यज्ञ-संस्कार आदि कर्मकाण्ड भारतीय ऋषि-मनीषियों द्वारा लम्बी शोध एवं
प्रयोग-परीक्षण द्वारा विकसित असामान्य क्रिया-कृत्य हैं । इनके माध्यम से
महत् चेतना तथा मानवीय पुरुषार्थ की सूक्ष्म योग साधना को दृश्य-श्रव्य
(ऑडियो विजुअल) स्वरूप दिया गया है । इसमें अनुशासनबद्ध स्थूल
क्रिया-कलापों के द्वारा अंतरंग की सूक्ष्म शक्तियों को जाग्रत् एवं
व्यवस्थित किया जाता है । औषधि निर्माण क्रम
में अनेक प्रकार के उपचार करके सामान्य वस्तुओं में औषधि के गुण पैदा कर
दिये जाते हैं । मानवीय अंतःकरण में सत्प्रवृत्तियों, सद्भावनाओं,
सुसंस्कारों के जागरण, आरोपण, विकास व्यवस्था आदि से लेकर महत् चेतना के
वर्चस्व बोध कराने, उनसे जुड़ने, उनके अनुदान ग्रहण करने तक के
महत्त्वपूर्ण क्रम में कर्मकाण्डों की अपनी सुनिश्चित उपयोगिता है । इसलिए न
तो उनकी उपेक्षा की जानी चाहिए और न उन्हें चिह्न पूजा के रूप में करके
सस्ते पुण्य लूटने की बात सोचनी चाहिए । कर्मकाण्ड के क्रिया-कृत्यों को ही
सब कुछ मान बैठना या उन्हें एकदम निरर्थक मान लेना, दोनों ही हानिकारक हैं
। उनकी सीमा भी समझें, लेकिन महत्त्व भी न भूलें । संक्षिप्त करें, पर
श्रद्धासिक्त मनोभूमि के साथ ही करें, तभी वह प्रभावशाली बनेगा और उसका
उद्देश्य पूरा होगा ।
यज्ञादि कर्मकाण्ड द्वारा देव आवाहन,
मंत्र प्रयोग, संकल्प एवं सद्भावनाओं की सामूहिक शक्ति से एक ऐसी भट्टी
जैसी ऊर्जा पैदा की जाती है, जिसमें मनुष्य की अंतःप्रवृत्तियों तक को
गलाकर इच्छित स्वरूप में ढालने की स्थिति में लाया जा सकता है । गलाई के
साथ ढलाई के लिए उपयुक्त प्रेरणाओं का संचार भी किया जा सके, तो भाग लेेने
वालों में वांछित, हितकारी परिवर्तन बड़ी मात्रा में लाये जा सकते हैं । इस
विद्या का यत्किंचित् ही सही, पर ठीक दिशा में प्रयोग करने के कारण ही युग
निर्माण अभियान के अंतर्गत सम्पन्न होने वाले यज्ञों में गुण, कर्म,
स्वभाव परिवर्तन के संकल्पों के रूप में बड़ी संख्या में जन-जन द्वारा
देवदक्षिणाएँ अर्पित की जाती हैं ।
इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों
की ओर आकर्षित होती हैं, मन सुख की कल्पना में डूबना चाहता है, बुद्धि
विचारों से प्रभावित होती है; परन्तु चित्त और अंतःकरण में जहाँ स्वभाव और
आकांक्षाएँ उगती रहती हैं, उसे प्रभावित करने में ऊपर के सारे उपचार
अपर्याप्त सिद्ध होते हैं । यज्ञ संस्कारादि ऐसे सूक्ष्म विज्ञान के प्रयोग
हैं, जिनके द्वारा मनुष्य के व्यक्तित्व का कायाकल्प कर सकने वाली उस
गहराई को भी प्रभावित, परिवर्तित किया जा सकता है । जो लोग युग निर्माण
अभियान तथा उसके सूत्र संचालकों के व्यापक प्रयोग परीक्षण से परिचित हैं,
उन्होंने लाखों व्यक्तियों के जीवन में इस विद्या को फलित होते देखा है ।
ऐसे अति महत्त्वपूर्ण कार्य को पूरी निष्ठा और पूरी जागरूकता से किया जाना
चाहिए । उनमें मर्म समझने एवं उन्हें क्रियान्वित कर सकने की कुशलता तथा
प्रवृत्ति विकसित करने का प्रयास मनोयोगपूर्वक बराबर करते रहना चाहिए ।
--- श्री चन्दन प्रियदर्शी
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