गाय
का दुग्ध, दही, घृत तक्र स्वास्थ्यकारक एवं सर्वरोग निवारक है। गोमूत्र
में गंगा तथा गोबर में लक्ष्मी का निवास है। गोमूत्र गोबर से अनेक उदर,
चर्म, रक्तादि के रोगों का निवारण होता है। अनुपम खाद निर्माण का भी
गोमूत्रादि दिव्य साधन है। पंचगव्यपान देह के त्वक् अस्थिगत दोषों के
निवारण एवं आत्मशुद्धि का परम् साधन है। प्रत्येक तपोव्रत योगादि के पूर्व
यह अत्यावश्यक है। किसी भी देवपूजा प्रतिष्ठा में गो दुग्धादि पंचामृत
अनिवार्य है। हिंदू संस्कृति के मूल प्रत्येक संस्कार में गोदान होना
चाहिए।
गाय के खुर, सींग तथा रोम-रोम में देवता कुलपर्वत, तीर्थ
विद्यमान होते हैं। अन्य मंदिरों की परिक्रमा में सीमित देवताओं की
परिक्रमा होती है, किंतु गाय की परिक्रमा में सभी देवताओं तीर्थों
कुलपर्वतों की परिक्रमा हो जाती है। वेद, रामायण, मनुआदि, धर्मशास्त्र के
अनुसार भारतीय संस्कृति यज्ञ भावना से ओत-प्रोत है। यज्ञ में हवि और मंत्र का ही प्राधान्य होता है। दूध, दधि, घृतादि हवि गौ में और मंत्र ब्राह्मणों में निहित होते हैं।
अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक सर्वेश्वर शाक्तिमान भगवान राम गो ब्राह्मण के
रक्षणार्थ ही नंगे पाँव वन-वन में भटके और उनके चरणविंदु दंडक-कंटक विद्ध
हुए। भगवान श्रीकृष्ण चंद्र परमानंद कंद ने भी श्रीमद्वृंदावनधाम में नंगे
पाँव गोचारण का व्रत लेकर गोवंश का सर्वोत्कृष्ट माहात्म्य प्रख्यात किया।
गोवंश के नाश से सबका नाश निश्चित है। इसी दृष्टि से दिलीप, मान्धाता, नहुष
आदि नरेश उसकी रक्षा के लिए बद्धपरिकर और प्राणाहुति तर्पण के लिए सदा
प्रस्तुत रहते थे।
ND
दुर्भाग्य से इस देश में शताब्दियों से
गोहत्या का कलंक चल रहा है। इसको रोकने के लिए अनेक सत्पुरुषों ने प्रयास
किया। फलस्वरूप कई बार मुगल बादशाहों ने भी शाही फरमानों द्वारा गोहत्या पर
पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था परंतु काल क्रम से अंग्रेजों की कुटिलता के
कारण यह फिर भी चलता रहा। गोवंश का रक्षण एवं पालन सभी के लिए लाभदायक है।
हिंदू, मुसलमान, इसाई सभी के लिए दूध, दही, मक्खन, मठ्ठा सुलभ होगा इससे
सभी का स्वास्थ्य समुन्नत होगा।
गाय के जीवित रहने पर उससे कई गाय
एवं कई बैल प्राप्त होते रहते हैं। कीमती खाद तथा बैलों द्वारा उत्तम अन्न
की भी प्राप्ति होती है जिसके बिना केवल माँस से प्राणी का जीवन ही नहीं
चल सकता। अतः सर्वजनहिताय, अधिक स्वात्महिताय भी माँस खाने का प्रलोभन
छोड़कर गोपालन ही श्रेष्ठ है, इसके अतिरिक्त जब गोवंश सर्वजनहितकारी होने के
साथ-साथ भारतीय राष्ट्र की संस्कृति, धर्म सभ्यता तथा सम्मान का केंद्र
बिंदु है।
ऐसे गोविंद का चिंतन मनन कल्याणकारी है। हर जीवन के
आचरण में कर्म दिखाई देना चाहिए। गोविंद का नाम ही जीवन का परमोद्धार है जो
मनुष्य के सारे पापों को नष्ट कर देता है। श्रीकृष्ण लीलाओं और गौमाता का
सुन्दर अनुगायन श्रीमद् भागवत में वर्णित है।
उन्होंने कहा कि
कृष्ण ही परम सत्ता है परम ब्रह्म है वही आदि, मध्य व अंत है। उन्हीं की
वाणी का अनुसरण करना उचित होगा। कृष्ण ऐसे ही मार्गदर्शक हैं जिनका अनुसरण
करके हमें गौमाता की रक्षा करना चाहिए एवं माँस का त्याग करना चाहिए। यही
प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य भी होना चाहिए।
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