ना
के अधिकारी –मानस सुन्दर कांड ५९/६ .यहाँ नारी शब्द की आज तक की गयी
व्याख्य्यायें स्त्री को ध्यान में रखकर की गयी हैं जो सर्वथा अनुचित है,यह
वाक्य समुद्र का है उसने इसमें अपने को न कहकर नारी को क्यों कहा –यह
विचारणीय है !
यहाँ नारी शब्द से सागर स्वयं अपने को कह रहा है ,ध्यातव्य है कि नारी शब्द २ प्रकार से व्याकरण कि दृष्टि से बनताहै ।
१—मनुष्य वाचक नृ और नर शब्द से –नृनरयोर्वृद्धिश्च—पाणिनि सूत्र (गणसूत्र) द्वारा वृद्धि होकर जिसका अर्थ है स्त्री ।
२ –नार शब्द से नारी शब्द कि निष्पत्ति होती है नार का अर्थ है –जल ।
----प्रमाण –
आपो नारा इति प्रोक्तः आपो वै नरसूनवः --समृतिवचन, यहाँ आपो नारा से नार शब्द जल के पर्याय के रूप में प्रस्तुत किया गया है इसीलिये नारायण शब्द का अर्थ है जल में रहने वाले भगवान –नारः =जलम् अयनं यस्य सः नारायणः ।
मेदिनी कोष में भी "नार" शब् जल का वाचक कहा गया है ---
"नारस्तर्णकनीरयोः"
जैसे ज्ञान शब्द से ज्ञानी (ज्ञान वाला ) बनता है ठीक वैसे ही जल वाचक नार शब्द से नारी बनता है जिसका अर्थ है जल वाला अर्थात स्वयं समुद्र ! इसी की ताडना भगवान श्रारीम ने जब की है तब प्रकट हुआ है ।
ध्यातव्य हैकि स्त्री वाचक नारी शब्द का रूप नारी नार्यौ नार्यः चलता है और सागर वाचक नारी शब्द का रूप नारी नारिणौ नारिणः चलता है क्योंकि यह
"अत इनिठनौ" --5/2/115 पाणिनि सूत्र द्वारा "नार" शब्द से इन् प्रत्यय करके बना है !जिसका अर्थ समुद्र है, प्रकरण के अनुसार यही अर्थ मान्य है ! यहाँ नारी का अर्थ स्त्री करके लोगो ने स्त्रियों और अपनी मेधा के साथ घोर अन्याय किया है ! अब इस प्रासंगिक अर्थ में न तो स्त्रियों कि निंदा है न ही कोई अनुपपत्ति ! ताडना का शिकार नारी =समुद्र हुआ है कोई महिला नहीं ।
-------------------! –जय श्रीराम---------------
»»»»»»»»»»»»»»आचार्य सियारामदास नैयायिक««««««««««««««
यहाँ नारी शब्द से सागर स्वयं अपने को कह रहा है ,ध्यातव्य है कि नारी शब्द २ प्रकार से व्याकरण कि दृष्टि से बनताहै ।
१—मनुष्य वाचक नृ और नर शब्द से –नृनरयोर्वृद्धिश्च—पाणिनि सूत्र (गणसूत्र) द्वारा वृद्धि होकर जिसका अर्थ है स्त्री ।
२ –नार शब्द से नारी शब्द कि निष्पत्ति होती है नार का अर्थ है –जल ।
----प्रमाण –
आपो नारा इति प्रोक्तः आपो वै नरसूनवः --समृतिवचन, यहाँ आपो नारा से नार शब्द जल के पर्याय के रूप में प्रस्तुत किया गया है इसीलिये नारायण शब्द का अर्थ है जल में रहने वाले भगवान –नारः =जलम् अयनं यस्य सः नारायणः ।
मेदिनी कोष में भी "नार" शब् जल का वाचक कहा गया है ---
"नारस्तर्णकनीरयोः"
जैसे ज्ञान शब्द से ज्ञानी (ज्ञान वाला ) बनता है ठीक वैसे ही जल वाचक नार शब्द से नारी बनता है जिसका अर्थ है जल वाला अर्थात स्वयं समुद्र ! इसी की ताडना भगवान श्रारीम ने जब की है तब प्रकट हुआ है ।
ध्यातव्य हैकि स्त्री वाचक नारी शब्द का रूप नारी नार्यौ नार्यः चलता है और सागर वाचक नारी शब्द का रूप नारी नारिणौ नारिणः चलता है क्योंकि यह
"अत इनिठनौ" --5/2/115 पाणिनि सूत्र द्वारा "नार" शब्द से इन् प्रत्यय करके बना है !जिसका अर्थ समुद्र है, प्रकरण के अनुसार यही अर्थ मान्य है ! यहाँ नारी का अर्थ स्त्री करके लोगो ने स्त्रियों और अपनी मेधा के साथ घोर अन्याय किया है ! अब इस प्रासंगिक अर्थ में न तो स्त्रियों कि निंदा है न ही कोई अनुपपत्ति ! ताडना का शिकार नारी =समुद्र हुआ है कोई महिला नहीं ।
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