Saturday, July 7, 2012

शास्त्र अक्षरशः सत्य थे ,सत्य हैं,सत्य ही रहेंगे

शास्त्र अक्षरशः सत्य थे ,सत्य हैं,सत्य ही रहेंगे,,सार्वकालिक ,सार्वदेशिक,सर्वजनीन हितोपदेष्टा ,,चारों युगों के प्राणियों के कर्म स्वभाव का वर्णन करने बाले,,इन शास्त्रों की सत्यता में प्रमाण ये खंडन करने बाले,,निंदा करने बाले,,स्वेच्छाचारिता के समर्थक,,तथा स्वेच्छाचारी पशुप्राय आचरण बाले ही हैं,,क्योंकि कलयुगी प्राणी के विषय में जो जो लिखा है वह सब ये करके शास्त्रों की सत्यता को ही प्रमाणित कर रहे हैं,,,अतः सही में ये तो अभिनंदनीय हैं निंदनीय नहीं,,,क्योंकि आज वह सदाचार ,साधना,सत्य तपस्या,त्याग, सहनशीलता तो है नहीं अतः लोग शंका करते हैं कि शास्त्र कल्पित हैं ,,,परन्तु पवित्र माता पिता की कृपा ,,भगवद्कृपा से सम्पन्न सज्जन जानते हैं कि काल क्रम से ऐसा होता ही है,,,प्रकृति कभी बीज रूप में कभी वृक्ष रूप में हो जाती है,,,आज साधना सत्य तप सदाचार बीज रूप में हैं,,,कलिप्रभाव वश कदाचार वृक्ष रूप में है,,,कृतादि युगों में सत्य शौच तपादि वृक्ष रूप में तथा कदाचार बीज रुप में रहते है,,,किमधिकम् ,,,,,बुरा समय जानकर ,,,,,भगवद्कपा का आश्रय ले अपना जीवन संवारने में ध्यान देना ही कल्याण का सहज मार्ग है,,जिज्ञासु आकर भी सीख लेगा ,,,शंकालु को घर जाकर भी समझा न पाओगे,,,,
जो मनुष्य हैं,उनके लिये ही शाश्वत जीवन दर्शन का निदर्शन कराने के लिये मनुस्मृति है(मानव के सार्वकालिक सर्वविध हित का समुपदेष्टा संविधान)कुछ मर्यादाओं के साथ मनीषियों ने शास्त्रों को गोपनीय रखने का प्रस्ताब किया,,क्यों ,,,अपात्र को उनसे लाभ के स्थान पर हानि होने का भय था,,प्राथमिक स्तर के छात्र को स्नातक स्तर की पुस्तक जबरदस्ती पढाओगे तो वही होगा जो आज हो रहा है,,,शंका करेगा,,गलत बतायेगा,,पक्षपात बतायेगा,,समझ न आयेगी और कर भी क्या सकता है विचारा,,,हम अपने जीवन को मनुस्मृति की कसौटी पर कसकर देखे हमारा जीवन कितना उसके अनुसार है,,हो जायेगा शास्त्रों का निर्धारण,,अनन्तानि शास्त्राणि,अनन्ताश्च वेदाः

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