Wednesday, July 4, 2012

आचार्यो मृत्युः

गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर आप सभी विद्वत जनो को प्रेम और अहोभावपूर्वक दण्डवत् |

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः |
गुरुर साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ||

यह एक बहुत हि अद्भुद सूत्र हैं , यह सूत्र किसी एक व्यक्ति क अनुदान नहि हैं बल्कि सदियो के अनुभव क निचोड हैं | सुना तो हं लोगो ने इस सूत्र को बहुत बार हैं , इसलिये शायद समझना भी भूल गए हैं | यह भ्रान्ति होती हैं , जिस बात को हम बहुत बार सुन लेते हैं , लगता हैं : समझ गए --- बिना समझे ही |

गुरु को हमने तीन नाम दिए हैं -- ब्रह्मा , विष्णु और महेश | ब्रह्मा का अर्थ हैं जो बनाये , विष्णु का अर्थ हैं जो संभाले और महेश का अर्थ हैं जो मिटाए | इसलिए सद्गुरु वही हैं जिसके पास ये तीनो प्रकार की कलाए हैं | लेकिन हम उन गुरुवो को खोजते हैं जो हमें मिटाए नहीं बल्कि सवारे | मगर जिसे मिटाना नहीं आता वो क्या ख़ाक किसी को सवारेगा ? हम उन गुरुवो के पास जाते हैं , जो हमें सांत्वना दे | सांत्वना यानि संभाले | हमारी मलहम पट्टी करे , हमें इस तरह के विश्वास दे जिससे हमारा भय कम हो जाये , चिंताए कम हो जाये | तो ऐसे लोग सद्गुरु नहीं हैं | सद्गुरु वो हैं जो हमें नया जीवन दे , नया जन्म दे | लेकिन नया जन्म तो तभी संभव हैं जब गुरु हमें पहले मिटाए , तोड़े | एक बहुत ही प्राचीन सूत्र हैं --- " आचार्यो मृत्युः " | वह जो आचार्य हैं , वह जो गुरु हैं वो मृत्यु हैं , जिस किसी ने भी ये सूत्र कहा होगा , उसने जानकार कहा होगा , जी कर कहा होगा | पृथ्वी के किसी भी कोने में किसी ने भी गुरु को मृत्यु नहीं कहा हैं | लेकिन हमारे देश ने गुरु को मृत्यु कहा हैं |

हमने तीन रूप सद्गुरु को दिए | बनाने वाला , सँभालने वाला और मिटाने वाला | वो सिर्फ बनता ही नहीं हैं , वो सिर्फ संभालता ही नहीं हैं और न ही सिर्फ मिटाता हैं | उसके अन्दर तो ये तीनो रूप मौजूद हैं , इसलिए तो सद्गुरु के पास सिर्फ और सिर्फ हिम्मतवाले लोग ही जाते हैं , जिनकी मरने की तैयारी हो , जो मिटने के लिए तैयार होता हैं सिर्फ वाही सद्गुरु के पास जाने का हिम्मत कर पाता हैं |जो लोग सांत्वना प्राप्त करने के लिए सद्गुरु के पास जाना चाहते हैं उन्हें पंडित - पुरोहितो के पास जाना चाहिए | यह उनका काम हैं -- की आप रोते गए , उन्होंने आपके आंसू पोछ दिए , पीठ थपथपा दी की मत परेशां हो सब ठीक हो जायेगा | कुछ उपाय बता दिए , कोई मंत्र बता दिए , कोई व्रत बता दिए , ये सब कार्य पंडित पुरोहितो का हैं न की किसी सद्गुरु का | इनमे से कोई भी जीवन को रूपांतरित करने का तरीका नहीं हैं |

सद्गुरु के पास तो मरना भी सीखना होता हैं और जीना भी सीखना होता हैं | और जीते जी मर जाना --- यही ध्यान हैं , यही संन्यास हैं | जीवन जीने की कला हैं -- जैसे कमल के पत्ते , पानी में होते हुवे भी पानी उनपे ठहर तक नहीं पाती |सद्गुरु हमें यही सिखाते हैं , और ये तीन घटनाये सद्गुरु के पास घाट जाये तो चौथी घटना स्वयं हमारे भीतर घटती हैं , इसलिए उस चौथे को भी हमने सद्गुरु के लिए कहा हैं | तीन चरणों के बाद जो अनुभूति हमारे भीतर होगी इन तीन चरणों के माध्यम से , इन तीन द्वारों से होके गुजरने से , इन तीन द्वारो में प्रवेश कर के जो प्रतिमा का मिलन होगा , वह चौथी अवस्था -------" गुरुर साक्षात परब्रह्म " | तब आप जानोगे की आप जिसके पास बैठे थे वे कोई व्यक्ति नहीं था , जिसने संभाला, मारा पीता , तोडा , जगाया ---- वह तो कोई व्यक्ति था ही नहीं , उसके भीतर तो परमात्मा ही था | और जिस दिन हम लोग अपने सद्गुरु के भीतर परमात्मा को देख लेंगे उस दिन हमें अपने भीतर भी परमात्मा की झलक मिल जाएगी | क्योकि गुरु तो दर्पण हैं उसमे हमें अपनी ही झलक दिखाई पड़ जाएगी |इस लिए , तीन चरण हैं और चौथी मंजिल | और सद्गुरु के पास चारो चरण पुरे हो जाते हैं |" तस्मै श्री गुरवे नमः" ....| इसलिए गुरु को नमस्कार , इसलिए गुरु को नमन |
 श्री पियूष चतुर्वेदी 

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