अग्नि का नाम 'शिखी' है । शिखी उसको कहा जाता है, जिसकी शिखा हो-'शिखा यस्यास्तीति स शिखी'। वह धूमशिखावाला अग्नि हमारा इष्टदेव है-'अग्निर्देवो द्विजातीनम्'। अतः शिखा हमारे इष्टदेव (अग्नि) का प्रतीक
है ।
* शिखा काटने से मनुष्य मरे हुए के समान हो जाता है और अपने धर्म से भ्रष्ट हो जाता है । प्राचीनकाल मेँ किसी की शिखा काट देना मृत्युदण्ड के समान माना जाता था । धर्म के साथ शिखा का अटूट सम्बन्ध है । इसलिए शिखा काटने पर मनुष्य धर्मच्युत हो जाता है । बड़े दुःखकी बात है आज हिन्दूलोग मुसलमानोँ-ईसाईयोँ के प्रभाव मेँ आकर अपने हाथोँ अपनी शिखा काट रहे हैँ ! खुद अपने धर्म का नाश कर रहे हैँ ! यह हमारी गुलामी की पहचान है । भगवान
ने गीतामेँ कहा है-
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्॥
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि॥ (गीता १६ । २३-२४)
'जो मनुष्य शास्त्रविधिको छोड़कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि (अन्तःकरणकी शुद्धि) को, न सुख (शान्ति) को और न परमगति को प्राप्त होता है ।' 'अतः तेरे लिए कर्तव्य-अकर्तव्यकी व्यवस्थामेँ शास्त्र ही प्रमाण है-ऐसा जानकर तू इस लोक मेँ शास्त्रविधिसे नियत कर्तव्य-कर्म करनेयोग्य है अर्थात तुझे शास्त्रविधि के अनुसार कर्तव्यकर्म करने चाहिए ।'
चोटी रखना शास्त्र का विधान है । चाहे सुख मिले या दुःख मिले, हमेँ तो शास्त्रके विधानके अनुसार चलना है । भगवान जो कहते हैँ, सन्त-महापुरुष जो कहते हैँ, शास्त्र जो कहते हैँ, उसके अनुसार चलनेमेँ ही हमारा वास्तविक
हित है । भगवान और उनके भक्त -ये दोनोँ ही निःस्वार्थभावसे सबका हितकरनेवाले हैँ-
हेतु रहित जग जुग उपकारी।
तुम्ह तुम्हार सेवक असुरारी॥ (मानस, उत्तर॰ ४७ । ३)
इसलिए इनकी आज्ञा के अनुसार चलनेवाला लोक और परलोक दोनोँमेँ सुख पाता है।..
* जिन्होँने अपनी उन्नति कर ली है, जिनका विवेक विकसित हो चुका है, जिनको तत्त्व की प्राप्ति हो गयी है, ऐसे सन्त-महात्माओँकी बात मान लेनी चाहिए; क्योँकि उनकी बुद्धिका नतीजा अच्छा हुआ है । उनकी बात माननेमेँ ही हमारा लाभ है । अपनी बुद्धि से अबतक हमने कितनी उन्नति की है? क्या तत्त्वकी प्राप्ति कर ली है? इसलिए भगवान, शास्त्र और संतोँकी बात मानकर शिखा धारण कर लेनी चाहिए । अगर उनकी बात समझमेँ न आये तो भी मान लेनी चाहिए । हमने आजतक अपनी समझसे काम किया तो कितना लाभ लिया? जैसे, किसी ने व्यापार मेँ बहुत धन कमाया हो तो वह जैसा कहे, वैसा ही हम करेँगे तो हमेँ भी लाभ होगा। उनको लाभ हुआ है तो हमेँ लाभ क्योँ नहीँ होगा? ऐसे ही जिन सन्त-महात्माओँने परमात्मप्राप्ति कर ली है; अशान्ति, दुःख, सन्ताप आदिको मिटा दिया, उनकी बात मानेँगे तो हमारे को भी अवश्य लाभ होगा ।
एक चोटी रखनेसे आपका क्या नुकसान होता है?
आपको क्या दोष लगता है? क्या पाप लगता है? आपके जीवन मेँ क्या अड़चन आती है? चोटी रखनेकी जो परंपरा सदा से थी, उसका त्याग आपने किसके कहने से कर दिया? किस सन्तके कहने से, किस पुराणके कहने से, किस शास्त्रकी आज्ञा से, किस वेदकी आज्ञासे आपने चोटी रखन छोड़ दिया?
