Wednesday, July 25, 2012

तिलक करने का शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक प्रयोजन

  1. आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाया जाता है. चन्दन, यज्ञ भस्म आदि आज्ञा चक्र के उद्बोधन में मदद करते हैं. इस पदार्थों में सात्त्विक एवं उच्च-भाव-तरंग होते हैं जिसे ध्यान में एवं आज्ञा चक्र के जागरण में लाभ होता है. ... और भी कुछ आयाम हैं.......
    काशी के प्रसिद्ध वैद्य त्रयम्बक शास्त्री एक बार छत पर किसी के साथ बैठे हुए थे. नीचे सड़क पर एक आदमी जा रहा था. त्रयम्बक शास्त्री ने कहा-
    " घर जाकर वह मर जाएगा."
    कौतूहल के कारण उनके साथ के व्यक्ति ने उस आदमी का पीछा किया. कुछ दूर एक झोपड़े में वह रहता था. वह अन्दर गया. थोड़ी देर बाद ही अन्दर से रोने की आवाजें आने लगीं. वह आदमी मृत्यु को प्राप्त हो गया था.
    व्यक्ति ने लौटकर त्रयम्बक शास्त्रीसे पूछा: " आपने कैसे समझ लिया था ?"
    त्रयम्बक शास्त्री बोले: " उस आदमी को देखने से स्पष्ट था कि उसकी प्राण शक्ति ख़त्म हो चुकी है. पर वह नंगे पैर चल रहा था एवं चन्दन का तिलक लगाए हुए था जिसे उसे पृथ्वी से ऊर्जा मिल रही थी. उसे ऊर्जा के सहारे उसकी ज़िंदगी खिची चल रही थी. मुझे पता था कि घर जाकर वह चारपाई ( लकड़ी की होती है) पर बैठेगा और पैर उठाकर ऊपर रखेगा.. उसी क्षण वह ऊर्जा मिलनी बंद हो जायेगी और उसका देहांत हो जाएगा."
     
  2. आज्ञाचक्र (भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है) शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान माना जाता है , जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है (( इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है))
    हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे कि पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें । इस आसान तरीके से सर्वसाधारण की रुचि धार्मिकता की ओर, आध्यात्मिकता की ओर बढ़ती है .
  3. तत्व दर्शन के अनुसार चन्दन का तिलक या त्रिपूंड उसकी शीतल प्रकृति होने की वजह से इसे मस्तिष्क पर लगाया जाता है ताकि हमारे विचार-भाव शीतलता, प्रसन्नता, और शान्ति प्रदान करने वाले हों ।
    श्वेत और रक्तचन्दन भक्ति का प्रतीक, इसका प्रयोग भक्ति मार्ग के लोग करते है
    केसर व गोरोचन ज्ञान-वैराग्य का प्रतीक माना जाता है अतः ज्ञानी तत्वचिन्तक इसका प्रयोग करते है। परम अवस्था प्राप्त योगी लोग कस्तुरी का प्रयोग करते हैं यह ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, प्रेम, सौन्दर्य, ऐश्वर्य सभी का प्रतीक है । 
  4. तन्त्र शास्त्र के अनुसार माथे को इष्ट इष्ट देव का प्रतीक समझा जाता है
    हमारे इष्ट देव की स्मृति हमें सदैव बनी रहे इस तरह की धारणा को ध्यान में रखकर, ताकि मन में उस केन्द्रबिन्दु की स्मृति हो सकें । शरीर व्यापी चेतना शनैः शनैः आज्ञाचक्र पर एकत्रित होती रहे । चुँकि चेतना सारे शरीर में फैली रहती है । अतः इसे तिलक या टीके के माध्यम से आज्ञाचक्र पर एकत्रित कर, तीसरे नेत्र को जागृत करा सकें ताकि हम परामानसिक जगत में प्रवेश कर सकें ।
  5. सनातन धर्म मे बुद्धि को अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है ..बुद्धि निष्ठा और बुद्धिप्रमान्यता हमारी विशेषता है ... आज्ञा चक्र बुद्धिका भी केन्द्र माना जाता है
    इस वजह से भी वहाँ पर तिलक लगाने का विधान है .

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