अनूठे
रामभक्त हनुमान पुराणों की मान्यतानुसारवायुदेवताके औरस पुत्र
श्रीहनुमानशिवजी के अवतार हैं, जो रामकार्यके निमित्त वानर योनि में अवतरित
हुए। श्रीमद्भागवत में भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धवजीसे किम्पुरुषों(सेवकों)
में स्वयं के हनुमान होने की बात स्वीकारी है। मानस-पीयूष के अनुसार
अगस्त्य-संहिता में उल्लिखित श्रीसीताजीकी अन्तरंग अष्ट-सखियों में से
जानकीजीको श्रीराम से मिलवाने वाली सखी श्रीचारुशीलाके रूप में
श्रीहनुमानजीही हैं। वे आजन्म नैष्ठिक ब्रह्मचारी हैं। तेज, धैर्य, यश,
दक्षता, शक्ति, विनय,नीति, पुरुषार्थ, पराक्रम और बुद्धि जैसे गुण उनमें
नित्य विद्यमान हैं। बल अन्तक-काल के समान है, तभी कोई शत्रु सम्मुख टिक
नहीं सकता। शरीर वज्र के समान सुदृढ (वज्रांगी) है और गति गरुड के समान
तीव्र। वे सभी के लिए अजेय व सभी आयुधों से अवध्य हैं। भक्ति के आचार्य,
संगीत-शास्त्र के प्रवर्तक, चारों वेद एवं छह वेदांग शिक्षा, कल्प,
व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष) के मर्मज्ञ हैं। अष्टसिद्धि एवं नवनिधि
के दाता हैं। केवल त्रेतायुगही नहीं, द्वापर भी हनुमानजी की पराक्रम-गाथा
से गौरवान्वित हैं। महाभारत में कथानक है कि हनुमान जी ने गन्धमादनपर्वत पर
कदली-वनमें अस्वस्थतावशपूंछ फैलाकर मार्ग में स्वच्छंद पडे रहने का उपक्रम
किया। भीम ने दोनों हाथों से पूंछ हटाने का असफल प्रयास किया। इस प्रकार
बलगर्वितभीम का गर्व विगलित हुआ। अर्जुन की रथ-ध्वजा पर विराजकर युद्धकाल
में बल प्रदान किया। आनन्द रामायण में वर्णन है कि अर्जुन द्वारा त्रेतामें
राम-सेतु निर्माण की आलोचना करते हुए अहंकारवशशर-सेतु निर्मित कर
श्रेष्ठता सिद्ध करते समय हनुमानजी के पग धरते ही सेतु भंग होने से अर्जुन
का अहंकार नष्ट हुआ। वे दास्य-भक्ति के सर्वोच्च आदर्श हैं। सीता- अन्वेषण
एवं लंका-दहन के अत्यंत दुष्कर कृत्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न करके सो सब तब
प्रताप रघुराई।नाथ न कछुमोरी प्रभुताई॥की दैन्यभावयुक्तस्वीकारोक्ति सहित
प्रभु श्रीराम से नाथ भगतिअति सुखदायनी।देहुकृपा करिअनपायनी॥द्वारा मात्र
निश्चल-भक्ति की याचना दास्यासक्तिका अनुपम उदाहरण है। जनुश्रुतिहै कि
हनुमानजी द्वारा अनवरत श्रीराम की सेवा के कारण वंचित भरत, लक्ष्मण व
शत्रुघ्न द्वारा माता जानकी के सहयोग से प्रभु के शैया-त्यागसे शयन-काल तक
की सेवा-तालिका बनाई गई, जिसमें हनुमान का नाम न था। हनुमानजी के अनुरोध पर
उनके लिए प्रभु श्रीराम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने की सेवा नियत हुई।
तब प्रभु के मुखारविन्दको अपलक निहारते हुए भूख, प्यास व निद्रा का
परित्याग कर प्रतिक्षण चुटकी ताने सेवा को तत्पर रहते। रात्रि में माता
जानकी की आज्ञावशप्रभु से विलग होने पर उनके शयनागार के समीप
उच्चस्थछज्जेपर बैठकर प्रभु का नामोच्चारणकरते हुए अनवरत चुटकी बजाने लगे।
संकल्पबद्ध भगवान् श्रीराम को भी निरन्तर जम्हाई-पर जम्हाई आने लगीं और
अन्तत:थकित हो मुख खुला रह गया। तब दु:खी परिजनों के मध्य वशिष्ठजीहनुमान
को न पाकर उन्हें ढूंढकर वहां लाए। प्रभु के नेत्रों से अविरल अश्रु-प्रवाह
और खुला मुखारविन्ददेख दु:खित हनुमान की चुटकी बंद हो गई। तभी प्रभु की
