क्या
सस्ती लोकप्रियता और प्रसिद्धि के पीछे हम किसी विनाश की ओर अग्रसर तो
नहीं हो रहे ? क्या धन और ऐशो आराम की ज़िन्दगी की चाह में हम किसी खतरे की
ओर तो नहीं जा रहे ??
पाश्चिमी सभ्यता के तौर तरीकों को अपनाने के बहाने क्या हम पूर्वजों द्वारा प्रदान की हुई धरोहर को नष्ट तो नहीं कर रहे जो हमें विरासत में मिली है .. जिससे हम सभी का अस्तित्व जुड़ा है !!
आज पीछे मुड़ के देखने पर, मन में सवाल उठते हैं ~
क्या ये वही देश है जिसे संतों की भूमि कहा जाता है ...
जहाँ जन्म लेने वालों की देवता भी ' अहो भाग्य ' कह कर सराहना करते हैं ?
क्या काशी, कांची, अवंतिका, द्वारका और अयोध्या जैसी पुण्य भूमि भी क्या यहीं हैं जहाँ शरीर छोड़ने मात्र से ही मुक्ति मिल जाती है फिर भगवन सुमिरन और पुण्य करने की क्या महिमा !!
क्या विश्व का इतिहास इसी स्वर्णिम सभ्यता द्वारा लिखा गया है जो स्वयं श्री भगवान् द्वारा रची गयी और जिसे विश्व की प्राचीनतम दैवीय संस्कृति होने का गौरव प्राप्त है ?
क्या यह वही भूमि है जिसने गौ, तुलसी, धर्म और भक्ति का पाठ पढ़ाया , जहाँ मुक्त रूप से हरि और हर नाम की धूम मचती है ?
क्या यह वही भूमि है जहाँ कन्हिया ( श्री कृष्ण ) ,श्रीराम और भोलेनाथ ने अपने चरण धरें .. जहाँ गंगाजी की निर्मल धरा बहती है .. जहाँ वेदवाणी कई शताब्दियों से अंतःकरण को पवित्र करती आई हैं .. जहाँ आदि काल से देवता , यक्ष , गन्धर्व और त्रिदेव स्वयं वास करते हैं ...
जहाँ सत्य और धर्म की पताका ( झंडा) निरंकुश लहराती है .. क्या ये वही धर्म की भूमि भारतवर्ष है ......???
ये देश, ये धरा, ये मिटटी वही लगती है... शायद हम बदल रहे हैं !
शायद हम बदल रहे हैं !!
पाश्चिमी सभ्यता के तौर तरीकों को अपनाने के बहाने क्या हम पूर्वजों द्वारा प्रदान की हुई धरोहर को नष्ट तो नहीं कर रहे जो हमें विरासत में मिली है .. जिससे हम सभी का अस्तित्व जुड़ा है !!
आज पीछे मुड़ के देखने पर, मन में सवाल उठते हैं ~
क्या ये वही देश है जिसे संतों की भूमि कहा जाता है ...
जहाँ जन्म लेने वालों की देवता भी ' अहो भाग्य ' कह कर सराहना करते हैं ?
क्या काशी, कांची, अवंतिका, द्वारका और अयोध्या जैसी पुण्य भूमि भी क्या यहीं हैं जहाँ शरीर छोड़ने मात्र से ही मुक्ति मिल जाती है फिर भगवन सुमिरन और पुण्य करने की क्या महिमा !!
क्या विश्व का इतिहास इसी स्वर्णिम सभ्यता द्वारा लिखा गया है जो स्वयं श्री भगवान् द्वारा रची गयी और जिसे विश्व की प्राचीनतम दैवीय संस्कृति होने का गौरव प्राप्त है ?
क्या यह वही भूमि है जिसने गौ, तुलसी, धर्म और भक्ति का पाठ पढ़ाया , जहाँ मुक्त रूप से हरि और हर नाम की धूम मचती है ?
क्या यह वही भूमि है जहाँ कन्हिया ( श्री कृष्ण ) ,श्रीराम और भोलेनाथ ने अपने चरण धरें .. जहाँ गंगाजी की निर्मल धरा बहती है .. जहाँ वेदवाणी कई शताब्दियों से अंतःकरण को पवित्र करती आई हैं .. जहाँ आदि काल से देवता , यक्ष , गन्धर्व और त्रिदेव स्वयं वास करते हैं ...
जहाँ सत्य और धर्म की पताका ( झंडा) निरंकुश लहराती है .. क्या ये वही धर्म की भूमि भारतवर्ष है ......???
ये देश, ये धरा, ये मिटटी वही लगती है... शायद हम बदल रहे हैं !
शायद हम बदल रहे हैं !!
--- श्री रघुवीर अग्निहोत्री
No comments:
Post a Comment