शिव
त्रिपुरारी है, जो मनुष्य के लोभ, मोह और अहंकार को नस्ट कर देते है!और
विपरीत परिस्थितो में भी सामजस्य बनाये रखने का सन्देश देते है! त्रिपुर का
अर्थ है लोभ, मोह और अहंकार! मनुष्य के भीतर इन तीनो विकारो का वध करने
वाले त्रिपुरारी शिव की शक्ति का पुरानो में प्रतीकात्मक वर्णन अधिभूत करने
वाला है! जटाजूट में सुशोभित चंद्रमा , सर से बहती गंगा की पवन धारा, हाथ
में डमरू , नीला कंठ और तीन नेत्रों दिव्य रूप किसके ह्रदय को आकर्षित न कर
लेगा?
भगवान शिव का यह तीसरा नेत्र ज्ञान चक्षु है! यह विवेकशीलता का
प्रतीक है ! इस ज्ञान चक्षु की पलखे खुलते ही काम जल कर भस्म हो जाता है!
यह विवेक अपना ऋषित्व स्थिर रखते हुए दुष्टता को उन्मुक्त रूप में विचारने
नहीं देता है ! अंतत उसका मद- मर्दन करके ही रहता है! वस्तुत यह त्रीतीय
नेत्र परमात्मा ने प्रत्येक व्यक्ति को दिया है व् यदि यह तृतीय नेत्र खुल जाये, तो सामान्य बीज रूपी मनुष्य की सम्भावनाये वट वृक्ष का आकर ले सकती है!
शिव- सा शायद ही कोई संपन्न हो? पर वे सम्पन्नता के किसी भी साधन का अपने
लिए प्रयोग नहीं करते है! हलाहल( विष) को कंठ में रोकने से वह नीलकंठ हो गए
है अर्थात विश्व कल्याण के लिए उन्होंने विपरीत परिस्थियों को तो स्वीकार
किया, परन्तु व्यक्तित्व पर उसका प्रभाव नहीं पड़ने नहीं दिया!
शिव को
पशुपति भी कहा गया है! पशुतत्व की परिधि में आने वाली दुर्भावनाओ और
दुसपर्वर्तियो का नियंत्रण करना पशुपति का काम है! नर- पशु के रूप मर रह
रहा जीव जा कल्याण करता शिव की शरण में आ जाता है , तो सहज ही उसकी पशुता
का निराकरण हो जाता है!
शिव परिवार में मूषक( चून्हा) गणेश जी का वाहन ,
का शत्रु सर्प , सर्प का दुश्मन मोर (कार्तिकेय का वाहन) और मोर व् बैल (
शिव का वाहन) का शत्रु शेर ( माँ पारवती का वाहन) शामिल है! इसके बावजूद
परिवार में स्नेह और सामजस्य हमेशा बना रहता है! क्या इससे प्रेरणा लेकर आप
सभी मनुष्य सिर्फ मनुष्य बन कर नहीं रह सकते? क्यों जरुरी है आपके लिए
ब्रह्मण बनना?क्षेत्रीय बनना? वैश्य बनना?या शुद्र बनाकर उससे भेद-भाव करना
और उसका जातीय आधार पर उत्पीडन करना? क्यों जरुरी है कि मुस्लिम होकर भी
सिया या सुन्नी बनना? जैन बनना, बौध बनना. ईसाई बनना , सिक्ख बनना, पारसी
बनना या कुछ और जैसा तुम्हे किसी ने बनाया तुम बन गए! लेकिन वैसा नहीं बने
जैसा तुम्हे परमात्मा ने बनाया था? अब मै एक प्रश्न पूछना चाहूँगा. कि
तुम्हे किसी ने बनाया था या परमात्मा ने? कुछ का उत्तर हो सकता है कि हमें
हमारे माता- पिता ने पैदा किया था, तो इस सत्य को भी आप जान लो कि
माता-पिता के संसर्ग से आपका शरीर निर्मित तो हो सकता है लेकिन उसमे
प्राणों का संचार परमात्मा के द्वारा प्रदत्त आत्मा के द्वारा ही हुआ था!
अब आपको यह निर्णय भी लेना है कि क्या आप माता- पिता के राज- कण से बना एक
मांस का लोथड़ा मात्र है या आत्मा के साथ शरीर अर्थात एक यूनिट?
-- स्वामी
सरस्वती
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