प्रार्थना
जब कोई भी व्यक्ति प्रार्थना के लिए अपने हाथ उठाता है, तब वास्तव में वह
अपने भीतर की शक्ति को जगाता है ! प्रार्थना से उसमे आत्मबल आता है !
प्रार्थना दुआ या प्रेयर को जिसने अपने मन में बसाया , और जिसने भी अपने
सफ़र का साथी बनाया, प्रार्थना उसका साया बन जाती है! परमात्मा ने तुम्हारे
लिए कितने ही तरह के फूल खिलाये तथा परमात्मा के चाहने वालो ने उन फूलो को
अपने कंठ में माला की तरह किसी योगी की तरह धारण कर लिया !
इन्सान ने जब से पंच तत्वों की शक्ति को पहचाना, तभी से प्रार्थना का
जन्म होता है ! प्रकर्ति के कोष से सुरक्षा के लिए हाथ तभी से उठने लगे!आग,
हवा और पानी का कहर थमा तो इन्सान की आस्था बढी की कोई शक्ति जरुर है , जो
सब कुछ नियंत्रित करती है और उसके अधीन ही सब कुछ है ! यह सबको इतनी
जल्दी मालूम नही हो पाता कि वह शक्ति कहा और कैसी है ? वह निराकार है या
साकार ? मगर इतना ज
रुर है की जिसने भी एक
बार भगवान के आगे हाथ उठाकर प्रार्थना की , रब से दुआ मांगी उसके जीवन में
बहार जरुर आयी ! अब तो विज्ञानं भी इस परमात्मा की शक्ति को मान चूका है !
प्रयोगों में यह साबित हुआ है की प्रार्थना से एक नई उर्जा का संचार होता
है !
जब कोई व्यक्ति प्रार्थना के लिए हाथ जोड़ता है या
उठाता है या शीश नवाता है, मंदिर, मस्जिद , गुरुद्वारा , गिरजाघर या देवता
के सामने ध्यान लगाकर दुखो से छुटकारा पाने की कामना करता है , तो वह एक
तरीके से खुद को हालत से निपटने के लिए तैयार करता है ! प्रार्थना की वजह
से उसमे एक विशवास पैदा होने लगता है तुम्हे लगने लगता है की प्रार्थना के
कारन तुम्हारे जीवन से अब सब विपत्तिया टल जायेंगी और अच्छा वक्त शुरू हो
जायेगा ! ऐसा सोचते ही तुम्हारे मन में नई आध्यात्मिक शक्ति और आत्मबल का
विश्वास और अहसास होता है ! एक सकारात्मक भावना और उसमे वक्त और हालत से
लड़ने की तुम्हे शक्ति मिलती है ! मै ऐसा नहीं कहता कि प्रार्थना के कारण
तुम्हे अद्र्श्य शक्ति मिलेगी या नहीं ?लेकिन प्रार्थना के कारण जीवन में
आये परिवर्तन से तुम खुद को जीवन की जंग से लड़ने के लिए तैयार कर लेते हो !
तुममे से कोई मंगलवार को हनुमान जी के वृत करता है, कोई
गुरुवार को खानाख्वाहो में मत्था टेकता है , कोई रविवार को चर्च में
प्रार्थना करता है, कोई मस्जिद में नवाज अदा करता है, अपने-अपने धर्म और
सम्प्रदाय के अनुसार तुम अपने भले की ही कामना करते हो ! जबकि प्रार्थना
अपने लिए नहीं दुसरो के लिए करनी चाहिए? प्रार्थना सार्वभौमिक होनी चाहिए
सम्पूर्ण संसार के लिए ! कही किसी भी देश में अगर कोई प्राकर्तिक विपत्ति
आती है या विनास होता है तो सभी उस विपत्ति से निपटने में मदद करते है,
लेकिन कितने ही ऐसे मजबूर लोग भी होते है जो चाहते हुए भी मादा नहीं कर
पाते लेकिन तुम उनके लिए प्रार्थना तो कर ही सकते हो ! ( स्वामी सरस्वती)
जब कोई व्यक्ति प्रार्थना के लिए हाथ जोड़ता है या उठाता है या शीश नवाता है, मंदिर, मस्जिद , गुरुद्वारा , गिरजाघर या देवता के सामने ध्यान लगाकर दुखो से छुटकारा पाने की कामना करता है , तो वह एक तरीके से खुद को हालत से निपटने के लिए तैयार करता है ! प्रार्थना की वजह से उसमे एक विशवास पैदा होने लगता है तुम्हे लगने लगता है की प्रार्थना के कारन तुम्हारे जीवन से अब सब विपत्तिया टल जायेंगी और अच्छा वक्त शुरू हो जायेगा ! ऐसा सोचते ही तुम्हारे मन में नई आध्यात्मिक शक्ति और आत्मबल का विश्वास और अहसास होता है ! एक सकारात्मक भावना और उसमे वक्त और हालत से लड़ने की तुम्हे शक्ति मिलती है ! मै ऐसा नहीं कहता कि प्रार्थना के कारण तुम्हे अद्र्श्य शक्ति मिलेगी या नहीं ?लेकिन प्रार्थना के कारण जीवन में आये परिवर्तन से तुम खुद को जीवन की जंग से लड़ने के लिए तैयार कर लेते हो !
तुममे से कोई मंगलवार को हनुमान जी के वृत करता है, कोई गुरुवार को खानाख्वाहो में मत्था टेकता है , कोई रविवार को चर्च में प्रार्थना करता है, कोई मस्जिद में नवाज अदा करता है, अपने-अपने धर्म और सम्प्रदाय के अनुसार तुम अपने भले की ही कामना करते हो ! जबकि प्रार्थना अपने लिए नहीं दुसरो के लिए करनी चाहिए? प्रार्थना सार्वभौमिक होनी चाहिए सम्पूर्ण संसार के लिए ! कही किसी भी देश में अगर कोई प्राकर्तिक विपत्ति आती है या विनास होता है तो सभी उस विपत्ति से निपटने में मदद करते है, लेकिन कितने ही ऐसे मजबूर लोग भी होते है जो चाहते हुए भी मादा नहीं कर पाते लेकिन तुम उनके लिए प्रार्थना तो कर ही सकते हो ! ( स्वामी सरस्वती)
No comments:
Post a Comment