रूप विकराल .. हम अतीत से क्यों नहीं कुछ सबक लेते ..अगर दुर्योधन पांच
गाँव श्री उधिस्ठिर को दे दिए होते ..तो आज कुरुछेत्र की धरती पर क्या कोई
शोध होते .. हम उनसे शीख लेना तो दूर ..उनसे भी कही आगे ..और भयंकर विनाश
की ओर क्यों बढते..ऐसा क्या हो गया जो आज हम मानवों में .. समानताओं की जगह
विभिन्नताएं है खोजते .. वक़्त तो नियत प्रकिर्ती के साथ अभी भी चल रहा
..हम क्यों इतना बदल गए ..सभी हैं ''एक प्रभु की''! संतान .. चाहे
''अल्लाह''! हो या ''राम''! ..कौन ये सिद्ध कर सकता .. की हमें उन
''प्रभु''! और तुम्हे उन ''प्रभु ''! ने बनाया है ..ये तो हमारी ही फैलाई
दिग्भ्रमित ..दिशाहीन माया है ..हमने खुद के साथ ''सर्वसमान प्रभु''! को
बाँट दिया ..वाह क्या बात लोग ये कहतें सब कलयुग का प्रभाव और माया है
..अनमोल मानवीय जीवन में ..मधुरता ..आत्मीयता ..स्नेह की जगह अविश्वास और
नफरत की छाया है ..लोग अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग अलाप रहें हैं
..''प्रभु प्रदत्त''! मानवीय जीवन में अमूल्य वृहद् संभावनाओं को छोड़
..विभिन्नताओं को तलाश रहें हैं ..कैसे हो सम्पूर्ण ''मानव उत्थान''! इस पर
विचार विमर्श छोड़ ..सिर्फ खुद के लिए जीते हुए ..अशांत मर जा रहें हैं
..अब तो जरूरत है एक ''महासम्मेलन हो''! जिसमे सभी धर्मो के अनुयायी
..बुद्धिजीवी शामिल हों ..जिसका कुछ निष्कर्ष निकले ..कैसे मानवता उत्तमता
के शिखर पर पहुंचे ..ऐसा अटूट ..प्रबल ..संकल्प हो ..हम कोई बुद्धिमान नहीं
हैं जो दिल में आता लिख जातें हैं .. किसी की भी भावनाओं को ठेष पहुंचाना
हमारा कदापि उद्देश्य नहीं ..जो भी गलत है निश्चय ही आज नहीं तो कल में
उसका विनाश होगा .. पर हमें ये स्वीकार नहीं की उसके उत्तरदायी हम बने
..हमारे पास कोई तब देने को उत्तर ही ना रहे जब ''सर्वज्ञाता प्रभु ''!
हमसे प्रश्न करें .. किन्ही की खुशियों का निमित्त ना बन सके तो कोई बात
नहीं .. पर ये बिलकुल भी हमें स्वीकार नहीं किन्ही के दुखों का हम कारण
बनें .. अनमोल मानव जीवन क्या फिर मिलेगा ये ध्यान में रखते हुए अपना कर्म
करें ..''प्रभु जी''! इतनी हमें शक्ति दें ..'मानव हैं मानव बनें '..
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