Sunday, June 17, 2012

गणपति एक वैदिक देवता हे

गणपति एक वैदिक देवता हे जिनको वेदों में ब्रह्मणस्पति भी कहा गया हे. पौराणिक मान्यता के अनुसार वह शिव और पार्वती के पुत्र हे. और गण(समूह) पति(मुख्या) अर्थात वह समूह के योग्य सेनापति हे. उनके युद्ध के अनेक सूक्त ऋग्वेद में मिलते हे. वह एक काल्पनिक देवता हे जो मनुष्य देवता इंद्र आदि के समर्थक और आर्य संस्कृति के संरक्षक हे. मूल द्रविड़ संस्कृति एवं आर्य संस्कृति के समन्वय हेतु ऋषियो ने द्रविड़ इश्वर शिव- पार्वती के पुत्र की कल्पना कर गणपति/ब्रह्मणस्पति को जोड़ दिया. जिसे पुराणों में विस्तरण मिला. और ब्रह्मणस्पति को गणपति का आकार मिला.
हाथी जो की द्रविड़ संस्कृति का एक पूज्य प्राणी हे उसे पुराणों में ब्रह्मणस्पति (जो की आर्य संस्कृति के देवता/गुरु हे) का मुख बनाया गया जिससे आर्य-द्रविड़ संस्कृति का सम्यक समन्वय किया जा सके. साथ ही पौराणिको ने गणपति का शरीर की कल्पना कुछ इस आधार पर रखी की जिससे एक तात्विक अर्थ मिलता हे. जेसे की ...
उनकी सूक्ष्म आंखे प्रतिक हे की सेनापति दीर्घद्रष्टा होना चाहिए.
उनके बड़े कर्ण प्रतिक हे की सेनापति को सब कुछ सुनने का सामर्थ्य होना चाहिए.
उनके दो दांत इश्वर पर श्रद्धा (जो की पूर्ण हो) और मेघा (बुद्धि - जो की शेष हो तो भी चलेगा) इस बात का प्रतिक हे.
उनका उदर बहोत बड़ा हे जो संकेत करता हे की सेनापति/आगेवान को सब कुछ अपने पेट में रखना चाहिए.
उनके पैर छोटे हे जो की प्रतिक हे की प्रतिनिधि की चाल धैर्य युक्त किन्तु मक्कम होनी चाहिए.
नमो गणपतये...

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