“क्व ते धर्मस्तदा गतः ”
नीच व्यक्तियों को संकट के समय ही धर्म की याद आती है l
प्रसंग महाभारत का है …
कर्ण कौरवों का सेनापति था और अर्जुन के साथ उसका घनघोर युद्ध जारी था l
नीच व्यक्तियों को संकट के समय ही धर्म की याद आती है l
प्रसंग महाभारत का है …
कर्ण कौरवों का सेनापति था और अर्जुन के साथ उसका घनघोर युद्ध जारी था l
कर्ण के रथ का एक चक्का जमीन में फंस गया l
उसे बाहर निकलने के लिए कर्ण रथ के नीचे उतरा और अर्जुन को उपदेश देने लगा – “कायर पुरुष जैसे व्यवहार मत करो, शूरवीर निहत्थों पर प्रहार नहीं किया करते l धर्म के युद्ध नियम तो तुम जानते ही हो l तुम पराक्रमी भी हो l
बस मुझे रथ का यह चक्का बाहर निकलने का समय दो l मैं तुमसे या श्री कृष्ण से भयभीत नहीं हूँ, लेकिन तुमने क्षत्रीय कुल में जन्म लिया है, श्रेष्ठ वंश के पुत्र हो l हे अर्जुन ….. थोड़ी देर ठहरो “
परन्तु भगवन श्री कृष्ण ने अर्जुन को ठहरने नहीं दिया, उन्होंने कर्ण को जो उत्तर दिया वो नित्य स्मरणीय है ….
उन्होंने कहा ” नीच व्यक्तियों को संकट के समय ही धर्म की याद आती है l
1. द्रौपदी का चीर हरण करते हुए,
2. जुए के कपटी खेल के समय,
3. द्रौपदी को भरी सभा में अपनी जांघ पर बैठने का आदेश देते समय,
4. भीम को सर्प दंश करवाते समय,
5. बारह वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद लौटे पांडवों को उनका राज्य वापिस न करते समय,
6. 16 वर्ष की आयु के अकेले अभिमन्यु को अनेक महारथियों द्वारा घेरकर उसे मृत्यु मुख में डालते समय …. तुम्हारा धर्म कहाँ गया था ?
श्री कृष्ण के प्रत्येक प्रश्न के अंत में मार्मिक प्रश्न “क्व ते धर्मस्तदा गतः ” … पूछा गया है l
इस प्रश्न से कर्ण का मन विच्छिन्न हो गया l
श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा “वत्स, देखते क्या हो, चलाओ बाण l इस व्यक्ति को धर्म की चर्चा करने का कोई अधिकार नहीं है “
सनातन इतिहास साक्षी है की समस्त शूरवीरों ने ऐसा ही किया है l
शिवाजी को जिन्दा या मुर्दा दरबार में लाने की प्रतिज्ञा लेकर निकले अफजल खान ने बिना किसी कारण के तुलजापुर और पंढरपुर के मन्दिरों को नष्ट किया था, उसकी यह रणनीति थी की शिवाजी खिसियाकर रणभूमि में में आ जाएँ l परन्तु शिवाजी की रणनीति यह रही की अफ्ज्ल्खान को जावली के जंगलों में खींच लाया जाए, अंततः शिवाजी की रणनीति और रणकौशल सफल हुआ, अफजल खान प्रतापगढ़ पहुंचा और शिवाजी ने उसे यम-सदन भेज कर विजय प्राप्त की l शिवाजी की इस रणनीति को कपट नीति कहने वाले ‘मिशनरी-हिन्दू-इतिहासकारों ’ और ‘मुस्लिम-हिन्दू-इतिहासकारो ं’ को विजय का महत्त्व नहीं पता l
सनातन इतिहास में शूरवीरों का आदमी साहस, पराक्रम, बलिदान, योगदान आदि सब अतुलनीय है… परन्तु इस बलिदान, योगदान, पराक्रम, शूरवीरता और साहस को विजय का जो फल मिलना चाहिए वह सम्भव नहीं हुआ …. यह सचमुच दुर्भाग्य की बात है l
यह सचमुच दुर्भाग्य की बात है की सनातन भारत के नागरिकों को उनका गौरवशाली इतिहास न पढ़ा कर पैशाचिक मुगलकालीन इतिहास को अत्यंत महत्त्व दिया जाता है और सनातन पीढ़ी अपने गौरवशाली इतिहास से दूर जाकर पैशाचिक चकाचौंध से मंत्रमुग्ध होती जा रही है l
