Tuesday, June 5, 2012

उपनिषद की भूमिका

“मै उपनिषदों को पढता हूँ तो मेरे आँशु बहाने लगते हैं . यह कितना महान ज्ञान हैं . हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम उपनिषदों मे सन्निहित तेजस्विता को अपने जीवन मे धारण करें . हमें शक्ति चाहिए ..शक्ति के बिना काम नहीं चलेगा . यह शक्ति कहाँ से प्राप्त हो ? उपनिषदें हि शक्ति की खाने हैं . उनमे ऐसी शक्तियां भरी पडी हैं कि सम्पूर्ण विश्व को बाल , शौर्य , नव जीवन , प्रदान कर सकें . उपनिषदें किसी भी देश , जाति , मत , सम्प्रदाय का भेद किये बिना हर दीन , दुर्बल , सुखी और दलित प्राणी को पुकार पुकार कर कहती हैं –उठो ..अपने पैरों पर खड़े होवो और बंधनों को काट डालो . शारीरिक स्वाधीनता , मानसिक स्वाधीनता , आध्यात्मिक स्वाधीनता यही उपनिषदों का मूल मन्त्र है “                              ( स्वामी विवेकानंद जी एक भाषण मे बोलते हुये )  

विषय की दृष्टि से भारतीय ज्ञान विज्ञान के उद्गम केंद्र वेदों के तीन विभाग हैं –कर्म , उपासना और ज्ञान . विश्व के कारण तत्व परब्रम्ह का विचार ज्ञान कांड मे किया जाता है . कर्म कांड व उपासना कांड का लक्ष्य मानव मन मे उस परम तत्व को उपलब्ध करने के लिए योग्यता का निर्माण करना है . इसलिए कर्म व उपासना साधन हैं और ज्ञान साध्य ...वेदों के इस ज्ञान कांड का नाम ही उपनिषद हैं. यही ब्रम्ह विद्या का आदि श्रोत कहलाता है . उपनिषदों का मुख्य उद्येश्य ब्रम्ह अथवा आत्मा के यथार्थ स्वरुप का बोध कराना है .


>>उपनिषद शब्द का अर्थ  ब्रम्ह विद्या भी है.


>>वेदों की अगर एक पुरुष के रूप मे कल्पना की जाए तो उपनिषदें उसका सिर हैं . उपनिषद मे ‘उप’ और ‘नि’ उपसर्ग है .सद् धातु गति के अर्थ मे प्रयुक्त होती है . ज्ञान , गमन , और प्राप्ति गति के तीन अर्थ हैं . यहाँ ‘प्राप्ति’ अर्थ उपयुक्त है . “उप –समिप्येन , नि –नितरा , प्राप्नुवन्ति पर ब्रम्ह यया विद्या सा उपनिषद”..अर्थात जिस विद्या के द्वारा परब्रम्ह का सामीप्य एवँ तादात्म्य सम्बन्ध प्राप्त किया जाता है  वह ‘उपनिषद ‘ है .


>> अष्टाध्यायी और कौटिल्य के अर्थ शास्त्र के अनुसार उपनिषद का एक अर्थ ‘रहस्य’ भी है . >> पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी के अनुसार उपनिषद अर्थात ‘परमात्मा की प्राप्ति का रहस्यमय ज्ञान’


>> उप + नि यह दो उपसर्ग सद् धातु मे क्विप प्रत्यय करने पर उपनिषद शब्द बनता है , सद् धातु तीन अर्थों मे प्रयुक्त होती है , विशरण ( विनाश ) , गति ( ज्ञान और प्राप्ति ) अवसादन ( शिथिल करना ) इस आधार पर उपनिषद शब्द का एक और अर्थ बनता है ‘ जो पापों का नाश करे ‘


>> अमर कोश मे आता है ‘धर्मे रहस्युपनिषतस्यात ‘ अर्थात उपनिषद शब्द गूढ़ धर्म एवँ रहस्य के अर्थ मे प्रयुक्त होता है .


>> उप ( व्यवधान रहित ) नि ( सम्पूर्ण ) षद ( ज्ञान ) अर्थात व्यवधान रहित , सर्वांग पूर्ण सम्पूर्ण ज्ञान .           


>>महर्षि अरविन्द के अनुसार “उपनिषद दर्शन सत्य के बारे मे कोई अमूर्त भौतिक चिंतन या न्याय संगत बुद्धि की रचना नहीं है . यह है देखा हुआ , अनुभव किया हुआ , जिया हुआ , अंतरतम मन और अंतरात्मा मे निश्चित शोध और स्वत्व के कथन के आनन्द मे संजोया हुआ सत्य .यह काव्य सौंदर्य बोधात्मक मन की कृति है जो विरलतम आध्यात्मिक आत्म दर्शन और आत्मा और भगवान और विश्व के गभीरतम प्रबुद्ध सत्य के आश्चर्य और सौंदर्य को व्यक्त करता है .”



उपनिषदों की संख्या : श्री राम शर्मा आचार्य जी के अनुसार वर्तमान मन्वंतर मे वेद की ११८० शाखाएं होना माना गया है . प्रत्येक शाखा का एक मन्त्र भाग , एक उपनिषद ,तथा एक ब्राह्मण होता है . इस प्रकार ११८० मन्त्र भाग और इतने ही उपनिषद होंने चाहिए . पर इस वांग्मय के अधिकाँश भाग लुप्त होने की वजह से थोड़े ही उपनिषद दिखाई पड़ते हैं . १०८ उपनिषदें प्रसिद्द हैं . नयी नयी खोज बीन से जो उपलब्ध हुई हैं उनकी संख्या २५० के लगभग हैं .

उपनिषदों की विद्याएँ : सद्विद्या , अंतरादित्या विद्या , आकाशविद्या , प्राण विद्या , ज्योतिर्विद्या , इन्द्र्प्रान विद्या , शांडिल्य विद्या ,उप्कौशल विद्या , वैश्वानर विद्या , भूमि विद्या , आनन्द विद्या , नचिकेतस विद्या , वैश्वानर विद्या , अंतर्याम विद्या , अक्षर विद्या ,गार्व्यक्षर विद्या , आक्षिस्थाहन्नायकविद्या , आदित्यस्थाहन्नायक विद्या ,पंचाग्नि विद्या , मैत्रेयी विद्या , बालाकी विद्या , संवर्ग विद्या , देवोपास्यज्योति विद्या , अगुष्ठपरमित विद्या , दहर विद्या , प्रणव विद्या , पुरुष विद्या , उशस्तिरकहोल विद्या , व्याहृति विद्या , ईशावास्य विद्या , द्रुहिणरुद्रादी शरीर विद्या , अजाशरीर विद्या ,

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