पूर्व स्थिति आते ही मर्म को जान सभी ने उन्हें पूर्ववत् प्रभु-सेवा सौंपी।
सभी वैष्णव-सम्प्रदायों में उनका समुचित सम्मान है। गौणीय-सम्प्रदायमें
चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख परिकर श्रीमुरारिगुप्तहनुमानजी के अवतार माने गए
हैं। मध्वसम्प्रदाय में उन्हें हनु (परमज्ञान) का अधिकारी देवता मानते
हैं। साथ ही वायु के तीन अवतार मान्य हैं- त्रेतायुगमें श्रीहनुमान,द्वापर
में भीम और कलियुग में श्रीमध्व।रामानन्द-सम्प्रदाय में वे
सम्प्रदायाचार्य, भगवान् के परिकर एवं नित्य-उपास्य के रूप में मान्य व
पूजित हैं। वल्लभ-सम्प्रदाय में अष्टछापके भक्त-कवियों की वाणी भी
श्रीहनुमद्गुणानुवादसे अलंकृत हैं। स्वयं महाप्रभु वल्लभाचार्यजीकी निष्ठा
दृष्टव्य है- अंजनिगर्भसम्भूतकपीन्द्रसचिवोत्तम।
रामप्रियनमस्तुभ्यंहनुमन्रक्ष सर्वदा॥ आनन्द रामायण में उल्लिखित अष्ट
चिरजीवियोंअश्वत्थामा,बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य,परशुराम और
मार्कण्डेय) में हनुमान भी सम्मिलित हैं। भगवान् श्रीराम से उन्हें
चिरंजीवित्वव कल्पान्त में सायुज्य मुक्ति का वर मिला है- मारुते
त्वंचिरंजीव ममाज्ञांमा मृषा कृथा।एवम्कल्पान्ते मम् सायुज्य
प्राप्स्यसेनात्रसंशय:। (अध्यात्म रामायण)। श्रीरामकथाके अनन्य रसिक
श्रीहनुमानजीकथा-स्थल पर अदृश्य रूप अथवा छद्मवेषमें विद्यमान रहकर सतत्
कथा- रसास्वादन में निमग्न रहते हैं। अप्रतिम रामभक्त श्रीहनुमानसर्वथा
प्रणम्य हैं- प्रनवउंपवनकुमारखल बन पावक ग्यानघन। जासुहृदय आगार बसहिंराम
सर चाप धर॥अनूठे रामभक्त हनुमान पुराणों की मान्यतानुसारवायुदेवताके औरस
पुत्र श्रीहनुमानशिवजी के अवतार हैं, जो रामकार्यके निमित्त वानर योनि में
अवतरित हुए। श्रीमद्भागवत में भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धवजीसे
किम्पुरुषों(सेवकों) में स्वयं के हनुमान होने की बात स्वीकारी है।
मानस-पीयूष के अनुसार अगस्त्य-संहिता में उल्लिखित श्रीसीताजीकी अन्तरंग
अष्ट-सखियों में से जानकीजीको श्रीराम से मिलवाने वाली सखी श्रीचारुशीलाके
रूप में श्रीहनुमानजीही हैं। वे आजन्म नैष्ठिक ब्रह्मचारी हैं। तेज, धैर्य,
यश, दक्षता, शक्ति, विनय,नीति, पुरुषार्थ, पराक्रम और बुद्धि जैसे गुण
उनमें नित्य विद्यमान हैं। बल अन्तक-काल के समान है, तभी कोई शत्रु सम्मुख
टिक नहीं सकता। शरीर वज्र के समान सुदृढ (वज्रांगी) है और गति गरुड के समान
तीव्र। वे सभी के लिए अजेय व सभी आयुधों से अवध्य हैं। भक्ति के आचार्य,
संगीत-शास्त्र के प्रवर्तक, चारों वेद एवं छह वेदांग शिक्षा, कल्प,
व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष) के मर्मज्ञ हैं। अष्टसिद्धि एवं नवनिधि
के दाता हैं। केवल त्रेतायुगही नहीं, द्वापर भी हनुमानजी की पराक्रम-गाथा
से गौरवान्वित हैं। महाभारत में कथानक है कि हनुमान जी ने गन्धमादनपर्वत पर
कदली-वनमें अस्वस्थतावशपूंछ फैलाकर मार्ग में स्वच्छंद पडे रहने का उपक्रम
किया। भीम ने दोनों हाथों से पूंछ हटाने का असफल प्रयास किया। इस प्रकार
बलगर्वितभीम का गर्व विगलित हुआ। अर्जुन की रथ-ध्वजा पर विराजकर युद्धकाल
में बल प्रदान किया। आनन्द रामायण में वर्णन है कि अर्जुन द्वारा त्रेतामें
राम-सेतु निर्माण की आलोचना करते हुए अहंकारवशशर-सेतु निर्मित कर