पैशाचिक धर्मों के षड्यंत्रों से अनजान ये पीढ़ी …. खोखली मानवता की बात करती है तो उनसे यह पूछने की जिज्ञासा होती है कि अपने धार्मिक ग्रन्थों की उनको कितनी समझ है l
पिता की आज्ञा को शिरोधार्य क्र राजपद का त्याग करनेवाले भगवन मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम,
असली उत्तराधिकारी के वनों में रहने तक वल्कल वस्त्र धारण करते हुए घास फूस कि शैय्या पर सोनेवाले ब्रह्म-अवतार भरत,
समस्त विश्व को श्रीमद्भागवद्गीता का ज्ञान देने वाले सच्चिदानन्द सत्यनारायन भगवान श्री कृष्ण,
स्वप्न में दिया वचन पूर्ण करने वाला सत्यवादी हरिश्चन्द्र,
शरण में आये कबूतर के प्राण बचने हेतु बाज के भार सामान अपना मांस देने वाले रजा शिवी,
देवताओं की विजय के लिए अपनी अस्थियाँ देने वाले महर्षि दधीची,
ह्रदय से पति माने व्यक्ति का एक वर्ष बाद होने वाले निधन को जानते हुए भी उससे ही विवाह करने वाली और साक्षात् यमराज से विवाद करने और अपने पति को प्राप्त करने वाली सावित्री,
सारी सम्पती ठुकरा कर आत्मज्ञान के मार्ग का अनुसरण करने वाली मैत्रेयी,
पिता कि ख़ुशी के लिए आजीवन अविवाहित रहने कि ‘भीषण’ प्रतिज्ञा लेने वाले देवव्रत … पितामह भीष्म,
स्वतंत्रता के लिए लिए भटकते फिरते महाराणा प्रताप,
राजपुत्र के लिए अपने पुत्र का बलिदान देने वाली पन्ना धाय,
राजा द्वारा अन्यायपूर्वक पिता को हाथी के पैरों तले कुचलवाने के बाद भी अपनी सारी सम्पत्ति राजा के लिए दान करने वाला खंडो बल्लाल,
स्वतंत्रता के लिए फांसी के फंदे को गलहार समझकर उसे चूमकर परम-वीरगति को प्राप्त होने वाले हमरे शूरवीर स्वतंत्र सेनानी – क्रन्तिकारी,
उपरोक्त सभी हमारे आदर्श हैं,
सत्य, शील, स्वामिनिष्ठा, धर्मनिष्ठा, त्याग, बलिदान, आदमी साहस, पराक्रम, विजय आदि मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने के लिए जिन शूरवीरों ने अपना अपना अपना त्याग किया वे सब हमारे आदर्श हैं l
इन सारे आदर्शों ने जिन मूल्यों कि स्थापना कि उन मूल्यों कि रचना …. यानी … संस्कृति l
संस्कृति और कुछ नहीं होती …संस्कृति माने जीवन मूल्यों कि मालिका l
जिनके लिए हमें जीवित रहने में आनन्द हो और मृत्यु में भी गौरव मिले, ऐसे मूल्यों की परंपरा ही संस्कृति होती है l
इन मूल्यों की रक्षा का अर्थ ही संस्कृति की रक्षा करना होता है l
ऐसे मूल्यों की परम्परा ही संस्कृति का घ्योतक है l
समय के साथ अनेक परिवर्तन होते हैं, पोशाकों में बदलाव आयेगा, घरों की रचना में बदलाव आयेगा, खानपान के तरीके भी बदलेंगे…..
परन्तु जीवन मूल्य तथा आदर्श जब तक कायम रहेंगे तब तक संस्कृति भी कायम कहेगी l यही संस्कृति राष्ट्रीयता का आधार होती है ….
राष्ट्रीयता का पोषण यानि संस्कृति का पोषण होता है… इसे ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कहा जाता है l
ॐ सर्वोपरि सर्वगुण संपन्न सनातन वैदिक सनातन धर्मं….
|| सनातनधर्मः महत्मो विश्व्धर्मः ||
“विश्व महाशक्ति बनना हमारा पौराणिक जन्मसिद्ध अधिकार है, और हम इस पद को लेकर रहेंगे ।”
हम विश्व धर्म हैं,
हम विश्व राष्ट्र हैं,
हम विश्व प्राणी हैं,
हम विश्वात्मा हैं,
हम सनातन हैं,
हम विश्वगुरु हैं,
हम विश्वशक्ति हैं….
