१. सकामता की :ईश्वर के नाम का स्मरण करने वाले सकाम
और निष्काम दोनो हि हो सकते हैं इनको हम निष्काम ईश्वर भक्त व सकाम देवता
भक्त कह सकते हैं ..गीता मे आया हुआ ..'आर्तो अर्थार्थी जिज्ञासु च ज्ञानी च
भरतर्षभ' यह उक्ति कई बातें कहती है अगर कोई, आर्त भाव से , अर्थ कामना से
, जिज्ञाषा से तथा ज्ञानी रूप मे भी सकाम भाव से भगवान की भक्ति करे तो
बुरा नहीं है ..इसका लाभ उसे होगा हि .....पर भक्ति होनी चाहिए उक्त
व्याख्या मे 'उदार ' संज्ञा देकर इनका अर्थ कुछ व्याख्याकार निष्काम रूप मे
भी करते हैं ..आर्त अर्थात पीड़ित नहीं अपितु भाव प्रधान भक्त, अर्थार्थी
अर्थात सर्व भूत हितार्थी कर्म प्रधान , जिग्याशु अर्थात बुद्धि से ईश्वर
तत्व को जानने की इच्छा करने वाला , और ज्ञानी भक्त ...इनके विषय मे तो कुछ
कहना हि नहीं है .. पर नाम जप मे या भक्ति मे कुछ पाखंडियों से खतरा अवश्य
है ...जो लोगों को मूर्ख बनाते हैं और अपना अर्थ लाभ सिद्ध करते हैं...और
पूरे भक्तिमय परिवेश के हि शत्रु हैं गीतकार ऐसे लोगों के लिए कहते हैं
.."कांक्षन्त: कर्मनाम सिद्धिं यजन्त इह देवता " कर्मो के फलों को चाहने
वाले अन्य देवताओं (??) के उपासक होते हैं .
२.मूढ़ विश्वास और वहम की :दूसरी चिंता राम नाम के जप के सामाजिकीकरण मे होने की / आने की / आ गयी है उसकी यह है कि ...लोगों मे आराध्य के नाम पर तमाम प्रकार के वहम प्रविष्ट हो गए हैं ... जैसे मन्नत मांगना भूत प्रेत बाधा और देवी देवता की भक्ति ...जादू टोना -----.शनी महात्म्य ...चमत्कारवाद आदि
भगवान सर्व समर्थ है ..पर ये सभी आज समाज मे जिस विकृत रूप मे हैं ...इनका पूर्णतया खंडन होना चाहिए ...समाधान मात्र वही है परमात्मा की शुद्ध भक्ति का सामाजिकीकरण कुदरत के कुछ नियम हैं और उनसे अलग भगवान की मर्जी के कुछ नहीं हो सकता यही सर्वमान्य बात है ..वेदांत ने डराने वाले ईश्वर की कलपना हमें नहीं सिखाई है
३. मौखिकता की :तीसरी चिंता नाम जप मे जो है वह है ..मौखिकता की ..कहीं नाम जप केवल मौखिक हि ना रह जाए आराध्य का नाम चाहे वह जो भी है केवल शब्द नहीं है वह एक परम सूक्ष्म और परिपूर्ण विचार है . जप अर्थात सिर्फ अक्षरों का जप नहीं होता ...मरते समय र व म शब्द निकल गए तो बेरा पार नहीं हो जाता उल्टा नाम जपत जग जाना .बाल्मीकी भये ब्रम्ह समाना यह बाल्मीकी जी के राम नाम के तत्वज्ञान के गहन अभ्यास का द्योतक है ना कि केवल अक्षरों को दोहराने की प्रक्रिया का हनुमान जी के द्वारा गाई गाई राम नाम की महिमा उनके व्यक्तित्व व कृतित्व से स्पष्ट होती हैईश्वर का हर नाम उनके एक एक गुन का सूचक होता है ..विष्णु सहस्त्रनाम के प्रवक्ता भीष्म देव ने कहा है "यानि नामानि गौणानि विख्यातानि महात्मनः" मे गौण नाम अर्थात संस्कृत मे गुणवाचक नाम ऐसा कहा है ..