Tuesday, June 5, 2012

लक्ष्य प्राप्ति

लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हो तो हनुमान जी के चरित्र से शिक्षा लो
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

रामायण में आदिकवि वाल्मीकि ने हनुमान जी के चरित्र को सर्वोच्च बना दिया है। सीता की खोज में जाने वाले वानरों में सिर्फ हनुमान जी पर ही श्री राम को सर्वाधिक भरोसा था, यही वजह है कि उन्होंने सीता जी से भेंट होने पर पहचान स्वरूप देने के लिए अपनी मुद्रिका किसी अन्य वानर को देने के स्थान पर सिर्फ हनुमान जी को ही दिया था। श्री राम को पूर्ण विश्वास था कि हनुमान अवश्य ही सीता जी को खोज कर उनसे भेंट करेंगे।

लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रमुख बातें हैं -

लक्ष्य के प्रति समर्पित होना - चाहे राम को सुग्रीव का मित्र बनाने का कार्य हो, चाहे सीता जी की खोज का कार्य, हनुमान जी सदैव अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहते हैं।

लक्ष्य प्राप्ति के लिए सुगम मार्ग का निर्धारण करना - लंका नगरी में प्रवेश करना एक अत्यन्त कठिन कार्य था किन्तु हनुमान जी इसके लिए भी सुगम मार्ग निकाल ही लेते हैं।

आत्मविश्वास से परिपूर्ण होना - हनुमान जी आत्मविश्वास से कितने परिपूर्ण थे यह इसी बात से पता चलता है कि दुश्मन की नगरी लंका में वे एक बार भी विचलित नहीं होते।

कठिन से कठिन समय में भी त्वरित निश्चय लेना - सीता जी से भेंट होने के बाद लंका से वापस आने के पहले हनुमान जी तत्काल निश्चित कर लेते हैं कि शत्रु को अपना बल प्रदर्शित करके उसका नुकसान भी करना है ताकि शत्रु का आत्मबल कम हो जाए।

यदि हम हनुमान जी के चरित्र से शिक्षा ग्रहण करते हुए अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु कार्य करें तो लक्ष्य की प्राप्ति में कदापि कोई सन्देह न रहे।

योजना जितनी स्पष्ट पूर्व नियोजित होगी परिणाम उतने ही सफलता लिए रहेंगे। आइए, किसी कार्य से पूर्व प्लानिंग कैसे की जाए हनुमानजी से सीख लें। सुंदरकाण्ड में जब वे सीताजी की खोज के लिए लंका की ओर उडऩे की तैयारी कर रहे थे तब तुलसीदासजी ने लिखा -
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।।
बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी।।
समुद्र के तीर पर एक सुंदर पर्वत था। हनुमानजी खेल-खेल में ही कूद कर उस पर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके हनुमानजी उस पर से बड़े वेग से उछले। यहां एक शब्द आया है कौतुक यानी खेल-खेल।
हनुमानजी जा तो रहे थे युद्धभूमि में लेकिन वृत्ति थी खेल की। हनुमानजी कहते हैं जिंदगी को खेल की तरह लिया जाए। खेल में भी एक हारेगा, दूसरा जीतेगा। लेकिन खेल में प्रतिस्पर्धा होती है हिंसा नहीं होती, वैमनस्य नहीं होता। हारने वाला खिलाड़ी जानता है एक दिन फिर जीतने का मौका मिलेगा।
पर्वत पर चढऩे का अर्थ है अपना आधार दृढ़ रखा। जिन्हें जीवन में लम्बी छलांग लगाना हो उन्हें अपना बेस मजबूत रखना चाहिए। इसका सीधा सा अर्थ है योजना व्यवस्थित रखी जाए उसके बाद काम किया जाए। दृढ़ आधार का एक और अर्थ है जिंदगी की ईमारत की नींव बचपन होती है। जिसका बचपन दृढ़ है, सुलझा हुआ है उसकी जवानी फिर नहीं लडख़ड़ाएगी।
आगे शब्द लिखा है -बार-बार। हनुमानजी ने श्रीरामजी को बार-बार याद किया। अपने हर अभियान में परमात्मा को निरंतर याद रखिएगा। भक्त का जीवन सांप-सीढ़ी के खेल की तरह होता है। कभी शीर्ष पर तो कभी सांप के मुंह में अटक कर वापस पूंछ पर आना पड़ता है। भक्ति करते हुए कभी बहुत अच्छा लगता है तो दुर्गुण के थपेड़ों से अचानक पतन भी हो जाता है। इसलिए हनुमानजी सिखाते हैं कि परमात्मा से जुड़ाव की निरंतरता बनाए रखें।
हनुमानजी का पूरा जीवन हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। हनुमानजी के जीवन चरित्र से हमें जीवन के कई अनमोल सूत्र मिलते हैं, जो वर्तमान समय के लिए बेहद जरुरी है। इन्हीं सूत्रों को अपनेजीवन से जोड़कर आप भी कामयाबी पा सकते हैं। इसके लिए आपको अपने जीवन में हनुमानजी उतारना होगा। केवल हनुमानजी के आवरण को नहीं उनके आचरण को भी समझना होगा। भगवान हनुमान की आराधना सबसे सरल और सीधी मानी गई है। जो सबसे जल्दी फल देती है। शिव की तरह ही उनके अंशावतार हनुमान भी थोड़ी ही उपासना से प्रसन्न हो जाते हैं। हनुमान कर्मकांड, जीवन में सफलता के सूत्र से लेकर तंत्र तक हर विधा में उच्च फल देते हैं।

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