अगर
हम दुनिया के सभी धर्मों और दार्शनिक विचारधाराओं पर गौर फरमाएं तो हम
पायेंगें कि ये सभी परमात्मा से साक्षात्कार और मोक्ष पाने की चर्चा करते
हैं | परन्तु अगर हम जानना चाहे कि ये कार्य कैसे पूरा होगा तो उनका छोटा
सा ज़बाब आपको मिल जाएगा, 'पवित्र ग्रन्थ का पाठ करे और विश्वास रखें और
धर्माचार्यों के कहे अनुसार चले | कुछ दान-पुण्य भी करे | समाज की सेवा
करें |' आखिर एक अंधा दूसरे अंधे को प्रकाश के बारे में क्या सलाह दे सकता
है | आदमी की रूहानियत की दौड़ इन तीन लक्ष्यों पर आधारित है:
१. आत्म-ज्ञान या आत्म-साक्षात्कार
२. परमात्मा से साक्षात्कार या परमात्मा के बारे में जानना |
३. आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश (इस जीवन काल में या मौत के बाद )
पूर्ण संत हमें उदाहरण बन कर दिखाते हैं की ये कार्य कैसे इसी ज़िंदगी में
पूरा किया जा सकता है | बाकी सारे धर्म मृत्यु के बाद का भरोसा देते हैं |
अगर आदमी ज़िंदगी भर अनपढ़ रहा तो मौत के बाद कौन उसे एम्.ए या बी.ए की
डिग्री देने वाला है | कल पर उधार नहीं, जो मिलना है अभी मिलना चाहिये | मन
में सवाल उठता है कि पूर्ण संत कैसे यह आध्यात्मिक संपदा प्रदान करते हैं ?
वे सहज योग की प्रमाणित वैज्ञानिक विधि से अंतर में ब्रह्मांडों के खजाने
खोल देते हैं | जब साधक को ब्रह्माण्ड के रहस्यों का पता चलता है, तो उसे
आध्यात्मिक ज्ञान का अनुभव होता है | इसमें पहले तो आत्म ज्ञान होता है और
फिर परमात्मा से साक्षात्कार होता है | इस आध्यात्मिक ज्ञान में सभी धर्मों
के सार और गुण समाये हुए हैं | साधक को जीते जी परमात्मा के धुर धाम में
प्रवेश मिल जाता है | फिर वह जब चाहे तब आंतरिक लोक में प्रवेश करता है और
जब चाहे तब इस दुनिया में वापिस आ सकता है |
इस आध्यात्मिक
ज्ञान से साधक युगों-युगों के आवागमन और जन्म-मरण के अंतहीन चक्र से मुक्त
हो जाता है | इससे मनुष्य अपने मन को वश में करके न केवल अपना स्वामी ,
बल्कि प्रक्रति की सभी शक्तियों का भी मालिक बन जाता है | वह सब विकारों,
बुरी शक्तियों और उनके प्रभाव पर नियन्त्र पा लेता है जो उसे भटकाती थी और
नीचे की तरफ खींचती थी | वह पूर्ण मुक्ति पाकर गरीब भिखारी के बजाय अनंत
साम्राज्य का बादशाह बन जाता है | यह शेर ऐसे लोगों के लिए ही फरमाया गया
है - 'खुदी को कर बुलंद इतना, कि हर तकदीर से पहले; खुदा बन्दे से ये पूछे,
बता तेरी रज़ा क्या है ?' भला क्या भगवान् हमसे पूछता है पैदा होने से
पहले कि भाई आपको कैसी किस्मत चाहिये ? यह सवाल तो वह संतों से पूछता है
क्योंकि उनके कोई प्रारब्ध कर्म तो होते नहीं | वो तो जन उपकार के लिए
मालिक के हुक्म से जीवों का उद्धार करने के लिए आते हैं | हमारे लिए तो यह
शेर लागू होता है - 'खुदी को कर बुलंद इतना, तू हर वाक्यात से पहले; कि
