ो मात्र व्यक्ति के कर्तव्य
हैं जैसे अहिंसा, क्षमा आदि। ये सार्वभौमिक नहीं हैं। ये व्यक्तिगत हैं।
अज्ञानतावश इन्हें भी धर्म की सूची में मिला दिया गया है। इससे निश्चित रूप
से भ्रम फैला है। मानवता एक है, प्रकृति एक है और परमात्मा एक है अतएव
धर्म को भी एक ही होना होगा। धर्म दो या इससे अधिक नहीं हो सकते।
संस्कृतियों को धर्म का दर्जा देने से देश-दुनिया में वैमनस्य बढ़ा है।
संस्कृति का अर्थ है मन पर छाप डालना विशेष प्रकार का स्वभाव अथवा आदत का
निर्माण करना।यह संस्कार किसी कार्य को बार-बार करने से बनता है। भारतीय
संस्कृति मानव को श्रेष्ठ संस्कार प्रदान कर उसे सार्वभौमिक धर्म को समझने
और उस पर चलने की पे्ररणा प्रदान करती है। अज्ञानतावश धर्म एवं संस्कृति का
घालमेल हो गया है अत: यह भाव गहराई से घर कर गया है कि पूजा करना, कथा
सुनना धर्म है। यह सोच गलत है। पूजा करना,श्रीराम कथा, श्रीमद्भागवत कथा
सुनना तो संस्कृति का हिस्सा हैं।
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