>>क्या विश्व पूर्णतः असत्य है ??
असत्य ( unreal ) उसे कहा जाता है जो असत् ( non - existent ) है . आक्ष
कुसुम , वन्ध्या पुत्र आदि असत्य कहे जा सकते हैं , क्योकि इनका अस्तित्व
नहीं है . इसके विपरीत विश्व का अस्तित्व है . विश्व दृश्य है .((आचार्य
शंकर ने स्वयं भी जगत को असत्य मानने वालों की ( उदा.-बौद्ध मत विज्ञान वाद
)कटु आलोचना की है..अतः यह स्वयं सिद्ध है कि वो भी विश्व को पूर्णतः असत्य नहीं मानते होंगे ))
शंकराचार्य जी का मोक्ष सम्बन्धी विचार भी जगत की असत्यता का खंडन करता है
..वे बल पूर्वक कहते हैं ..मोक्ष का अर्थ जगत का तिरोभाव नहीं है . मोक्ष
प्राप्त करने के बाद भी जगत का अस्तित्व रहता है ..अगर ऐसा ना माना जाए तो
मोक्ष का अर्थ विश्व का विनाश होता है और ऐसे मे विश्व का विनाश प्रथम
व्यक्ति के मोक्ष प्राप्त करने के बाद हि हो जाता ..इसके विपरीत मोक्ष
संसार मे रह कर हि प्राप्त किया जाता है और जीवन मुक्ति के बाद भी संसार
विद्यमान रहता है.
शंकराचार्य जी स्वयं भी कर्म मे भी विश्वास करते हैं
..उन्होंने स्वयं भी लोक संग्रह्नार्थ जघन्य कर्म किये ..कर्म विश्व मे रह
कर हि किया जाता है ..उनके स्वयं का भी कर्म करना जगत असत्यता का खनन करता
है ..
डा. राधाकृष्णन ने इसी वजहों से कहा है , " जीवन मुक्ति का
सिद्धांत , मूल्यों की भिन्नता मे विश्वास , सत्य व भ्रान्ति की भिन्नता मे
विश्वास , धर्म व अधर्म मे विश्वास , मोक्ष प्राप्ति की संभावना जो विश्व
की अनुभूतियों द्वारा संभव है , प्रमाणित करता है है कि आभास मे भी सत्यता
निहित है
>>क्या विश्व सत्य है ??
सत्य वह है
जो त्रिकाल मे विद्यमान रहता है . सत्य का विरोध ना हि अनुभूति से और ना हि
तर्क की दृष्टि से हि संभव है . . यह जगत विरोधों से पूर्ण है ..यह नित्य
परिवर्तन शील है ..जगत का व्याघात तर्क की दृष्टि से संभव है ..अतः यह जगत
सत्य नहीं हो सकता ..अतः ब्रम्ह हि एक मात्र सत्य है
अतः जगत ना हि पूर्णत: सत्य है ना हि असत्य ..क्योकि किसी एक के मानने मे भी विरोधाभाष है ..
इसी कारण से आद्य शंकराचार्य जी ने जगत/ माया को अनिर्वचनीय कहा .
>>शंकराचार्य जी के मतानुसार तीन सत्ताएं संभव है ..
१. पारमार्थिक सत्ता
२. व्यवहारिक सत्ता
३. प्रातिभाषिक सत्ता ((प्रातिभाषिक सत्ता के अंतर्गत स्वप्न , भ्रम आदि रखे जाते हैं .))
शंकराचार्य जी के अनुसार विश्व व्यवहारिक दृष्टिकोण से पूर्णतः सत्य है
..विश्व स्वप्न ,भ्रम इत्यादि(( प्रातिभाषिक सत्ता.. ज्ञात हो कि
शंकराचार्य जी ने भ्रम इत्यादि को भी कुछ सत्यता प्रदान की है )) की
तुलना मे ज्यादा सत्य है ..और पारमार्थिक दृष्टिकोण से कम सत्य / असत्य .
>>आचार्य शंकर विश्व का आधार ब्रह्म को मानते हैं उन्होंने कहा है
कि ब्रह्म की यथार्थता जगत का आधार है ..विश्व ब्रह्म पर आश्रित होने के
कारण वस्तुतः ब्रम्ह हि है ..जिस प्रकार मिटटी के घड़े का आधार मिटटी होने
के कारण मिटटी का घड़ा सत्य माना जाता है ..उसी प्रकार विश्व का आधार
ब्रम्ह होने के कारण विश्व को असत्य मानना गलत है .
यह जगत निरपेक्ष
ब्रम्ह नहीं है बल्कि उस पर आश्रित है ..जिसका आधार तो यथार्थ हो पर जो
स्वयं तथार्थ ना हो उसे यथार्थ का आभास या व्यावहारिक रूप अवश्य कहा जाएगा
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