Wednesday, June 6, 2012

नल और नील

शड़्का--
वीर नल विश्वकर्माजी के पुत्र हैं वा0रा017/12.औरसेनापति नील पावकसुत हैं17/13. परमपूज्य गोस्वामीजी इन्हे भाई कहे हैं -- नाथ नील नल कपि द्वौ भाई । -मा0सु0का060/1.
समाधान - वंश 2प्रकार से चलता है । पहला जन्म दूसरा विद्या से । जन्म से वंशपरम्परा का विस्तार प्रसिद्ध है पर विद्या से जो परम्परा चलती है उसके विषय में प्रायः कम ही लोग जानते हैं। वैयाकरण सिद्धान्त कौमुदी में इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए भट्टोजिदीक्षित लिखते हैं- वंशो द्धा विद्यया जन्मना च-तद्धित प्रकरण । यहां नल और नील विद्या से चलने वाली वंश परम्परा के अनुसार भाई हैं; क्योंकि दोनो ने एक ही गुरु से विद्या पढ़ी थी । बचपन सेही साथ साथ रहते थे । अतएव मानस में गोस्वामी जी नेइसक यों उल्लेख किया-- लरिकाईं ऋषि आशिष पाई । यदि कल्पभेद मान लें तो किसी कल्प मे ये दोनो सगे भाई भी हो सकते हैं अतः ऐसी स्थिति मे शड़्का की कोई गुञ्जाइस ही नहीं ।
अब प्रश्न उठता है कि आगे चलकर मानस में कहा गया कि --तिन्हके परस किये गिरि भारे । तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे । । -मा0सु0का060/2.लड़्का पर आक्रमण केपूर्व सागर पर सेतु निर्माण नल नील को ऋषिसे प्राप्त आशीष् के कारण हुआ। अर्थात् समुद्र पर पत्थर इनके स्पर्श के कारण तैरे तो इसमें भगवान का क्या प्रताप है जिसका सड़्केत गोस्वामी जी कर रहे हैं।
समाधान - नलनील बचपन मे ऋषियों के शालग्राम एवं अन्य वस्तुएं जल में फेंक देते थे अतः उन्होने परेशान होकर इन्हे कहा कि तुम दोनो की फेंकी कोई वस्तु नही डूबेगी । ऋषियों को इससे अपनी वस्तु मिल जाती थी और यह भविष्य मे रामकार्य के लिए सहायक हो गया । भगवान का प्रताप सेतु निर्माण में यह है कि ऋषि आशीष् से पत्थर समुद्र में तैरते तो थे पर सागर की उत्ताल तरड़्गों के कारण इधर उधर बह जाते थे । तब हनुमान जी ने एक पत्थर पर भगवान के नाम का प्रथम अक्षर रा और दूसरे पर द्वितीय अक्षर म लिख। दिया । अतः वे पाषाण आपस में मिल गये। यही सेतु निर्माण में श्रीराम प्रभु का प्रताप है । नाम और नामी श्रीराम में अभेद है । इसलिए कहा गया है कि
' राम ' इस दो अक्षर वाले नाम ने धनुष् तोड़कर पिनाकधारी शिवजी का मान भड़्ग कर दिया -- रामेति द्व्यक्षरं नाम मानभड़्गं पिनाकिनः ।

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