Saturday, October 13, 2012

राम, शिव के आराध्य देव

रामचरित मानस के बालकांड में शिव और सती का एक प्रसंग है। शिव और सती, अगस्त ऋषि के आश्रम में रामकथा सुनने गए। अगस्त शिव के शिष्य भी हैं। राम, शिव के आराध्य देव। सती को यह थोड़ा अजीब लगा। कथा में ध्यान नहीं रहा, पूरे समय सोचने में बिता दिया कि शिव जो तीनों लोकों के स्वामी माने जाते हैं वे राम की कथा सुनने के लिए आए हैं। कथा समाप्त हुई और शिव-सती लौटने लगे। उस समय रावण ने सीता का हरण किया था और राम सीता के वियोग में दु:खी जंगलों में घूम रहे थे।
सती को आश्चर्य हुआ। जिसे शिव अपना आराध्य कहते हैं, वो एक स्त्री के वियोग में साधारण इंसान की तरह रो रहा है। सती ने शिव के सामने ये बात रखी तो शिव ने समझाया कि ये तो सब उनकी लीला है। भ्रम में मत पड़ो। लेकिन सती नहीं मानी। उन्होंने राम की परीक्षा लेनी चाही। शिव ने रोका, लेकिन सती पर कोई असर नहीं हुआ। वे सीता का रूप धर कर राम के सामने जा पहुंची।
राम ने सती को पहचान लिया और पूछा हे माता आप अकेली इस घने जंगल में क्या कर रही हैं? शिवजी कहां हैं? सती एकदम डर गई और चुपचाप शिव के पास लौट आई। शिव ने पूछा तो वे कुछ
जवाब ना दे सकीं। लेकिन शिव ने सब देख लिया कि सती ने सीता का रूप बनाया था। जिन राम को वे अपना आराध्य देव मानते हैं, उनकी पत्नी का रूप सती ने बना लिया था। शिव ने मन ही मन सती का त्याग कर दिया। सती भी ये बात समझ गई और दक्ष के यज्ञ में जाकर आत्मदाह कर लिया।
ये प्रसंग बताता है कि पति-पत्नी में अगर थोड़ा भी अविश्वास हो तो रिश्ता खत्म होने की कगार पर भी पहुंच जाता है। कई बार पत्नियां, पति की और पति, पत्नी की बात पर विश्वास नहीं करते। नतीजा रिश्ते में बिखराव आ जाता है।
गृहस्थी को सुख से चलाना है तो पति-पत्नी को एक-दूसरे की आस्था और निष्ठा पर भरोसा करना पड़ेगा। अविश्वास तनाव पैदा करता है, तनाव से दुराव का प्रवेश होता है। अपने रिश्तों को टूटने से बचाना है तो एक-दूसरे पर भरोसा करें। अन्यथा इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं।

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