्गा माता की भक्ति को अधिक गहन और श्रद्धा युक्त बनाने वाला होता है। कहीं कहीं नवमी के दिन भी कंजकों की पूजा की जाती है। उस दिन का विधान भी ठीक वैसा ही है जैसा कि अष्टमी के दिन नौ कन्या और एक कुमार की पूजा की जाती है। सर्वत्र ही फसल से प्राप्त नए अन्न फल फूल और साग-सब्जी देकर कन्याओं की प्रतिष्ठा करने को विधान आज भी है।
एक और सत्य भी इसके पीछे है। माता अन्नपूर्णा जो कि सारे संसार की रस , धन-धान्य , अन्न , फल फूल तथा साग-सब्जी आदि की अधिष्ठात्री देवी है , वह आदिकाल से ही कृषि कर्म से भी जुड़ी हुई है। दुर्गा के इस अष्टम रूप को महागौरी के रूप में स्थापना मिलने से परिवार के भरण पोषण तथा खान पान के सभी व्यवस्था पर स्त्री शक्ति का अधिकार होने से अष्टमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराने के अलावा दीन दुखियों और गरीबों को भी अन्न वितरित किया जाता है। भारत के पश्चिमी प्रांतों और मध्यवर्ती प्रांतों में अष्टमी के दिन कंजक यानी अन्नपूर्णा पूजा के दिन नौ कन्याओं और एक कुमार को विधिवत घर में बुलाकर और उनके पांव धोकर पूजा की जाती है। इसके उपरांत उन्हें वस्त्र आभूषण , फल पकवान और अन्न आदि दिया जाता है। इन सबसे यही तात्पर्य निकलता है कि चाहे वह चैत्र के नवरात्र हों या आश्विन मास के , कृषि की नई उपज प्राप्त होने पर नवरात्र के व्रत रख लेने के उपरांत समापन से पहले कन्याओं का पूजन विशेष ऋद्धि सिद्धि देने वाला और दुर्गा माता की भक्ति को अधिक गहन और श्रद्धा युक्त बनाने वाला होता है। कहीं कहीं नवमी के दिन भी कंजकों की पूजा की जाती है। उस दिन का विधान भी ठीक वैसा ही है जैसा कि अष्टमी के दिन नौ कन्या और एक कुमार की पूजा की जाती है। सर्वत्र ही फसल से प्राप्त नए अन्न फल फूल और साग-सब्जी देकर कन्याओं की प्रतिष्ठा करने को विधान आज भी है।
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