शिव स्वरूप में त्रिशूल अहम अंग है। त्रिशूल का
शाब्दिक अर्थ है त्रि यानी तीन और शूल यानी कांटा। त्रिशूल धारण करने से ही
भगवान शिव, शूलपाणि यानी त्रिशूल धारण करने वाले देवता के रूप में भी
वंदनीय है। इसके पीछे धार्मिक दर्शन है कि हालांकि त्रिशूल घातक और अचूक
शस्त्र है। किंतु सांसारिक नजरिए से यह कल्याणकारी है। क्योंकि त्रिशूल के
तीन कांटे जगत में फैले रज, तम और सत्व गुणों का प्रतीक हैं।
दरअसल, इन ती
दरअसल, इन ती
न
गुणों में दोष होने पर ही कर्म, विचार और स्वभाव भी विकृत होते हैं, जो
सभी दैहिक, भौतिक और मानसिक पीड़ाओं का कारण बन शूल यानी कांटे की तरह
चुभकर असफल जीवन का कारण बनते हैं।
शिव के हाथों में त्रिशूल संकेत है कि महादेव इन तीन गुणों पर नियंत्रणकरते हैं। शिव त्रिशूल धारण कर यही संदेश देते हैं कि इन तीन गुणों में संतुलन और समायोजन के द्वारा ही व्यक्तिगत जीवन के साथ सांसारिक जीवन में भी सुखी और समृद्ध बन सकता है। अन्यथा कलहपूर्ण, कटु और असफल जीवन की पीड़ाओं को भोगना पड़ता है।
शिव के हाथों में त्रिशूल संकेत है कि महादेव इन तीन गुणों पर नियंत्रणकरते हैं। शिव त्रिशूल धारण कर यही संदेश देते हैं कि इन तीन गुणों में संतुलन और समायोजन के द्वारा ही व्यक्तिगत जीवन के साथ सांसारिक जीवन में भी सुखी और समृद्ध बन सकता है। अन्यथा कलहपूर्ण, कटु और असफल जीवन की पीड़ाओं को भोगना पड़ता है।
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