“क्यौ की आज पहली तारीख है ...”
खुश हूँ बहुत मैं, क्यौ की आज महीने की पहली तारीख है,
श्रीमतीजी के हाथों से मेलेगी गर्म चाय, क्यौ की आज पहली तारीख है ।
सोऊगा बेफिकर होकर देर तक क्यौ की आज पहली तारीख है,
मिलेगा अच्छा नास्ता, क्यौ की आज पहली तारीख है ।
निक्लूंगा जानबूझकर मुख्य बाजार से, क्यौ की आज पहली तारीख है,
मुझे देखते ही ठोकेगा सलाम हर लेनदार क्यौ की आज पहली तारीख है।
देखेगी बीबी रास्ता शाम से, क्यौ की आज पहली तारीख है,
जनता हूँ कटने वाली है जेब क्यौ की आज पहली तारीख है ।
अदा कर दूंगा सब लेनदारों के कर्ज़, क्यौ की आज पहली तारीख है,
आयेंगे याद दोस्तों को हम, क्यौ की आज पहली तारीख है।
दिन भर रहेगा रोब घर पर मेरा, क्यौ की आज पहली तारीख है
छोड़ ‘टी.वी’, बतियाये बीवी बडे प्यार से क्यौ की आज पहली तारीख है।
चिर शांति रहेगी घर में, क्यौ की आज पहली तारीख है,
छोड़ शैतानी बच्चे भी बैठेंगे पढ़ने, आज बड़े आब से ।
अदब बैठेगा आज ‘टॉमी’ भी, क्यौ की आज पहली तारीख है,
जानता है, वरना पड़ेगा पाला, आज एक दिन के शाहजहाँ से ।
डरता हूँ तो, बस अगली सुबह से, क्यौ की आज पहली तारीख है,
रहेगी फिर जेब खाली, लूट जायेगा यह राज-पाठ फिर कल से।
राह तकता रह जाऊँगा, फिर मैं पहली तारीक की,
होंगे शुरू ‘मुमताज़’ के शेष दिन, मेरे हाथो बनी गर्म चाय से।
खुश हूँ बहुत मैं, क्यौ की आज महीने की पहली तारीख है,
----- परेश ढापरे
खुश हूँ बहुत मैं, क्यौ की आज महीने की पहली तारीख है,
श्रीमतीजी के हाथों से मेलेगी गर्म चाय, क्यौ की आज पहली तारीख है ।
सोऊगा बेफिकर होकर देर तक क्यौ की आज पहली तारीख है,
मिलेगा अच्छा नास्ता, क्यौ की आज पहली तारीख है ।
निक्लूंगा जानबूझकर मुख्य बाजार से, क्यौ की आज पहली तारीख है,
मुझे देखते ही ठोकेगा सलाम हर लेनदार क्यौ की आज पहली तारीख है।
देखेगी बीबी रास्ता शाम से, क्यौ की आज पहली तारीख है,
जनता हूँ कटने वाली है जेब क्यौ की आज पहली तारीख है ।
अदा कर दूंगा सब लेनदारों के कर्ज़, क्यौ की आज पहली तारीख है,
आयेंगे याद दोस्तों को हम, क्यौ की आज पहली तारीख है।
दिन भर रहेगा रोब घर पर मेरा, क्यौ की आज पहली तारीख है
छोड़ ‘टी.वी’, बतियाये बीवी बडे प्यार से क्यौ की आज पहली तारीख है।
चिर शांति रहेगी घर में, क्यौ की आज पहली तारीख है,
छोड़ शैतानी बच्चे भी बैठेंगे पढ़ने, आज बड़े आब से ।
अदब बैठेगा आज ‘टॉमी’ भी, क्यौ की आज पहली तारीख है,
जानता है, वरना पड़ेगा पाला, आज एक दिन के शाहजहाँ से ।
डरता हूँ तो, बस अगली सुबह से, क्यौ की आज पहली तारीख है,
रहेगी फिर जेब खाली, लूट जायेगा यह राज-पाठ फिर कल से।
राह तकता रह जाऊँगा, फिर मैं पहली तारीक की,
होंगे शुरू ‘मुमताज़’ के शेष दिन, मेरे हाथो बनी गर्म चाय से।
खुश हूँ बहुत मैं, क्यौ की आज महीने की पहली तारीख है,
----- परेश ढापरे
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