संसार
के जो द्वंद्व हैं मान-अपमान, सुख-दुःख, राग-द्वेष आदि उन सब को मिटाने
में हरिनाम संकीर्तन सिद्ध औषधि है। सिद्ध का अर्थ है जो कभी विफल न जाए।
सिद्ध शब्द वहाँ प्रयोग होता है जो परिपक्व हो गया हो। जब चावल पक जाता है,
तब बंगाल में कहते हैं कि चावल सिद्ध हो गया। वैसे ही जब साधक पक जाता है
तो उसको सिद्ध कहते हैं। संसार के सभी द्वंद्वों को, सभी रोगों को मिटाने
में 'हरिनाम' सिद्ध औषधि है।
'जासु नाम भव भेषज हरन घोर त्रय सूल। सो कृपाल मोहि तो पर सदा रहउ अनुकूल॥'
अज्ञानरूपी बड़ी विशाल रात्रि को मिटाने में भगवान भास्कर की तरह 'हरिनाम'
है। हमारे जीवन में अज्ञान की जो मिथ्या रात्रि विशाल होती जा रही है,
अंधेरे को प्रगाढ़ करती जा रही है, इस रात्रि को मिटाने में 'भगवन्नाम'
भगवान सूर्य की तरह है। इसकी प्रत्येक किरण उसको मिटा देती है।
आप कीर्तन करते हैं तो क्या आपके राग-द्वेष रहते हैं? क्या कीर्तन करने
में मान-अपमान रहता है? मान-अपमान का खयाल रहता है तो कीर्तन कर ही नहीं
सकते, नाच लेते हैं। कीर्तन के कई प्रकार हैं। गुण कीर्तन, कर्म कीर्तन,
स्वरूप कीर्तन, तत्व कीर्तन, भाव कीर्तन, नाम कीर्तन।
कथा में जब
भगवान के गुणों का वर्णन होता है तब तो गुणों का कीर्तन ही है। जब हम कथा
में भगवान के गुणों की चर्चा करते हैं कि भगवान दयालु हैं, कृपासिंधु हैं,
पतित पावन हैं, लोकाभिरामं हैं। इनके गुणों की, औदार्य की, धीरता की, वीरता
की, इन सब सद्गुणों की चर्चा जब कथा में चलती है तब आप समझना कि भगवान के
गुण का कीर्तन हो रहा है। भगवान को परमात्मा समझकर जब कोई वेदांती, कोई
उपनिषद्वेत्ता, कोई वेदविद् जब वेदांत में प्रभु को प्रतिपादित करता हो तब
तो तत्व कीर्तन है।
कोई भी व्यक्ति कहता है कि हम कीर्तन
नहीं करते हैं तो वह बड़ी भूल कर रहा है। तत्व की चर्चा करने वाला तत्व
कीर्तन कर रहा है। कीर्तन के बिना वाणी सफल नहीं होती। प्रवचनों से वाणी
सफल होती है, भाषणों से भी वाणी बिगड़ जाती है। वाणी कीर्तन करती है
गुणानुकथन। वाणी सदैव गुण का कीर्तन करे। जब कोई भगवान के रूप का वर्णन करे
यह रूप कीर्तन है। परमात्मा के रूप माधुर्य का जब कोई वर्णन करे तब समझना
कि यह रूप कीर्तन हो रहा है।
कोई-कोई होते हैं जो भगवान के गुण
नहीं गा सकते, तत्व के बारे में बोल नहीं पाते, रूप के लिए जुबान नहीं
खुलती लेकिन कोई बोले और उसके हृदय में भाव उमड़ पड़े, पूरा गदगद हो जाए तो
वो भाव कीर्तन है। केवल वाणी से बोलना ही बात नहीं है, अंदर से प्राण बोले
और प्राणनाथ सुनें तो वो भाव कीर्तन है। परमात्मा जो-जो कर्म करते हैं,
प्रभु जो लीला करते हैं उनका वर्णन कर्म कीर्तन है। हमारा इष्ट जो लीला
करता है जो कर्म करता है।
इन सबसे उत्तम शिखर पर है नाम
संकीर्तन। यह सब औषधि है, ध्यान देना! नाम संकीर्तन ऐसी औषधि है जो रोग को
दबाती नहीं है, पहले साफ कर देती है और उसके बाद वो तुम को धन्य-धन्य कर
देती है। नाम संकीर्तन अद्भुत है। कीर्तन में कभी-कभी एक बोलता है और आप
श्रवणीय कीर्तन कर रहे हैं लेकिन संकीर्तन में सब बोलने लगते हैं।
वैसे ही संकीर्तन में सब बोलेंगे तो उसको, प्रभु को कहना पड़ता है कि अब हद
हो गई, अब ये लोग घेरा डालेंगे। इसलिए भक्त कहता है कि तुम कहाँ तक छिपे
रहोगे? हम देखते हैं तुम्हारी कितनी ताकत और तुम्हारे नाम की कितनी ताकत
है। जरा मुकाबला कर लो, तुम भी सुन लो। शायद तुम्हें भी तुम्हारे नाम की
महिमा का पता नहीं है, जितना भक्त लोग जानते हैं। तुम कब तक आँख मिचौली
करोगे, कब तक पर्दा रखोगे जब हम बेनकाब होकर आ गए हैं।
--- श्री कमल अग्रवाल
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