Wednesday, July 18, 2012

चक्र

ल - पृत्वी , व् - वरुण (जल ) , र- अग्नि , य - वायु , ह - आकाश , उ - ब्रम्हांड , ॐ- अनंत
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सब अक्षर में " मं" लगा कर ..चक्र स्थान पर धयन केन्द्रित कर जाप करने से कुंडली जागृत होती हैं ..परन्तु ये क्रिया ..किसी योग्य गुरु के ..संरक्षण में करना चाहिए ..
१.लम - (red ) से - metallic- well balance -very much secure
... २.वम - (orange light )- feeling & sexuality
३.रम -( yellow) - confidence
४.यम -( Green) - love
५.हम - (Light blue)- expression (speaking)
६. ऍम - (blue )- imagination power
७. ॐ - (pink) - Spiritual consciousness
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१. पहला चक्र जागृत होते ही - मनुष्य का मोह भंग हो जाता हैं ..उसे ये दिखाई देने लगता हैं की सब मतलब से जुड़े हैं ..मतलब खत्म .. जुड़ाव भी ख़त्म हो जाएगा .. फिर ये बंधन चिर स्थाई भी नहीं हैं ..अतः वो संसार से दूर हट जाता हैं
माया से मुक्त व्यक्ति को समाज संत , साधी या सन्यासी कहने लगता हैं | -जो की गलत हैं |
ये अवस्था माया से मुक्त होने की हैं
२. दूसरा चक्र - काम को बढ़ा देता हैं ... जो नियंत्रित कर लेता हैं ..दूसरा चक्र भी भेद देता ...परन्तु ये बड़ा कठिन हैं ... इसलिए आपने सुना होगा की .. बहुत से साधू ...या सन्यासी काम में लिप्त पाए गए ..इसका प्रमुख कारन येही हैं
ये अवस्था काम से मुक्त होने की हैं
३. तीसरा चक्र - ये महत्वपूर्ण चक्र हैं.. ये जागृत होने पर आपका विश्वास जागृत होता हैं .. और आपका बिश्वाश अटल हो जाता हैं .. अब भटकना मुश्किल हो जाता हैं .. अब संसार में लौटने के पश्यात भी सन्यासी ही रहेगा ..विकृति आने की संभावना नहीं रहती |
अब ये अवस्था - सन्यास की होती हैं
४. चौथा चक्र - प्रेम का होता हैं .. अब आपको परमात्मा के हर एक कण से प्रेम हो जायेगा क्यों की
पहले चक्र से - माया मुक्त हो गए
दुसरे चक्र से - काम से मुक्त हो गए
तीसरे चक्र से - विश्वाश अटल कर लिया
तो बस प्रेम ही प्रेम से सराबोर हो जाता हैं मनुष्य ..फिर लौटना मुश्किल हो जाता हैं ..अब जाके संसार में निर्वाण प्राप्ति का मार्ग प्रसस्थ हुआ हैं ..
अब ये अवस्था संत की हैं ... जिसका कोई अंत नहीं हैं |
५. पांचवा चक्र - अभिव्यक्ति का होता हैं .. अब जो अंदर हैं ..वो बहार व्यक्त होना शुरू हो जायेगा .. इसका प्रभाव -तन, मन, और वाणी सभी से प्रकट होगा
आपने सुना होगा - मधुर वचन बोले हनुमाना
वचन अति मधुर हो जाते हैं , क्रोध , अहम् , अज्ञान से मुक्त .. प्रभु समर्पित ...प्रभि के हर एक कण पे समर्पित ....
ये अवस्था .. अंदर से बहार की अभियक्ति का हैं
६. छटवा चक्र - आज्ञा चक्र भी कहते हैं , कल्पना शक्ति - जो सोचोगे वैसा ही घटित होना सुरु हो जाएगा ..इसका प्रभाव तत्काल दिखाई देना शुरू हो जाता हैं
जो बोल दिया वही सत्य हो जाएगा ..ब्रम्ह वाणी हो जाती हैं
इसलिए ऐसा भी कहा गया हैं ..की वाल्मीकि जी रामायण लिखते जा रहे थे और घटना साथ में घटी जा रही थी |
ये अवस्था ब्रम्ह की हैं |
७ . सातवा चक्र - आध्यत्मिक जाग्रति
ये अवस्था परब्रम्ह की हैं ... और ब्रम्ह परब्रम्ह में लीन हो .. माया के घटना क्रमों का साक्षी ... हो जाता हैं .. और बहिर्दुनिया से मुक्त हो ..जाता हैं |
--- श्री मनीष कुमार 

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