चोटी रखना बहुत सुगम काम है, पर आपके लिए कठिन हो रहा है; क्योँकि आपने उसको छोड़ दिया है । यह बात आपकी पीढ़ियोँ से है । आपके बाप, दादा, परदादा आदि सब परम्परा से चोटी रखते आये हैँ, पर अब आपने इसका त्याग कर दिया, इसलिए अब आपको चोटी रखनेमेँ कठिनता हो रही है । विचार करेँ, चोटी रखना छोड़ देनेसे आपको क्या लाभ हुआ? और अब आप चोटी रख लेँ तो क्या नुकसान होगा? चोटी रखने से आपको पैसोँकी हानि होती हो, धर्मकी हानि होती हो, स्वास्थ्यकी हानी होती हो, आपको बड़ा भारी दुःख मिलता हो तो बतायेँ ! चोटी न रखने से लाभ तो कोई-सा भी नहीँ है, पर हानि बड़ी भारी है ! चोटी के बिना आपका देवपूजन तथा श्राद्ध-तर्पण निष्फल हो जाता है, आपके दान-पुण्य आदि सब शुभकर्म निष्फल हो जाते हैँ । इसलिए चोटी को मामुली समझकर इसकी उपेक्षा न करेँ ।
पहले सब लोग चोटी रखते थे । चोटी के बिना कोई आदमी नहीँ दीखता था । पर
हमारे देखते-देखते थोड़े वर्षोँमेँ आदमी शिखारहित हो गये । अब प्रायः लोगोँ की शिखा नहीँ दीखती । शिखा और सूत्र (जनेऊ) का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है । आश्चर्य की बात है कि आज ऐसे लोग भी हैँ; जिनका सूत्र तो है, पर शिखा नहीँ है ! यह कितने पतन की बात है ! अगर यही दशा रही तो आगे आपको कौन कहेगा कि चोटी रखो? और क्योँ कहेगा? कहनेसे उसको क्या लाभ?
शिखा हिन्दुत्वकी पहचान है । यह आपकी जाति की रक्षा करनेवाली है । जनेऊ तो सबके लिए नहीँ है, केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के लिए है, पर शिखा हिन्दूमात्र के लिए है । चाहे द्विजाति हो, चाहे अन्त्यज हो, शिखा सबके लिए है । जैसे मुसलमानोँ के लिए सुन्नत है, ऐसे ही हिन्दुओँ के लिए शिखा है । सुन्नत के बिना कोई मुसलमान नहीँ मिलेगा, पर शिखा के बिना आज हिन्दुओँका समुदाय-का-समुदाय मिल जायगा । मुसलमान और ईसाई बड़े जोरोँ से अपने धर्म का प्रचार कर रहे हैँ और हिन्दुओँ का धर्म-परिवर्तन करनेकी नयी-नयी योजनाएँ बना रहे हैँ । आपने अपनी चोटी कटवाकर उनके प्रचार-कार्य को सुगम बना दिया है ! इसलिए समय रहते हिन्दुओँ को सावधान हो जाना चाहिए। मुसलमान अपने धर्म का प्रचार मूर्खता से करते हैँ और ईसाई बुद्धिमत्ता से । मुसलमान तो तलवार के जोरसे जबर्दस्ती धर्मपरिवर्तन करते हैँ, पर ईसाई बाहर से सेवा करके भीतर-ही-भीतर (गुप्त रीतिसे) धर्म-परिवर्तन करते हैँ । वे स्कूल खोलते हैँ और बालकोँ पर अपने धर्मके संस्कार डालते हैँ । इसीका परिणाम है कि घर बैठे-बैठे हिन्दुओँने अपनी चोटीका त्याग कर दिया । इस काममेँ ईसाई सफल हो गये ! मुसलमानोँ और ईसाइयोँका उद्देश्य मनुष्यमात्र का कल्याण करना नहीँ है, प्रत्युत अपनी संख्या बढ़ाना है, जिससे उनका राज्य हो जाय । कलियुगका प्रभाव प्रतिवर्ष, प्रतिमास, प्रतिदिन जोरोँसे बढ़ रहा है । लोगोँकी बुद्धि भ्रष्ट हो रही है । मनुष्यमात्र का कल्याण चाहनेवाली हिन्दू-संस्कृति नष्ट हो रही है । हिन्दू स्वयं ही अपनीसंस्कृति का नाश करेँगे तो रक्षा कौन करेगा?...