उसे बाहर निकलने के लिए कर्ण रथ के नीचे उतरा और अर्जुन को उपदेश देने लगा – “कायर पुरुष जैसे व्यवहार मत करो, शूरवीर निहत्थों पर प्रहार नहीं किया करते l धर्म के युद्ध नियम तो तुम जानते ही हो l तुम पराक्रमी भी हो l
बस मुझे रथ का यह चक्का बाहर निकलने का समय दो l मैं तुमसे या श्री कृष्ण से भयभीत नहीं हूँ, लेकिन तुमने क्षत्रीय कुल में जन्म लिया है, श्रेष्ठ वंश के पुत्र हो l हे अर्जुन ….. थोड़ी देर ठहरो “
परन्तु भगवन श्री कृष्ण ने अर्जुन को ठहरने नहीं दिया, उन्होंने कर्ण को जो उत्तर दिया वो नित्य स्मरणीय है ….
उन्होंने कहा ” नीच व्यक्तियों को संकट के समय ही धर्म की याद आती है l
1. द्रौपदी का चीर हरण करते हुए,
2. जुए के कपटी खेल के समय,
3. द्रौपदी को भरी सभा में अपनी जांघ पर बैठने का आदेश देते समय,
4. भीम को सर्प दंश करवाते समय,
5. बारह वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद लौटे पांडवों को उनका राज्य वापिस न करते समय,
6. 16 वर्ष की आयु के अकेले अभिमन्यु को अनेक महारथियों द्वारा घेरकर उसे मृत्यु मुख में डालते समय …. तुम्हारा धर्म कहाँ गया था ?
श्री कृष्ण के प्रत्येक प्रश्न के अंत में मार्मिक प्रश्न “क्व ते धर्मस्तदा गतः ” … पूछा गया है l
इस प्रश्न से कर्ण का मन विच्छिन्न हो गया l
श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा “वत्स, देखते क्या हो, चलाओ बाण l इस व्यक्ति को धर्म की चर्चा करने का कोई अधिकार नहीं है “
सनातन इतिहास साक्षी है की समस्त शूरवीरों ने ऐसा ही किया है l
शिवाजी को जिन्दा या मुर्दा दरबार में लाने की प्रतिज्ञा लेकर निकले अफजल खान ने बिना किसी कारण के तुलजापुर और पंढरपुर के मन्दिरों को नष्ट किया था, उसकी यह रणनीति थी की शिवाजी खिसियाकर रणभूमि में में आ जाएँ l परन्तु शिवाजी की रणनीति यह रही की अफ्ज्ल्खान को जावली के जंगलों में खींच लाया जाए, अंततः शिवाजी की रणनीति और रणकौशल सफल हुआ, अफजल खान प्रतापगढ़ पहुंचा और शिवाजी ने उसे यम-सदन भेज कर विजय प्राप्त की l शिवाजी की इस रणनीति को कपट नीति कहने वाले ‘मिशनरी-हिन्दू-इतिहासकारों
सनातन इतिहास में शूरवीरों का आदमी साहस, पराक्रम, बलिदान, योगदान आदि सब अतुलनीय है… परन्तु इस बलिदान, योगदान, पराक्रम, शूरवीरता और साहस को विजय का जो फल मिलना चाहिए वह सम्भव नहीं हुआ …. यह सचमुच दुर्भाग्य की बात है l
यह सचमुच दुर्भाग्य की बात है की सनातन भारत के नागरिकों को उनका गौरवशाली इतिहास न पढ़ा कर पैशाचिक मुगलकालीन इतिहास को अत्यंत महत्त्व दिया जाता है और सनातन पीढ़ी अपने गौरवशाली इतिहास से दूर जाकर पैशाचिक चकाचौंध से मंत्रमुग्ध होती जा रही है l
पैशाचिक धर्मों के षड्यंत्रों से अनजान ये पीढ़ी …. खोखली मानवता की बात करती है तो उनसे यह पूछने की जिज्ञासा होती है कि अपने धार्मिक ग्रन्थों की उनको कितनी समझ है l
पिता की आज्ञा को शिरोधार्य क्र राजपद का त्याग करनेवाले भगवन मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम,
