Saturday, June 2, 2012

वेदों से , तथ्य व् सत्य के मोती

 विश्व का प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद  है I अथर्व वेद , साम वेद व यजुर्वेद ऋग्वेद के बाद प्रकाश में आये I  अथर्व वेद के प्रणेता ऋषि अथर्ववान हैं I अथर्व वेद में प्रयुक्त कयी सूक्त ऋग्वेद  में भी सम्मिलित हैं I ऋषि अथर्ववान ने ‘ अग्नि या अथर्व ‘ पूजन की विधि इन सूक्तों में बतलायी हैं I पिप्पलाद ऋषि व शौनक ऋषि ने अथर्व वेद में सूक्त लिखे हैं I शौनक ऋषि से पिप्पलाद ऋषि की शाखा अधिक प्राचीन हैं I ९ शाखाएं जो पिप्पलाद ऋषि द्वारा प्रणत हुईं हैं उन में से २ आधुनिक समय तक आते हुए अप्राप्य हो चुकीं हैं I  पिप्पलाद ऋषि के तथ्यों को आधार बनाकर उन पर , आगे पाणिनी व पतंजलि ने भाष्य पर लिखा I  भाष्य ‘ ब्रह्मविद्या ‘ का ज्ञान समझाते हैं और यही भाष्य ,  आगे चलकर ‘ वेदान्त ‘ की पूर्व पीठिका बने  I भारतीय सनातन धर्म प्रणाली के यह तथ्य एवं सत्य , संस्कृति , भाषा एवं धर्म के  प्रथम आध्याय हैं I
 योगाचार्य पतंजलि ने २१ शाखाओं का निर्देश दिया है  I इन शाखाओं में निर्देशित कुछ  नाम इस प्रकार हैं — १ ) शाकालाका संहिता २ ) आश्वलायन संहिता , कप्पझला सूक्त , लक्ष्मी सूक्त , पवमान सूक्त , हिरण्य सूक्त, मेधा सूक्त, मनसा सूक्त इत्यादी
जिन्हें आचार्य आश्वालयन, महीदास , तथा पातंजली ने प्रतिपादीत किया I
विवेक चूडामणि शंकराचार्य विरचित ग्रन्थ आगे चलकर , पातंजलि योगसूत्र से प्रभावित होकर उन्हीं का ज्ञान लिए रचे गये  हैं I
पातंजलि ने योगसूत्र ,  जिस  में अष्टांग योग, क्रिया योग द्वारा चित्त वृत्ति , प्रत्यय संस्कार वासना , आशय , निरोध, परिणाम , गुण व प्र्तिपश्व का व्यक्ति के जीवन से सम्बन्ध किस तरह हैं उस तथ्य की विशद व्याख्या की I जगदगुरु शंकराचार्य का मत है कि ‘ अद्वैतवाद ‘ ब्रह्म का पूर्ण सत्य स्वरूप है I
       कठोपनिषद : संसार का परम सत्य है ,  जीव की मृत्यु ! योग पध्धति  द्वारा मृत्यु पर विजय की कथा कठोपनिशद की विषय वस्तु है I कथानक है कि योगाभ्यास में रत एक बालक , शरीर छोड़ कर , मृत्यु के अधिदेव , यमराज के पास यमलोक  पहुँच जाता है  और स्वयं यमराज से ‘ मृत्यु ‘ के संबंध में शिक्षा व  ज्ञान प्राप्त करता है और ३ दिवस पश्चात, छोड़े हुए शरीर में , पुन: लौट आता है और जीवित हो जाता है !
         महर्षि वेद व्यास ने ‘ योग  भाष्य ‘ दीये जिस के टीकाकार ‘ वाचस्पति ‘ हुए I
साँख्य – योग , द्वैत वाद भी योगाभ्यास के अंश हैं I
३०० वर्ष , ईसा पूर्व की शताब्दी में चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल में मौर्य वंश के सृजक चतुर , मंत्री पद पर आसीन चाणक्य या कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ ” अर्थशास्त्र ” में , सांख्य योग और योगाभ्यास पर अपने विचार लिखे हैं और उनके महत्त्व पर भार दिया है I महाभारत कालीन विदुरनीति नामक ग्रन्थ जो विदुर  जी ने लिखा  है वह ‘ अर्थशास्त्र ‘ की भांति वेदाभ्यास व अन्य विषयों पर ज्ञान पूर्ण माहिती देता है I
         मांडूक्य उपनिषद :  १२ मन्त्र समस्त उपनेषदीय ज्ञान को समेटे हैं I जाग्रत , स्वप्न एवं सुषुप्त मनुष्य अवस्था हर प्राणी का सत्य है और इस सत्य के साथ ही निर्गुण पर ब्रह्म व अद्वैतवाद भी जुडा हुआ है I ऊंकार ही हर साधना , तप एवं ध्यान का मूल मन्त्र है यह मांडूक्य उपनिषद की शिक्षा है I
          अथर्ववेद  :  ‘ गणपति उपनिषद ‘ का समावेश अथर्व वेद में किया गया  है I अंतगोत्वा यही सत्य पर ले चलते हुए कहा गया है कि, ईश्वर समस्त ब्रह्मांड का लय स्थान है ईश्वर सच्चिदान्द घन स्वरूप हैं , अनंत हैं, परम आनंद स्वरूप हैं I