आश्चर्यकी बात है कि व्यापार आदिमेँ बेईमानी, झूठ-कपट करनेमेँ शर्म नही, गर्भपात आदि पाप करनेमेँ शर्म नहीँ आती, चोरी, विश्वासघात आदि करते समय शर्म नहीँ आती, पर चोटी रखनेमेँ शर्म आती है ! आपकी शर्म ठीक है या भगवान और संतो की बात मानना, उनको प्रसन्न करना ठीक है? आप चोटी रखो तो आरम्भमेँ शर्म आयेगी, पर पीछे सब ठीक हो जायेगा ।...
लोग हँसी उड़ायेँ, पागल कहेँ तो उसको सह लो, पर धर्मका त्याग मत करो । आपका धर्म आपके साथ चलेगा, हँसी-दिल्लगी आपके साथ नहीँ चलेगी । लोगोँकी हँसी से आप डरो मत । लोग पहले हँसी उड़ायेँगे, पर बादमेँ आदर करने लगेँगे कि यह अपने धर्म का पक्का आदमी है ।. अतः उनकी हँसी की परवाह न करके अपने धर्मका पालन करना चाहिए ।
न जातु कामान्न भयान्न लोभाद् धर्मँ त्यजेज्जीवितस्यापि हेतोः ।
नित्यो धर्मः सुखदुःखे त्वनित्ये जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्यः॥
(महाभारत, स्वर्गा॰ ५।६३)
'कामनासे, भयसे, लोभसे अथवा प्राण बचाने के लिये भी धर्मका त्याग न करे । धर्म नित्य है और सुख-दु:ख अनित्य हैँ । इसी प्रकार जीवात्मा नित्य है और उसके बन्धनका हेतु (राग) अनित्य है ।'
शिखा का स्थान मेरुशीर्ष पर है| योगियों के अनुसार ब्रम्हांडीय ऊर्जा देह में यहीं से प्रवेश करती है| आज्ञा चक्र पर ध्यान करते हुए अनाहत और विशुद्धी चक्र के बीच के स्थान के सामने हथेलियों का घर्षण करने से आप की अन्गुलियों में एक ऊर्जा एकत्र हो जाती है जिसे आप किसी के भी कल्याण के लिए प्रेषित कर सकते हो| उपहास में लोग शिखा को Antenna या Aerial कह कर चिढ़ाते हैं जो वास्तव में सत्य ही है| और भी बहुत सारी बातें हैं शिखा के महत्व पर जो अभी समयाभाव में लिख नहीं सकता| आज से पचास वर्ष पूर्व तक चीन में सब लोग शिखा रखते थे| मैंने चार बार चीन की यात्रा की हैं| वहाँ के प्राचीन चित्रों में सभी शिखाधारी हैं| जब आप नमस्कार य प्रणाम करते हो या अभय मुद्रा में हाथ उठाते हो तो अपनी ऊर्जा का सम्प्रेषण करते हो | यह ऊर्जा मेरु शीर्ष (Medulla oblongata) से ही प्रवेश करती है|
शिखा का स्थान मेरुशीर्ष पर है| योगियों के अनुसार ब्रम्हांडीय ऊर्जा देह में यहीं से प्रवेश करती है| आज्ञा चक्र पर ध्यान करते हुए अनाहत और विशुद्धी चक्र के बीच के स्थान के सामने हथेलियों का घर्षण करने से आप की अन्गुलियों में एक ऊर्जा एकत्र हो जाती है जिसे आप किसी के भी कल्याण के लिए प्रेषित कर सकते हो| उपहास में लोग शिखा को Antenna या Aerial कह कर चिढ़ाते हैं जो वास्तव में सत्य ही है| और भी बहुत सारी बातें हैं शिखा के महत्व पर जो अभी समयाभाव में लिख नहीं सकता| आज से पचास वर्ष पूर्व तक चीन में सब लोग शिखा रखते थे| मैंने चार बार चीन की यात्रा की हैं| वहाँ के प्राचीन चित्रों में सभी शिखाधारी हैं| जब आप नमस्कार य प्रणाम करते हो या अभय मुद्रा में हाथ उठाते हो तो अपनी ऊर्जा का सम्प्रेषण करते हो | यह ऊर्जा मेरु शीर्ष (Medulla oblongata) से ही प्रवेश करती है|
--- श्री भारद्वाज भारद्वाज
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