श्रेष्ठता सिद्ध करते समय हनुमानजी के पग धरते ही सेतु भंग होने से अर्जुन
का अहंकार नष्ट हुआ। वे दास्य-भक्ति के सर्वोच्च आदर्श हैं। सीता- अन्वेषण
एवं लंका-दहन के अत्यंत दुष्कर कृत्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न करके सो सब तब
प्रताप रघुराई।नाथ न कछुमोरी प्रभुताई॥की दैन्यभावयुक्तस्वीकारोक्ति सहित
प्रभु श्रीराम से नाथ भगतिअति सुखदायनी।देहुकृपा करिअनपायनी॥द्वारा मात्र
निश्चल-भक्ति की याचना दास्यासक्तिका अनुपम उदाहरण है। जनुश्रुतिहै कि
हनुमानजी द्वारा अनवरत श्रीराम की सेवा के कारण वंचित भरत, लक्ष्मण व
शत्रुघ्न द्वारा माता जानकी के सहयोग से प्रभु के शैया-त्यागसे शयन-काल तक
की सेवा-तालिका बनाई गई, जिसमें हनुमान का नाम न था। हनुमानजी के अनुरोध पर
उनके लिए प्रभु श्रीराम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने की सेवा नियत हुई।
तब प्रभु के मुखारविन्दको अपलक निहारते हुए भूख, प्यास व निद्रा का
परित्याग कर प्रतिक्षण चुटकी ताने सेवा को तत्पर रहते। रात्रि में माता
जानकी की आज्ञावशप्रभु से विलग होने पर उनके शयनागार के समीप
उच्चस्थछज्जेपर बैठकर प्रभु का नामोच्चारणकरते हुए अनवरत चुटकी बजाने लगे।
संकल्पबद्ध भगवान् श्रीराम को भी निरन्तर जम्हाई-पर जम्हाई आने लगीं और
अन्तत:थकित हो मुख खुला रह गया। तब दु:खी परिजनों के मध्य वशिष्ठजीहनुमान
को न पाकर उन्हें ढूंढकर वहां लाए। प्रभु के नेत्रों से अविरल अश्रु-प्रवाह
और खुला मुखारविन्ददेख दु:खित हनुमान की चुटकी बंद हो गई। तभी प्रभु की
पूर्व स्थिति आते ही मर्म को जान सभी ने उन्हें पूर्ववत् प्रभु-सेवा सौंपी।
सभी वैष्णव-सम्प्रदायों में उनका समुचित सम्मान है। गौणीय-सम्प्रदायमें
चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख परिकर श्रीमुरारिगुप्तहनुमानजी के अवतार माने गए
हैं। मध्वसम्प्रदाय में उन्हें हनु (परमज्ञान) का अधिकारी देवता मानते
हैं। साथ ही वायु के तीन अवतार मान्य हैं- त्रेतायुगमें श्रीहनुमान,द्वापर
में भीम और कलियुग में श्रीमध्व।रामानन्द-सम्प्रदाय में वे
सम्प्रदायाचार्य, भगवान् के परिकर एवं नित्य-उपास्य के रूप में मान्य व
पूजित हैं। वल्लभ-सम्प्रदाय में अष्टछापके भक्त-कवियों की वाणी भी
श्रीहनुमद्गुणानुवादसे अलंकृत हैं। स्वयं महाप्रभु वल्लभाचार्यजीकी निष्ठा
दृष्टव्य है- अंजनिगर्भसम्भूतकपीन्द्रसचिवोत्तम।
रामप्रियनमस्तुभ्यंहनुमन्रक्ष सर्वदा॥ आनन्द रामायण में उल्लिखित अष्ट
चिरजीवियोंअश्वत्थामा,बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य,परशुराम और
मार्कण्डेय) में हनुमान भी सम्मिलित हैं। भगवान् श्रीराम से उन्हें
चिरंजीवित्वव कल्पान्त में सायुज्य मुक्ति का वर मिला है- मारुते
त्वंचिरंजीव ममाज्ञांमा मृषा कृथा।एवम्कल्पान्ते मम् सायुज्य
प्राप्स्यसेनात्रसंशय:। (अध्यात्म रामायण)। श्रीरामकथाके अनन्य रसिक
श्रीहनुमानजीकथा-स्थल पर अदृश्य रूप अथवा छद्मवेषमें विद्यमान रहकर सतत्
कथा- रसास्वादन में निमग्न रहते हैं। अप्रतिम रामभक्त श्रीहनुमानसर्वथा
प्रणम्य हैं- प्रनवउंपवनकुमारखल बन पावक ग्यानघन। जासुहृदय आगार बसहिंराम
सर चाप धर॥
[पुस्तक 'भग्वान्नाम महिमा एवं परम सेवा का महत्त्व' श्री जयदयाल जी गोयन्दका ]
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