भारतीय दर्शन एवँ पाश्चात्य दर्शन का भेद :एक दृष्टि
''दर्शन शब्द दृश् धातु से बना है जिसका अर्थ है ' जिसके द्वारा देखा जाए ' . भारत मे दर्शन उस विद्या को कहा जाता है जिसके द्वारा तत्व का साक्षात्कार हो सके . भारत का दार्शनिक केवल तत्व की बौधिक व्याख्या से हि संतुष्ट नही हो पाता , बल्कि वह तत्व की अनुभूति पाना चाहता है . भारतीय दर्शन मे अनुभूतियाँ दो प्रकार की मानी गयी हैं १. ऐन्द्रीय ( Sensuous)२. अनैन्द्रीय (Non-sensuous ) या आध्यात्मिक अनुभूति भारतीय विचारकों के अनुसार तत्व का साक्षात्कार आध्यात्मिक अनुभूति से हि संभव है . आध्यात्मिक अनुभूति बौद्धिक ज्ञान से उच्च है . बौद्धिक ज्ञान मे ज्ञाता और ज्ञेय के बीच द्वेत वर्तमान रहता है , परन्तु आध्यात्मिक अनुभूति मे ज्ञाता और ज्ञेय का भेद नष्ट हो जाता है . चुकी भारतीय दर्शन तत्व के साक्षात्कार मे आस्था रखता है इसलिए इसे तत्व दर्शन भी कहते हैं .
>>भारतीय दर्शन की मुख्य विशेषता उसके व्यवहारिक पक्ष मे है .मानव के दुखों की निवृति के लिए और/ या तत्व साक्षात्कार कराने के लिए हि भारत मे दर्शन का जन्म हुआ है (( पाश्चात्य दर्शन का उद्भव आश्चर्य और उत्सुकता से हुआ है ..वहाँ दर्शन का कोई खास व्यावहारिक उद्येश्य नहीं है ...वहाँ दर्शन मानसिक व्यायाम मात्र है )) ..
>>भारत मे ज्ञान चर्चा मात्र ज्ञान के लिए(( पाश्चात्यों की भाति )) ना होकर के मुक्ति के लिए हुई है......पश्चिम मे दर्शन मात्र साध्य रूप है .भारत मे साधन रूप ..
>>पश्चिमी दर्शन को वैज्ञानिक कहा जाता है , क्योकि वहाँ के अत्यधिक दार्शनिकों ने वैज्ञानिक पद्धंती एवँ वैज्ञानिक दृष्टिकोण को चरम सत्ता के ऊपर प्रकाश डालने के लिए को अपनाया है ...विज्ञान वास्तव मे सैद्धांतिक होता है और जीवन से जुड़ा हुआ धर्म व्यावहारिक.. इस कारण से पाश्चात्य जगत के दर्शन मे विज्ञान व धर्म मे परस्पर संघर्ष दीखता है ..परन्तु भारत मे ऐसा नहीं है क्योकि यहाँ का दर्शन और धर्म दोनो हि व्यावहारिक है . भारतीय दर्शन पर धर्म की अमित छाप है ..सत्य के दर्शन के लिए धर्म सम्मत आचरण प्रथम आवश्यकता है ऐसा भारतीय दर्शन मे माना गया है
>>पश्चिमी दर्शन बौद्धिक है ..वहाँ के दार्शनिकों का मानना है कि बुद्धि के द्वारा वास्तविक एवँ सत्य ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है ..ऐसा वहाँ के दार्शनिकों का मानना है . बुद्धि जब भी किसी वस्तु का ज्ञान प्राप्त करती है तब वह भिन्न भिन्न अंगों के विश्लेषण द्वारा द्वारा हि ज्ञान प्राप्त करती है ..डेमोक्रेट्स , सुकरात , प्लेटो , अरस्तु , देकार्त , स्पिनोजा , लेबनीज, हीगल आदि दार्शनिकों ने बुद्धि कि महत्ता पर जोर दिया है . परन्तु भारत मे तार्किकता के महत्व को स्वीकार करते हुए आध्यात्मिक ज्ञान को तार्किक ज्ञान से सदैव उच्च स्थान दिया गया है ..साक्षात्कार मे ज्ञाता व ज्ञेय का भेद मिट जाता है
>>पश्चिमी दर्शन विश्लेषणात्मक(analytic ) है ..करण यह है कि वहाँ दर्शन की विभिन्न शाखाएं हैं ..भिन्न भिन्न मानी गए हैं .जैसे तत्व विज्ञान ( metaphysics ) , नीतिनिज्ञान ( ethics ), प्रमाण विज्ञान ( epistemology ) , ईश्वर विज्ञान ( theology ), सौंदर्य विज्ञान (aesthetics ) ...आदि तथा दर्शन मे भी इनकी व्याख्या अलग से की गयी है . परन्तु भारतीय दर्शन संश्लेषणात्मक( synthetic) है ..यहाँ पर सभी का विचार समग्र रूप से एक साथ किया गया है
>>पाश्चात्य दर्शन इह लोक की सत्ता मे हि विश्वास करता है ..जबकी अधिकाँश भारतीय दर्शन इह लोक के अतिरिक्त पर लोक की सत्ता मे भी विश्वास करते है
''दर्शन शब्द दृश् धातु से बना है जिसका अर्थ है ' जिसके द्वारा देखा जाए ' . भारत मे दर्शन उस विद्या को कहा जाता है जिसके द्वारा तत्व का साक्षात्कार हो सके . भारत का दार्शनिक केवल तत्व की बौधिक व्याख्या से हि संतुष्ट नही हो पाता , बल्कि वह तत्व की अनुभूति पाना चाहता है . भारतीय दर्शन मे अनुभूतियाँ दो प्रकार की मानी गयी हैं १. ऐन्द्रीय ( Sensuous)२. अनैन्द्रीय (Non-sensuous ) या आध्यात्मिक अनुभूति भारतीय विचारकों के अनुसार तत्व का साक्षात्कार आध्यात्मिक अनुभूति से हि संभव है . आध्यात्मिक अनुभूति बौद्धिक ज्ञान से उच्च है . बौद्धिक ज्ञान मे ज्ञाता और ज्ञेय के बीच द्वेत वर्तमान रहता है , परन्तु आध्यात्मिक अनुभूति मे ज्ञाता और ज्ञेय का भेद नष्ट हो जाता है . चुकी भारतीय दर्शन तत्व के साक्षात्कार मे आस्था रखता है इसलिए इसे तत्व दर्शन भी कहते हैं .
