Monday, June 25, 2012

आध्यात्म और विज्ञान

                     प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है एवं विज्ञान के बिना धर्म अंधा है। आइंस्टीन के सापेक्षवाद के सिद्धांत पर आज भी खोज जारी है परंतु इनके उपरोक्त कथन पर आज तक कोई विचार नहीं किया गया प्रस्तुत लेख में इनके धर्म एवं विज्ञान से संबंधित कथन को प्रमाणित करने का प्रयास किया गया है। 
                  आध्यात्म विज्ञान एक मूल विज्ञान है जबकि आधुनिक विज्ञान इसका बिगड़ा हुआ स्वरूप है, आध्यात्म विज्ञान पूर्ण ज्ञान है जबकि आधुनिक विज्ञान अधूरा ज्ञान है क्योंकि जब तक किसी कार्य या ज्ञान के माध्यम से हम ईश्वर तक न पहुंचें तब तक ज्ञान अधूरा रहता है तथा अधूरा ज्ञान हमेशा घातक होता है, जिसका परिणाम आज सभी देख रहे हैं। विज्ञान परमाणु को द्रव्य का सूक्ष्मतम कण मानकर अध्यन करता है जबकि आध्यात्म परमाणु को द्रव्य का अंतिम स्थूल कण मानकर अध्यन करता है अर्थात विज्ञान अनंत की ओर चलता है एवं आध्यात्म अंत की ओर चलता है। विज्ञान द्रव्य को अविनाशी मानता है जबकि आध्यात्म के अनुसार द्रव्य का विनाश हो जाता है । ब्रह्माडीय द्रव्य दो रूपों में होता है एक जड़ दूसरा चेतन, विज्ञान जड़ तत्व का अध्यन करता है एवं आध्यात्म चेतन तत्व का अध्यन करता है, चेतन तत्व की प्रतिक्रिया से ही जड़ तत्व की उतपत्ति होती है। विज्ञान का कथन है कि हमारे पूर्वज बानर थे अब हम ज्ञानवान बनकर उन्नति कर रहे हैं जबकि आध्यात्म का कथन है कि हमारे पूर्वज ब्रह्मज्ञानी ऋषि मुनि थे अब हम अज्ञानी बनकर विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। वैसे इस ब्रह्मांड में जिस चीज का जन्म होता है चाहे वह कुछ भी हो हमेशा विनाश अर्थात मृत्यु की ओर ही बढ़ता है यह ब्रह्म सत्य है, अतः आध्यात्म का कथन ही सही प्रतीत होता है। हम अनन्त की ओर चलकर किसी लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते जबकि अंत की ओर चलकर लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। विज्ञान का कथन है कि मनुष्य एक ज्ञानवान प्राणी है परंतु आघ्यात्म का कथन है कि ज्ञान मनुष्य में नहीं द्रव्य (आत्मा) में होता है क्योंकि द्रव्य ने मनुष्य को पैदा किया है न कि मनुष्य ने द्रव्य को, मनुष्य सिर्फ इस ज्ञान को व्यक्त करने का एक माघ्यम मात्र है। विज्ञान का न तो कोई अंतिम लक्ष्य निर्धारित है न ही कोई फल (परिणाम) निर्धारित है, जबकि आध्यात्म का अंतिम लक्ष्य भी निर्धारित है एवं फल भी निर्धारित है। आध्यात्म का लक्ष्य है ईश्वर तक पहुंचना एवं फल मोक्ष है (वैज्ञानिक आधार पर मोक्ष किसे कहते है हम इसी लेख में आगे समझेंगे)। लक्ष्य विहीन विज्ञान का परिणाम यही हो सकता है कि थककर या किसी गढ्ढे में गिरकर विनाश। इसी तथ्य को समझकर हमारे ब्रह्मज्ञानी पूर्वजों ने अंत के रास्ते को चुना क्योंकि अंत के रास्ते पर चलकर मनुष्य ईश्वर तक पहुंचकर मोक्ष प्राप्त कर जन्म मृत्यु के बंधन से छुटकारा प्राप्त कर लेगा, एवं अनंत के रास्ते पर चलकर विभिन्न योनियों में जन्म लेता हुआ दुख निवृति कर सुख प्राप्ति का ही प्रयास करता रहेगा। आधुनिक शिक्षा भौतिकवाद एवं पूंजीवाद को बढ़ावा देकर मनुष्य का नैतिक पतन कर उसे विनाश की ओर ले जा रही है, जबकि आध्यात्मिक शिक्षा कैसी भी परिस्थितियों में मनुष्य को सुखमय जीवन जीने की कला सिखाती है। सुख और दुख मनुष्य की मानसिक भावना है यह कोई भौतिक वस्तु नहीं है, यदि दुख को हटा दिया जाय तो सुख ही शेष बचता है आध्यात्म हमें अपने जीवन से दुख को अलग करने की कला सिखाता है जिससे मनुष्य स्वस्थ, सुखी एवं दीर्धायु जीवन व्यतीत कर सकता है, जबकि आधुनिक विज्ञान हमें दुखों को बढ़ाने की कला सिखाता है जिससे मनुष्य तनाव एवं कभी न ठीक होने वाली क्रानिक बीमारियों का शिकार बनता है। आध्यात्म में धन की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है जबकि भौतिकवाद में धन प्रथम आवश्याकता है। आध्यात्म एवं विज्ञान में यही अंतर है।

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