वो हर रंज तू सह ले, जो तेरी तकदीर में लिखा है' | आध्यात्मिक ज्ञान की
प्राप्ति के बाद साधक एक आदमी की बजाय संत बन जाता है | उसके सारे दुःख,
चिंताएं, संदेह और डर दूर हो जाते हैं | उसे अद्भुत शक्ति और सम्पूर्ण
ज्ञान हासिल हो जाता है | उसका उद्धार हो जाता है और वह आनंद से भर जाता है
जो बयान से बाहर है | यह तो गूंगे का गुड है | कोई भी भाषा उसका बयान नहीं
कर सकती |
हमारे कुछ नास्तिक भाई जो अपने आप को विज्ञान
का दिग्गज समझते हैं, अक्सर कहते हैं कि वो इन सब चीज़ों को नहीं मानते
क्योंकि उनका सीमित ज्ञान और अनुभव इसकी पुष्टि नहीं करते हैं | किसी भी
बात को असंभव कह देना किसी भी सच्चे वैज्ञानिक को शोभा नहीं देता | आज के
युग में असंभव कही जाने वाली बातों को इतनी बार संभव बना दिया गया है की
खुद वैज्ञानिक भी इस मामले में हैरान पड़ गए हैं | अगर भौतिक वैज्ञानिकों
को इस आध्यात्मिक वुज्ञान के दावों पर संदेह है, तो इसका कारण यह है वे इस
विज्ञान, इसकी विधियों और संभावनाओं से परिचित नहीं हैं | उन्हें इसका
अंदाजा तक नहीं है की आध्यात्मिक विज्ञान क्या कर सकता है | यह सच है की
विज्ञान प्रक्रति के कुछ प्रमाणित या प्रमाणित किये जा सकने वाले तथ्यों का
समर्थन करता है | यह नजरिया भी बिलकुल सही है | परन्तु बड़े-बड़े
वैज्ञानिक भी यह नहीं बता सकते हैं कि किस तथ्य को प्रमाणित किया जा सकता
है और लिसे नहीं | अगर वे इस बात पर जोर देते हैं कि सब कुछ प्रकृति के
नियम अनुसार होता है तो संत भी इसको खुशी से स्वीकार करते हैं | पर
प्रक्रति का दायरा इतना विशाल है कि वैज्ञानिकों को भी अभी तक इसका ज्ञान
नहीं है |
तार्किक ज्ञान या दर्शनशास्त्र के ग्रन्थ
पढ़कर या प्रवचन सुन कर किसी को भी आध्यात्मिक मुक्ति, शक्ति और सुख हासिल
नहीं हुआ है, फिर भी अधिकांश लोग यही साधन अपनाते हैं | संत वैज्ञानिक
तरीके से साधक की सारी समस्याएँ सुलझाते हैं और उनकी विधि ऐसे ही सटीक है
जैसा गणित | उनका ज्ञान विश्लेष्ण पर आधारित नहीं होता, बल्कि निजी अनुभव
पर आधारित होता है | किसी अनुमान को सिद्ध कर लेने के बाद भी वह ज्ञान का
दावा नहीं करते, बल्कि सत्य के आधार पर दावा करते हैं | योग्यता का दावा
करके कोई सत्य को नहीं जान सकता, इससे खोज करने में बाधा आती है | इसलिए
अहंकार विकास का दुश्मन है | संत अपने सिद्धांतों को परिपूर्ण बता कर
उन्हें लोगों पर नहीं थोपते | संतों का अध्यात्मिक ज्ञान व्यक्तिगत अनुभव
को ही अंतिम और एकमात्र कसौटी मानता है | इसकी प्रक्रियाएं सीधी और सरल हैं
| इन्हें कोई भी आन इनसान अपना सकता है | अत: इसकी सहजता ही इसे सहज योग
का नामकरण देती है | यह एक विश्वव्यापी विज्ञान है जो विश्व के सब लोगों के
लिए उपलब्ध है |
--- श्री विपिन त्यागी
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