>>भारतीय दर्शन की मुख्य विशेषता उसके व्यवहारिक पक्ष मे है .मानव के दुखों की निवृति के लिए और/ या तत्व साक्षात्कार कराने के लिए हि भारत मे दर्शन का जन्म हुआ है (( पाश्चात्य दर्शन का उद्भव आश्चर्य और उत्सुकता से हुआ है ..वहाँ दर्शन का कोई खास व्यावहारिक उद्येश्य नहीं है ...वहाँ दर्शन मानसिक व्यायाम मात्र है )) ..
>>भारत मे ज्ञान चर्चा मात्र ज्ञान के लिए(( पाश्चात्यों की भाति )) ना होकर के मुक्ति के लिए हुई है......पश्चिम मे दर्शन मात्र साध्य रूप है .भारत मे साधन रूप ..
>>पश्चिमी दर्शन को वैज्ञानिक कहा जाता है , क्योकि वहाँ के अत्यधिक दार्शनिकों ने वैज्ञानिक पद्धंती एवँ वैज्ञानिक दृष्टिकोण को चरम सत्ता के ऊपर प्रकाश डालने के लिए को अपनाया है ...विज्ञान वास्तव मे सैद्धांतिक होता है और जीवन से जुड़ा हुआ धर्म व्यावहारिक.. इस कारण से पाश्चात्य जगत के दर्शन मे विज्ञान व धर्म मे परस्पर संघर्ष दीखता है ..परन्तु भारत मे ऐसा नहीं है क्योकि यहाँ का दर्शन और धर्म दोनो हि व्यावहारिक है . भारतीय दर्शन पर धर्म की अमित छाप है ..सत्य के दर्शन के लिए धर्म सम्मत आचरण प्रथम आवश्यकता है ऐसा भारतीय दर्शन मे माना गया है
>>पश्चिमी दर्शन बौद्धिक है ..वहाँ के दार्शनिकों का मानना है कि बुद्धि के द्वारा वास्तविक एवँ सत्य ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है ..ऐसा वहाँ के दार्शनिकों का मानना है . बुद्धि जब भी किसी वस्तु का ज्ञान प्राप्त करती है तब वह भिन्न भिन्न अंगों के विश्लेषण द्वारा द्वारा हि ज्ञान प्राप्त करती है ..डेमोक्रेट्स , सुकरात , प्लेटो , अरस्तु , देकार्त , स्पिनोजा , लेबनीज, हीगल आदि दार्शनिकों ने बुद्धि कि महत्ता पर जोर दिया है . परन्तु भारत मे तार्किकता के महत्व को स्वीकार करते हुए आध्यात्मिक ज्ञान को तार्किक ज्ञान से सदैव उच्च स्थान दिया गया है ..साक्षात्कार मे ज्ञाता व ज्ञेय का भेद मिट जाता है
>>पश्चिमी दर्शन विश्लेषणात्मक(analytic ) है ..करण यह है कि वहाँ दर्शन की विभिन्न शाखाएं हैं ..भिन्न भिन्न मानी गए हैं .जैसे तत्व विज्ञान ( metaphysics ) , नीतिनिज्ञान ( ethics ), प्रमाण विज्ञान ( epistemology ) , ईश्वर विज्ञान ( theology ), सौंदर्य विज्ञान (aesthetics ) ...आदि तथा दर्शन मे भी इनकी व्याख्या अलग से की गयी है . परन्तु भारतीय दर्शन संश्लेषणात्मक( synthetic) है ..यहाँ पर सभी का विचार समग्र रूप से एक साथ किया गया है
>>पाश्चात्य दर्शन इह लोक की सत्ता मे हि विश्वास करता है ..जबकी अधिकाँश भारतीय दर्शन इह लोक के अतिरिक्त पर लोक की सत्ता मे भी विश्वास करते है
कुछ भी समझ नहीं आया
ReplyDeletevery well written
DeleteThank you 😊
ReplyDeleteReally very helpful for me🙏
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