असली उत्तराधिकारी के वनों में रहने तक वल्कल वस्त्र धारण करते हुए घास फूस कि शैय्या पर सोनेवाले ब्रह्म-अवतार भरत,
समस्त विश्व को श्रीमद्भागवद्गीता का ज्ञान देने वाले सच्चिदानन्द सत्यनारायन भगवान श्री कृष्ण,
स्वप्न में दिया वचन पूर्ण करने वाला सत्यवादी हरिश्चन्द्र,
शरण में आये कबूतर के प्राण बचने हेतु बाज के भार सामान अपना मांस देने वाले रजा शिवी,
देवताओं की विजय के लिए अपनी अस्थियाँ देने वाले महर्षि दधीची,
ह्रदय से पति माने व्यक्ति का एक वर्ष बाद होने वाले निधन को जानते हुए भी उससे ही विवाह करने वाली और साक्षात् यमराज से विवाद करने और अपने पति को प्राप्त करने वाली सावित्री,
सारी सम्पती ठुकरा कर आत्मज्ञान के मार्ग का अनुसरण करने वाली मैत्रेयी,
पिता कि ख़ुशी के लिए आजीवन अविवाहित रहने कि ‘भीषण’ प्रतिज्ञा लेने वाले देवव्रत … पितामह भीष्म,
स्वतंत्रता के लिए लिए भटकते फिरते महाराणा प्रताप,
राजपुत्र के लिए अपने पुत्र का बलिदान देने वाली पन्ना धाय,
राजा द्वारा अन्यायपूर्वक पिता को हाथी के पैरों तले कुचलवाने के बाद भी अपनी सारी सम्पत्ति राजा के लिए दान करने वाला खंडो बल्लाल,
स्वतंत्रता के लिए फांसी के फंदे को गलहार समझकर उसे चूमकर परम-वीरगति को प्राप्त होने वाले हमरे शूरवीर स्वतंत्र सेनानी – क्रन्तिकारी,
उपरोक्त सभी हमारे आदर्श हैं,
सत्य, शील, स्वामिनिष्ठा, धर्मनिष्ठा, त्याग, बलिदान, आदमी साहस, पराक्रम, विजय आदि मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने के लिए जिन शूरवीरों ने अपना अपना अपना त्याग किया वे सब हमारे आदर्श हैं l
इन सारे आदर्शों ने जिन मूल्यों कि स्थापना कि उन मूल्यों कि रचना …. यानी … संस्कृति l
संस्कृति और कुछ नहीं होती …संस्कृति माने जीवन मूल्यों कि मालिका l
जिनके लिए हमें जीवित रहने में आनन्द हो और मृत्यु में भी गौरव मिले, ऐसे मूल्यों की परंपरा ही संस्कृति होती है l
इन मूल्यों की रक्षा का अर्थ ही संस्कृति की रक्षा करना होता है l
ऐसे मूल्यों की परम्परा ही संस्कृति का घ्योतक है l
समय के साथ अनेक परिवर्तन होते हैं, पोशाकों में बदलाव आयेगा, घरों की रचना में बदलाव आयेगा, खानपान के तरीके भी बदलेंगे…..
परन्तु जीवन मूल्य तथा आदर्श जब तक कायम रहेंगे तब तक संस्कृति भी कायम कहेगी l यही संस्कृति राष्ट्रीयता का आधार होती है ….
राष्ट्रीयता का पोषण यानि संस्कृति का पोषण होता है… इसे ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कहा जाता है l
ॐ सर्वोपरि सर्वगुण संपन्न सनातन वैदिक सनातन धर्मं….
|| सनातनधर्मः महत्मो विश्व्धर्मः ||
“विश्व महाशक्ति बनना हमारा पौराणिक जन्मसिद्ध अधिकार है, और हम इस पद को लेकर रहेंगे ।”
हम विश्व धर्म हैं,
हम विश्व राष्ट्र हैं,
हम विश्व प्राणी हैं,
हम विश्वात्मा हैं,
हम सनातन हैं,
हम विश्वगुरु हैं,
हम विश्वशक्ति हैं….
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