Sunday, June 17, 2012

रावण के १० शिर और २०भुजा

अथर्ववेद में रावण के १० शिर २० भुजा का वर्णन है ---
ब्राह्मणो जज्ञे दशशीर्षो दशास्यः!सःप्रथमःसोमं पपौ स चकारारसं विषम् !! ---4/6/1. पहले १० शिर और १० मुख वाला ब्राह्मण उत्पन्न हुआ पहले उसने सोम रस का पान किया फिर अपने आसुरी कृत्यों से उसे अरस बना दिया !वि का अर्थ एकाक्षर कोष के अनुसार पक्षी तथा ष का अर्थ श्रेष्ठ है अर्थात उसने पक्षिराज जटायु को प्राणहीन बना दिया !
रावण की उत्पत्ति के समय उसके १० शिर और २० भुजाएं थीं ---जनयामास बीभत्सं रक्षोरूपं सुदारुणम् !दशग्रीवं ---विन्शतिभुजम् ---वाल्मीकि रामायण उत्तरकांड 9/28-29 . पिता विश्रवा ने उसके दश शिर देखकर ही उसका नाम दशग्रीव रख दिया –दशग्रीवः प्रसूतोयं दशग्रीवो भविष्यति ---9/33.
जानकी जी का हरण करने के पूर्व उन्हे भयभीत करने के लिये इसने अपने 10 शिर 20 भुजा वाला रूप दिखलाया था ----दशास्यो विंशतिभुजो बभूव क्षणदाचरः--अरण्यकांड ४९/८.
>>>>>>>रावण का अत्याचार <<<<<<<
रावण वरदान के बल से तीनो लोकों को व्यथित तो करता ही था सबसे बड़ी बात थी की वह स्त्रियों का अपहरण करता था ---उत्सादयति लोकान्स्त्रीन् स्त्रियश्चाप्युपकर्षति ---बालकाण्ड ७/६ .
वह जिस भी स्त्री को रूपवती देखता उसके बन्धु बांधवों को मारकर उसे ले आता था चाहे वह पुत्रवती ही क्यों न हो .इसीलिए सती नारियों ने उसे शाप दिया कि इस दुर्बुद्धि का विनाश स्त्री के कारण ही होगा .अपनी बहन सूर्पणखा के पति का वध इसने स्वयं अपने ही हाथों किया था .देखें वा० रा० उत्तरकांड सर्ग २४ .
>>>>>>>जानकी जी के प्रति दुर्व्यवहार<<<<<<<<
रावण ने सीता जी का हरण करने के पश्चात उन्हें अपने अन्तःपुर में ले जाकर भवनों को दिखाया तरह तरह के प्रलोभन दिया कि तुम मेरी पत्नी बन जावो . किन्तु उन्होंने जब अस्वीकार कर दिया तब उन्हें अशोकवाटिका भेजता है –देखें अरण्य कांड -५५-५६ सर्ग
>>>>>>हनुमान जी द्वारा रावण का मानमर्दन<<<<<<
हनुमान जी लंका कि अधिष्ठात्री देवी लंकिनी को सुर लोक पहुंचाकर जानकी जी के ऊपर किये जा रहे राक्षसियो का जब अत्याचार देखे तो बड़े दुखी हुए इसीलिए उन्होंने रावण को शिक्षा देने के लिए वाटिका के रक्षको को काल के गाल में पहुंचाकर वाटिका का विद्ध्वंस चैत्य प्रासाद का नाश और रावण के भेजे हुए ८०००० किंकर नामक राक्षसों को मृत्यु के घाट उतार दिया फिर रावण ने उन्हें पुनः पकड़ने के लिए क्रमशः प्रहस्त पुत्र जम्बुमाली मंत्रियों के ७ पुत्रों तथा ५ सेनापतियों को भेजा .जिनका भीषण संहार पवनपुत्र ने कर दिया ,तत्पश्चात रावण के प्रियपुत्र अक्षकुमार को भी रणभूमि में मार गिराए . पूंछ में आग लगाये जाने पर पुनः घोर राक्षसों का वध करते हुए हनुमानजी ने लंका नगरी को इस प्रकार जलाया कि उसका कोई भूभाग नहीं बचा . केवल विभीषण के घर और जानकी जी के निवास स्थान को छोड़कर .और अंत में राम रावण युद्ध में कई दिनों के बाद श्रीराम ने एक भयंकर बाण से रावण के ह्रदय को विदीर्ण कर डाला !इस प्रकार एक अत्याचारी अपने पाप के कारण सम्पूर्ण राक्षस वंश के विद्ध्वंस का कारण बना .इस प्रकार एक आतताई का अंत हुआ .इसे कई जगह संसार को रुलाने वाला और डाकू भी कहा गया है --- रावणो लोक रावणः. दश्यवो रावणादयः . ऐसे महा अत्याचारी राक्षस से देश रक्षा की प्रार्थना करने से यही सिद्ध होता कि ऐसे लोग या तो रावण के स्वरुप एवम् कार्यों से परिचित नहीं हैं या उनका कपोल कल्पित रावण कोई दूसरा ही है---जय श्रीराम

No comments:

Post a Comment