               ब्रह्मसूत्र : इस में १०८ उपनिषदों के नाम एवं उन में निहित ज्ञान का समावेश है I काली सनातन उपनिषद में नारद जी ब्रह्मा से प्रश्न करते हैं कि, ‘ द्वापर युग से आगे कलियुग में, संसार सागर किस आधार पर पार कर सकते हैं ? “
 तब ब्रह्माजी उत्तर देते हैं कि, ” मूल मन्त्र , महामंत्र का जाप करने से ही कलियुग में संसार सागर पार होगा – और वह मूल मन्त्र है ,
“  हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे
  हरे  कृष्ण हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण हरे हरे II “
ईश्वर के  नाम का १६ बार उच्चारण करने से जीव के अहम भाव के १६ आवरणों का छेदन सूर्य की १६ प्रकार की विविध कला रूपी किरणों से आच्छादित जीव को कलियुग के दूषित प्रभाव से मुक्ति प्राप्त होती है I परिणाम रूप स्वरूप ज्ञान का तिमिराकाश छंट कर पर ब्रह्मरूपी सर्व प्रकाशित स्वयम्भू प्रकाश मात्र शेष रहता है I हरि  ऊं तत्सत I
      सीता उपनिषद : सीता नाम  प्रणव नाद , ऊंकार स्वरूप  है I परा प्रकृति एवं महामाया भी वहीं हैं I ” सी ” – परम सत्य से प्रवाहित हुआ है I ” ता ” वाचा की अधिष्ठात्री वाग्देवी स्वयम हैं I उन्हीं से समस्त ” वेद ‘ प्रवाहित हुए हैं I
सीता पति ” राम ” मुक्ति दाता , मुक्ति धाम , परम प्रकाश श्री राम से समस्त ब्रह्मांड , संसार तथा सृष्टि उत्पन्न हुए हैं जिन्हें ईश्वर की शक्ति ‘ सीता ‘ धारण करतीं हैं कारण वे  हीं ऊं कार में निहित प्रणव नाद शक्ति हैं I श्री रूप में, सीता जी पवित्रता का पर्याय हैं I
सीता जी भूमि रूप भूमात्म्जा भी हैं I सूर्य , अग्नि एवं चंद्रमा का प्रकाश सीता जी का
‘ नील स्वरूप ‘ है I चंद्रमा की किरणें विध विध औषधियों को , वनस्पति में निहित रोग प्रतिकारक  गुण प्रदान करतीं हैं  I यह चन्द्र किरणें अमृतदायिनी सीता शक्ति का प्राण दायक , स्वाथ्य वर्धक प्रसाद है I वे ही हर औषधि की प्राण तत्त्व हैं I सूर्य की प्रचंड शक्ति द्वारा सीता जी ही काल का निर्माण एवं ह्रास करतीं हैं I सूर्य द्वारा निर्धारित समय भी वही हैं अत: वे काल धात्री हैं I पद्मनाभ महा विष्णु, क्षीर सागर के  शेषशायी श्रीमन्न नारायण के वक्ष स्थल पर ‘ श्री वत्स ‘ रूपी सीता जी विद्यमान हैं I काम धेनू एवं स्यमन्तक मणि भी सीता जी हैं I
                वेद पाठी , अग्नि होत्री द्विज वर्ग के कर्म कांडों के जितने संस्कार, विधि पूजन या हवन हैं उनकी शक्ति भी सीता जी हैं I सीता जी के समक्ष स्वर्ग की अप्सराएं जया , उर्वशी , रम्भा , मेनका नृत्य करतीं हैं एवं नारद ऋषि व् तुम्बरू वीणा वादन कर  विविध वाध्य बजाते हैं चन्द्र देव  छत्र धरते हैं और स्वाहा व् स्वधा चंवर ढलतीं हैं I
रत्न खचित दिव्य सिंहासन पर श्री सीता देवी आसीन हैं  I उनके नेत्रों से करूणा व् वात्सल्य भाव प्रवाहमान है  I जिसे देखकर समस्त देवता गण  प्रमुदित हैं I ऐसी सुशोभित एवं देव पूजित  श्री सीता देवी ‘ सीता उपनिषद ‘ का रहस्य हैं I  वे कालातीत एवं काल के परे हैं I
              यजुर्वेद ने ‘ ऊं कार ‘ , प्रणव – नाद की व्याख्या में कहा है कि ‘ ऊं कार , भूत भविष्य तथा वर्तमान तीनों का स्वरूप है I एवं तत्त्व , मन्त्र, वर्ण , देवता , छन्दस ऋक , काल, शक्ति, व् सृष्टि भी  है I
सीता पति श्री राम का रहस्य मय मूल मन्त्र ” ऊं ह्रीम श्रीम क्लीम एम् राम है I
रामचंद्र  एवं रामभद्र श्री राम के उपाधि नाम हैं I ‘ श्री रामं शरणम मम ‘
 श्रीराम भरताग्रज हैं I वे सीता पति हैं I सीता वल्लभ हैं I
उनका तारक महा मन्त्र ” ऊं नमो भगवते श्री रामाय नम: ” है I
 जन जन के ह्दय में स्थित पवित्र भाव श्री राम है जो , अदभुत है  I
” ॐ नमो भगवते श्री नारायणाय “
 ” ऊं नमो भगवते वासुदेवाय “
ये सारे मन्त्र , अथर्व वेद में श्री राम रहस्य के अंतर्गत लिखे हुए  हैं I
---श्री अनुराग मिश्र  

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