ईश्वर के गुणवाचक नामों का उच्चारण होना चाहिए .नवधा भक्ति प्रक्रिया भी इसी लिए पहले सर्वप्रथम श्रवण पर जोर देती है ..श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनं |अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनं |नामस्मरण मे सदैव सावधानी की जरूरत है ..पर श्रेष्ठ बातें अगर mechanically भी किया जाए तो समय आने पर वह अपना प्रभाव अवश्य हि दिखाती हैं ..अतः तत्व ना जाने बिना भी भाव से / या बिना भाव के भी भगवान का नाम अवश्यम्भावी रूप से लाभदायक है हि
--- श्री अनिल कुमार त्रिवेदी
२.मूढ़ विश्वास और वहम की :दूसरी चिंता राम नाम के जप के सामाजिकीकरण मे होने की / आने की / आ गयी है उसकी यह है कि ...लोगों मे आराध्य के नाम पर तमाम प्रकार के वहम प्रविष्ट हो गए हैं ... जैसे मन्नत मांगना भूत प्रेत बाधा और देवी देवता की भक्ति ...जादू टोना -----.शनी महात्म्य ...चमत्कारवाद आदि
भगवान सर्व समर्थ है ..पर ये सभी आज समाज मे जिस विकृत रूप मे हैं ...इनका पूर्णतया खंडन होना चाहिए ...समाधान मात्र वही है परमात्मा की शुद्ध भक्ति का सामाजिकीकरण कुदरत के कुछ नियम हैं और उनसे अलग भगवान की मर्जी के कुछ नहीं हो सकता यही सर्वमान्य बात है ..वेदांत ने डराने वाले ईश्वर की कलपना हमें नहीं सिखाई है
३. मौखिकता की :तीसरी चिंता नाम जप मे जो है वह है ..मौखिकता की ..कहीं नाम जप केवल मौखिक हि ना रह जाए आराध्य का नाम चाहे वह जो भी है केवल शब्द नहीं है वह एक परम सूक्ष्म और परिपूर्ण विचार है . जप अर्थात सिर्फ अक्षरों का जप नहीं होता ...मरते समय र व म शब्द निकल गए तो बेरा पार नहीं हो जाता उल्टा नाम जपत जग जाना .बाल्मीकी भये ब्रम्ह समाना यह बाल्मीकी जी के राम नाम के तत्वज्ञान के गहन अभ्यास का द्योतक है ना कि केवल अक्षरों को दोहराने की प्रक्रिया का हनुमान जी के द्वारा गाई गाई राम नाम की महिमा उनके व्यक्तित्व व कृतित्व से स्पष्ट होती हैईश्वर का हर नाम उनके एक एक गुन का सूचक होता है ..विष्णु सहस्त्रनाम के प्रवक्ता भीष्म देव ने कहा है "यानि नामानि गौणानि विख्यातानि महात्मनः" मे गौण नाम अर्थात संस्कृत मे गुणवाचक नाम ऐसा कहा है ..ईश्वर के गुणवाचक नामों का उच्चारण होना चाहिए .नवधा भक्ति प्रक्रिया भी इसी लिए पहले सर्वप्रथम श्रवण पर जोर देती है ..श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनं |अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनं |नामस्मरण मे सदैव सावधानी की जरूरत है ..पर श्रेष्ठ बातें अगर mechanically भी किया जाए तो समय आने पर वह अपना प्रभाव अवश्य हि दिखाती हैं ..अतः तत्व ना जाने बिना भी भाव से / या बिना भाव के भी भगवान का नाम अवश्यम्भावी रूप से लाभदायक है हि
--- श्री अनिल कुमार त्रिवेदी
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