हमारे देश के चौथे आन्तरिक शत्रु "मेकॉले पुत्रों (भूरा चमड़े के अंग्रेज़)" की निम्नलिखित ६ विशेषताएँ।
१. अंग्रेज़ी रीति रिवाज़ से बहुत प्रेम करते हैं, तथा उन्हीं को उच्च मानते हैं।
२. अपने ही देश की संस्कृति को सदैव पिछड़ा हुआ कहते हैं, उन्हें अपने
संस्कार व्यक्त करने में भी लज्जा आती है क्योंकि वे अपने देश की संस्कृति
को नीच मानते हैं ।
३. उनकी एक कठोर धारणा है कि अंग्रेज़ी भाषा बोलने वाले उच्च हैं, अंग्रेज़ी न जानने वाले तुच्छ हैं।
४.वे अपने विचार अपनी मातृभाषा में ठीक से व्यक्त नहीं कर पाते ,वे अक्सर
अपने विचार व्यक्त करने के लिए बहुत सारे अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग करते
हैं।
५. अंग्रेज़ों को धन्यवाद देते
हैं "कि आखिर देश को उन्होंने ही बचाया", अंग्रेज़ शासन के पूर्व शासनकाल
को वे बहुत पिछड़ा हुआ और अवनत मानते हैं। वे अक्सर भारतवर्ष की प्राचीन
हिन्दू सभ्यता को अशिक्षित,जंगली, गँवार,असभ्य और अन्धविश्वासों का ढेर
मानते हैं।
६. वे भारत में अपना जीवन बिताते हैं पर उनका मन केवल
पश्चिमी देशों में रहता है और उनके चाल-चलन का नकल करने को ही आवश्यक मानते
हैं।
मेकॉले शिक्षा प्रथा में पढ़ने वाले सभी "मेकॉले पुत्र" नहीं हो
जाते, पर लगभग १०० में से ६ या ७ जन अवश्य मेकॉले पुत्र जैसे बरताव करते
हैं और हमारा दुर्भाग्य यह है कि देश की गलत नीतियाँ इन्ही अल्पसंख्यक
मेकॉले पुत्रो के दबाव में ली गईं हैं, जिससे देश की यह बदहाल है।
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