तिब्बत
के ल्हासा विश्वविद्यालय में एक प्रयोग किया जाता था- हीट योग का। यह शरीर
में मन के द्वारा गर्मी पैदा करने की प्रक्रिया थी। रात में विद्यार्थियों
को निर्वस्त्र होकर बर्फ के मैदान में खडे होना होता था और उनके कपडों को
पानी में भिगोकर उनके पास रख दिया जाता था, जिन्हें अपने शरीर की गर्मी से
उन्हें सुखाना होता था। जो विद्यार्थी ज्यादा कपडे सुखाता था, उसे ज्यादा
अंक मिलते। बर्फ के मैदान में शरीर में
गर्मी कहां से आई? दरअसल, यह मन की गर्मी है जिससे कपडे सूख रहे हैं। इससे
सिद्ध होता है कि मन ही शरीर है। शरीर का संचालन मन से होता है।
मन के
हारे हार है, मन के जीते जीत। इस कहावत का अर्थ यह नहींहै कि हार जाने के
बावजूद अगर हमारा मन न माने, तो हमारी जीत हो जाएगी। हम जीत का उत्सव तभी
मना सकते हैं, जब हम जीत गए हों। यह बात अलग है कि हारा हुआ व्यक्ति
आत्मविश्वास को बनाए रखे और मातम न मनाए। इस कहावत का अर्थ यह है कि हम मन
में जीतने का संकल्प कर लेते हैं, तो जीत ही जाते हैं। मन ने हार मान ली,
तो हम हार जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि मन जो कुछ सोचता है, वह
उसी के अनुकूल संकेत भेजता है और शरीर उसी संकेत के अनुसार काम करना आरंभ
कर देता है। यदि हमने पहले ही हारने की बात सोच ली है, तो फिर हमारा शरीर
इतनी स्फूर्ति से हमारा साथ नहीं देगा।
इसीलिए आत्मविश्वास की बात कही
जाती है। अखबारों में हम अपनी क्रिकेट टीम की हार का कारण पढते हैं, तो यही
पढते हैं कि खिलाडी अपना मनोबल बनाए नहीं रख सके। या तो वे अतिउत्साह में आ
गए या फिर निराशा में। मन की इन दोनों स्थितियों का शरीर पर प्रतिकूल
प्रभाव पडता है। शरीर को इस बात से कोई लेना-देना नहीं होता कि उसके अंदर
उत्साह की तरंगें पैदा हो रही हैं या निराशा की। उसको तो तरंगों से मतलब
है। निराशा की तरंगों से उसकी शक्ति विखंडित हो जाती है। इसका परिणाम पराजय
में होता है। इसलिए बहुत जरूरी है कि हम संतुलित रहें।
अति को शरीर
बर्दाश्त नहीं कर पाता। मन के हारे हार है मन के जीते जीत का भाव इस
मनोवैज्ञानिक सच्चाई में छिपा हुआ है कि आप जो होना चाहते हैं गहरे में,
वही हो जाते हैं। विचार व्यवस्थाएं बन जाती हैं, विचार घटनाएं बन जाती हैं
और यहां तक कि विचार ही व्यक्ति बन जाता है। इसीलिए यह कहना गलत नहीं होगा
कि मनुष्य का जीवन मूलत: मन का ही जीवन है।
--- श्री कमल अग्रवाल
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